Saturday, December 6, 2025
Homeविशेषत्योहारभाई दूज क्यों मनाते हैं? (Why Do We Celebrate Bhai Dooj)

भाई दूज क्यों मनाते हैं? (Why Do We Celebrate Bhai Dooj)

भाई दूज क्यों मनाते हैं? (Why Do We Celebrate Bhai Dooj)
भाई दूज क्यों मनाते हैं? (Why Do We Celebrate Bhai Dooj)

भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित यह भाई दूज का त्योहार हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक माना गया है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाने वाले इस पर्व को यमद्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व पर बहनें अपने भाईयों को रोली चंदन का टिका लगाकर उनके उज्जवल भविष्य की मनोकामना करती है।

इस पर्व को लेकर कई सारी पौराणिक तथा ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित है। लेकिन भाई दूज के पर्व को लेकर जो कहानी सबसे अधिक प्रचलित है उसके अनुसार –  मृत्युलोक के स्वामी यमराज की बहन यमुना अपने भाई से बहुत स्नेह करती थी।

वह सदैव उनसे अपने घर आने का निवेदन करती थी लेकिन अपने कार्यों में व्यस्त होने के कारण यमराज अपने बहन के घर नही जा पाते थे। लेकिन एक बार कार्तिक शुक्ल के दिन यमुना ने एक बार फिर अपने भाई को घर आने के लिए निमंत्रित कर वचनबद्ध कर लिया। अपने बहन की बात मान कर वह उनके घर जाने के लिए राजी हो गये और यमुना के घर जाने से पहले उन्होंने नर्क में आने वाले सभी जीवों को मुक्त कर दिया।

इसके बाद वह अपने बहन के घर पहूँचे, उस दिन उनकी बहन यमुना अपने भाई को टिका चंदन लगाकर उनकी आरती उतारी और इसके साथ ही कई प्रकार के पकवान बनाकर अपने भाई खिलाया और उनकी खूब आवाभगत की यमराज अपनी बहन के इस प्रेमभक्ति को देखकर काफी प्रसन्न हुए और अपनी बहन से कोई वरदान मांगने को कहा।

तब उनकी बहन ने कहा हे भद्र आप हर वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो और इस दिन जो भी बहन अपने भाई का आदर सत्कार करे, उसे कभी भी आपका भय ना रहे। उनकी इस बात को यमराज ने स्वीकार कर लिया। तब से इसी कारणवश लोग हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भाई दूज का पर्व मनाते हैं।

Read this also – नरक चतुर्दशी का महत्व/Significance of Narak Chaturdashi

भाई दूज कैसे मनाते हैरिवाज एवं परंपरा (How Do We Celebrate Bhai Dooj – Custom and Tradition of Bhai Dooj)

हर पर्व के तरह भैया दूज(Bhai Dooj) मनाने का भी अपना एक अलग तरीका है। इस दिन बहनों द्वारा अपने भाई के लंबे तथा अच्छे जीवन की कामना करते हुए, सुबह में स्नान करके भगवान विष्णु और गणेश जी का पूजन कर व्रत रहा जाता है। इसके बाद बहनों द्वारा अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर और उनकी आरती उतारकर व्रत रहा जाता है।

इस दिन कई भाई अपने बहनों के घर जाकर भोजन भी करते है और उन्हें कुछ उपहार भी भेंट करते है। इसके साथ ही इस दिन यमुना नदी में नहाना और इसके तट पर पूजन करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

भाऊ बीज मनाने की आधुनिक परंपरा (Modern Tradition of Bhau Beej)

वर्तमान में भाई दूज के जगह रक्षा बंधन का पर्व अधिक लोकप्रिय हो चुका है। क्योंकि दोनो ही पर्व भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित है। इसलिए आज के समय में भाई दूज के पर्व की लोकप्रियता काफी कम होती जा रही है।

इसके साथ ही वर्तमान में इस पर्व में कई सारे परिवर्तन देखने को मिले है क्योंकि आज के व्यस्त और भागदौड़ से भरे जीवन में रिश्ते भी सिर्फ नाम मात्र के रह गये है और इसके साथ ही क्योंकि इस दिन अवकाश भी नही रहता है। इसलिए भी लोग इस दिन को पहले की तरह धूम-धाम से मनाने में असमर्थ होते है।

पहले के समय में लोग इस दिन अपने बहनों के घर जाकर टिका करवाया करते थे, लेकिन आज के समय में यह प्रथा बिल्कुल ही समाप्त हो चुकी है। अब बहुत ही कम लोग द्वारा इस प्रथा का पालन किया जाता है। यदि हमें भाई दूज के इस पर्व का महत्व बनाये रखना है, तो हमें इसके पारंपरिक स्वरुप को बनाये रखना होगा।

भाई दूज क्यों मनाते हैं? (Why Do We Celebrate Bhai Dooj)

भाऊ बीज का महत्व (Significance of Bhau Beej)

भाई-बहन के इस विशेष रिश्ते को समर्पित भाई दूज का यह पर्व काफी महत्वपूर्ण है। इस पर्व का मूल उद्देश्य भाई-बहन के बीच प्रेम तथा सद्भावना के प्रवाह को हमेंशा इसी तरह से बनाये रखना। यमुना और यमराज की कथा हमें यह संदेश देती है कि रिश्ते सभी कार्यों से बढ़कर होते हैं।

हम अपने जीवन में चाहे कितने भी व्यस्त क्यों ना हो लेकिन हमें इस बात का प्रयास करना चाहिए कि विशेष अवसरों पर हम अपने स्वजनों के लिए समय अवश्य निकाले और भाई दूज का पर्व भी हमें यहीं संदेश देता है। यहीं कारण है कि हमें इस पर्व के महत्व को समझते हुए, हर वर्ष इसे और भी उत्साह के साथ मनाने का प्रयास करना चाहिए।

Read this also – डोल ग्यारस पूजा विधि

भाई दूज का इतिहास (History of Bhai Dooj)

भाई दूज के इस त्योहार का इतिहास काफी पुराना है। ऐसा माना जाता है कि भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित यह पर्व प्राचीनकाल से ही मनाया जा रहा है और इसका इतिहास रक्षा बंधन के इतिहास से भी पुराना माना जाता है। वास्तव में भाई-बहन के अनोखे बंधन का यह सबसे पुराना पर्व माना गया है। इस पर्व को लेकर कई सारी ऐतिहासिक तथा पौराणिक कथाएं प्रचलित है।

यमराज और यमुना की कहानी(The story of Yamraj and Yamuna)

इस पर्व की उत्पत्ति को लेकर जो कथा सबसे अधिक प्रचलित है। उसके अनुसार – सूर्य की पत्नी संज्ञा की दो संताने थी। पुत्र का नाम यमराज था और पुत्री का नाम यमुना। यम ने जब अपनी नगरी यमपुरी का निर्माण किया तो उनकी बहन यमुना भी उनके साथ रहने लगी।

यमुना अपने भाई यम को यमपुरी में पापियों को दंड देते देख काफी दुखी होती थी। इसलिए वह यमपुरी का त्याग कर गोलोक को चली गयी। समय बीतता गया, यमुना ने कई बार अपने भाई को अपने घर बुलाया लेकिन अपने कार्यों और दायित्वों के व्यस्तता के चलते यमराज अपने बहन से मिलने का समय नही निकाल सके। इस प्रकार से कई वर्ष बीत गये और एक दिन यमराज को अपने बहन यमुना की याद आई तो उन्होंने ने अपने दूतों को यमुना का पता लगाने के लिए भेजा लेकिन उनका कुछ पता ना चला।

तब यमराज स्वयं गोलोक गए, जहां उनकी यमुना जी से भेंट हुई। अपनी बहन के आग्रह पर वह उनके घर गये, जहां उनकी बहन यमुना ने उनकी खूब सेवा सत्कार किया और उन्हें तमाम प्रकार के स्वादिष्ट भोजन खिलाया।

यमुना की इस सेवा से प्रसन्न होकर यमराज ने उनके कोई वर मांगने को कहा तब उन्होंने कहा कि भैया मैं चाहती हूँ भी व्यक्ति आज के दिन (कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया) को जो भी भाई अपने बहन के यहां जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करें उसे आपके कोप का सामना ना करना पड़े। इसके साथ ही जो भी व्यक्ति मेरे जल में स्नान करे, वह यमपुरी ना जाए। ऐसी मान्यता इसी पौराणिक घटना के बाद से भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित भाई दूज का यह पर्व मनाया जाने लगा।

भाई दूज क्यों मनाते हैं? (Why Do We Celebrate Bhai Dooj)

Read this also – अनंत चतुर्दशी का महत्व/Importance of Anant Chaturdashi

भाई दूज के महात्म की कथा (The story of the greatness of Bhai Dooj)

एक राजा अपने साले के साथ चौपड़ खेला करता था, जिसमें उसका साला हमेशा जीत जाता था। इस पर राजा ने सोचा अवश्य ही यह भाई दूज पर अपनी बहन से टीका कराने आता है और उसी के प्रताप से जीत जाता है।

अतः राजा ने भाई दूज आने पर साले को अपने यहां आने से रोक दिया और चारो तरफ कड़ा पहरा लगवा दिया, ताकि उसका साला छुपकर भी अपनी बहन से टिका ना करवा सके। तब यमराज के कृपा से वह कुत्ते का रुप धारण करके अपने बहन के पास टिका कराने पहूँचा। कुत्ते को देखकर उसकी पत्नी ने अपना टीके से सना हाथ उसके माथे पर फेरा और कुत्ता वापस चला गया।

इसके बाद वह वापस लौटकर बोला मैं भाई दूज का टिका लगवा आया, आओ अब चौपड़ खेले। उसकी यह बात सुनकर राजा बहुत चकित हुआ। तब उसके साले ने उसे इस घटना की पूरी कहानी बतायी। उसकी बातों को सुनकर राजा ने टीके के महत्व को मान लिया और अपनी बहन से टिका कराने चला गया। यह सुनकर यम चिंतित हो उठे और सोचने लगे कि इस प्रकार से तो यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।

अपने भाई को चिंतित देख उनकी बहन यमुना ने उनसे कहा कि भैया आप चिंता ना करें, मुझे यह वरदान दे कि जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करें तथा मथुरा नगरी स्थित विश्रामघाट पर स्नान करें। उन्हें यमपुरी में ना जाना पड़े और वह जीवन मरण के इस बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करें। यमराज ने उनके इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और तभी से भाई-बहन के मिलन के इस पर्व को भाई दूज के रुप में मनाया जाने लगा।

Read this also – शारदीय नवरात्रि देवी पूजा/Sharadi Navratri Devi Puja

यह लेख सामान्य जानकारी पर आधारित है लेख पसंद आये तो इसे ज़्यादा से ज्यादा शेयर कर्रे| अपने विचार और सुझाव कमेंटबॉक्स में ज़रूर लिखे|

– सारिका असाटी

 

 

RELATED ARTICLES
- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments