Saturday, December 6, 2025
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हर छठ का इतिहास/History of har Chhath

 

हर छठ का इतिहास/History of every Chhath
हर छठ का इतिहास/History of every Chhath

ललही छठ यानि हलछठ का पर्व श्री कृष्ण जन्माष्टमी  से दो दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं। ज्यादातर इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियां ही रखती हैं। सनातन धर्म में इस व्रत की बड़ी महिमा बताई जाती है।

इतना ही नहीं इस व्रत को करने से धन और ऐश्वर्य की भी प्राप्ति होती है। हरछठ व्रत निराहार रखा जाता है। इसे बलराम छठ भी कहते हैं।

हर छठ का इतिहास (Har Chhath Kyu Manate Hai)

भगवान कृष्ण के जन्म से दो दिन पहले उनके बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। इसलिए ही हर साल भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को रांधन छठ मनाई जाती है। इस शुभ त्योहार को हलष्टी, चंदन छठ, तिनच्छी, तिन्नी छठ, हलाछथ, हरचछथ व्रत, लल्ही छठ, कमर छठ या खमार छठ आदि नामों से भी जाना जाता है।

इस साल ललही छठ, हलषष्ठी या हल छठ 14 अगस्त को मनाया जायेगा। इस व्रत के दिन महिलाएं संतान सलामती के लिए पूजा करती हैं। जन्माष्टमी से दो दिन पहले हलषष्ठीपहले हलषष्ठी या हल छठ का पर्व होता है इसे बलराम जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस बार यह पर्व 14 अगस्त को पड़ रहा है।

भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को ललही छठ या हल षष्ठी व्रत का त्योहार मनाया जाता है। इसे कई नामों से जाना जाता है। इस त्योहार को श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जयंती के रूप में मनाया जाता है।

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हर छठ पूजा सामग्री (Har Chhath Puja Samagri)

  • भैंस का दूध, घी, दही और गोबर
  • महुए का फल, फूल और पत्ते
  • ज्वार की धानी, ऐपण
  • मिट्टी के छोटे कुल्हड़
  • लाल चंदन
  • मिट्टी का दीपक
  • सात प्रकार के अनाज
  • धान का लाजा, हल्दी, नया वस्त्र,
  • जनेऊ और कुश
  • देवली छेवली
  • तालाब में उगा हुआ चावल
  • भुना हुआ चना, घी में भुना हुआ महुआ

 हर छठ व्रत विधि (Har Chhath Vrat Vidhi)

हर छठ का इतिहास/History of every Chhath

  • ललही छठ के दिन सुबह जल्दी उठकर महुए की दातून से दांत साफ करना चाहिए।
  • इसके बाद स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लिया जाता है।
  • इस दिन भैंस के गोबर से घर की दीवार पर छठ माता का चित्र बनाएं।
  • इसके साथ ही हल, सप्त ऋषि, पशु और किसान का भी चित्र जरूर बनाया जाता है।
  • इसके बाद घर में तैयार की गई ऐपण से सभी की विधि विधान पूजा की जाती है।
  • इसके बाद एक साफ चौकी पर कपड़ा बिछाकर उस पर एक कलश रखते हैं। फिर भगवान गणेश और माता पार्वती की मूर्ति चौकी पर स्थापित करते हैं और फिर उनकी विधि विधान पूजा करनी होती है।
  • फिर मिट्टी के कुल्हड़ में ज्वार की धानी और महुआ भरा जाता है।
  • फिर एक मटकी में देवली छेवली रखी जाती है।
  • इसके बाद हल छठ माता की पूजा होती है।
  • फिर कुल्हड़ और मटकी की पूजा की जाती है।
  • इसके बाद सात तरह के अनाज भगवान को अर्पित किए जाते हैं।
  • इसके बाद भुने हुए चने चढ़ाएं जाते हैं।
  • साथ ही आभूषण और हल्दी से रंगा हुआ वस्त्र भी भगवान को चढ़ाया जाता है।
  • इसके बाद भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन-पूजन किया जाता है।
  • अंत में हरछठ की कथा पढ़ी जाती है और फिर छठ माता की आरती की जाती है।
  • इसके बाद व्रती महिलाएं पूजा स्थान पर ही बैठकर महुए के पत्ते पर महुए का फल और भैंस के दूध से निर्मित दही खाती हैं।

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 हल षष्ठी की कथा/Story of Hala Shashthi

प्राचीन काल की बात है एक गर्भवती ग्वालिन को प्रसव पीड़ा हो रही थी क्योंकि उसका प्रसव का समय समीप था। परन्तु उसका दही और मक्खन बेचने के लिए रखा हुआ था। वह सोचने लगी कि यदि बालक ने जन्म ले लिया तो दही मक्खन बिक नहीं पाएगा।

यह सोचकर वह जैसे तैसे उठी और सिर पर दही मक्खन की मटकी रखकर बेचने चल पड़ी। चलते-चलते उसकी प्रसव पीड़ा बढ़ गई। वह झरबेरी की झाड़ी की ओट मे बैठ गई। उसने एक पुत्र को जन्म दिया।

अल्हड ग्वालिन ने बालक को कपड़े मे लपेटकर वहीं पर लिटा लिया और खुद मटकियां उठाकर आगे चल दी। उस दिन हर छठ थी। वैसे तो उसका दूध और मक्खन गाय – भैंस का मिला जुला था पर उसने बेचते समय यही बताया कि यह सिर्फ भैंस का है।

इसलिए उसका दूध दही बिक गया। जब वह ग्वालिन उस स्थान पर ग्वालिन ने अपने पुत्र को छिपाया था वहां पर एक किसान हल चला रहा था। उसके बिदक कर खेत की मेढ़ पर जा चढ़े। हल की नोक बच्चे के पेट से टकरा जाने से बच्चे का पेट फट गया।

किसान ने तत्काल झरबेरी के काँटों से बच्चे के पेट में टांके लगाकर उसे वहीं पड़ा रहने दिया। ग्वालिन ने आकर देखा तो अपने बच्चे को मृत देखकर उसने सोचा कि यह मेरे पापों का फल है। मैंने आज हरछठ के दिन व्रत करने वाली अनेक स्त्रियों को गाय का दूध दही बेचकर उनका व्रत भंग किया है।

उसी का मुझे दंड मिला है कि मेरा बच्चा मर गया है। उसने सोचा कि मुझे जाकर उन सबसे अपने पाप को स्वीकार करके प्रायश्चित करना चाहिए। वह लौट कर वहां आयी जहां उसने दूध दही बेचा था। उसने गली मुहल्ले में घूम घूमकर अपने दूध दही का सारा रहस्य जोर जोर से आवाज लगाकर प्रकट कर दिया।

यह सुनकर स्त्रियों ने अपनी धर्म रक्षा के विचार से उसे आशीष दी। जब वह वापिस उसी खेत में पहुंची तो उसे उसका पुत्र जीवित मिला। उसी दिन से ग्वालिन ने प्रण किया कि वह कभी झूठ नहीं बोलेगी।

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– सारिका असाटी
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