टीडीएस कैसे आपको प्रभावित करता है? How does TDS effect you?
किसी व्यक्ति की आय के स्रोत पर जो टैक्स कलेक्ट किया जाता है, उसे टीडीएस कहते हैं।
टीडीएस अलग-अलग तरह के आय स्रोतों पर काटा जाता है।
भारतीय टैक्स सिस्टम (कर प्रणाली) के अनुसार, टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स (टीडीएस) यानि स्त्रोत पर कर कटौती, टैक्सेशन (कर-निर्धारण) में एक महत्वपूर्ण शब्द है।
फॉर्म 26एएस या डिडक्टर (कटौती करनेवाले) द्वारा जारी किए गए टीडीएस सर्टिफिकेट (प्रमाणपत्र) में डिडक्टी टीडीएस राशि की जाँच कर सकता है।
- एक व्यक्ति के लिए इनकम (आय) के विभिन्न सोर्स (स्त्रोत) हो सकते हैं।
- इनकम टैक्स एक डायरेक्ट टैक्स (प्रत्यक्ष कर) है जिसका उन्हें भुगतान करना आवश्यक है।
- यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनकी कुल इनकम (आय) किस टैक्स ब्रैकेट में आती है।
- भारतीय टैक्स सिस्टम (कर प्रणाली) के अनुसार, टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स (टीडीएस) यानि स्त्रोत पर कर कटौती, टैक्सेशन (कर-निर्धारण) में एक महत्वपूर्ण शब्द है।
- जिसका टैक्सपेयर्स (कर दाताओं) पर अहम असर होता है।
- यह सरकार द्वारा इनकम टैक्स एकत्रित करने का एक तरीका है।
- डिडक्टी (जिस व्यक्ति के इनकम से कटौती की जाती है) के लिए यह सुविधाजनक है, क्योंकि इसकी कटौती अपने आप हो जाती है।
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क्या है टीडीएस का अर्थ और फुल फॉर्म
- टीडीएस एक डायरेक्ट टैक्सेशन (प्रत्यक्ष कर-निर्धारण) का तरीका है।
- इसकी शुरुआत इनकम सोर्स (आय के स्त्रोत) से या इनकम पेआउट (आय की अदायगी) के समय से ही टैक्स एकत्रित करने के लिए की गई।
- टीडीएस का फुल फॉर्म है टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स यानि स्त्रोत पर की गई टैक्स (कर) कटौती।
- कोई व्यक्ति (कटौती करनेवाला/डिडक्टर) अन्य व्यक्ति को भुगतान करने के लिए ज़िम्मेदार है
- तो वह सोर्स (स्त्रोत) पर टैक्स में डिडक्शन (कटौती) कर शेष रकम डिडक्टी को ट्रान्स्फर करेगा।
- काटी गई टीडीएस राशि केंद्रीय सरकार को भेज दी जाएगी।
- फॉर्म 26एएस या डिडक्टर (कटौती करनेवाले) द्वारा जारी किए गए टीडीएस सर्टिफिकेट (प्रमाणपत्र) में डिडक्टी टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स (टीडीएस) राशि की जाँच कर सकता है।
- टीडीएस टैक्स चोरी पर नियंत्रण रखने में मदद करता है।
- इतना ही नहीं, इस पद्धति में टैक्स पेयर (करदाता) को वित्तीय वर्ष के अंत में वार्षिक कर के रुप में एक बड़ी राशि का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होती।
- आइए टीडीएस एक उदाहरण से समझते हैं।
- यदि भुगतान का स्वरुप प्रोफेशनल फीस (पेशेवर शुल्क) है और निर्धारित टैक्स रेट 10% है।
- श्री एक्स को प्रोफेशनल फीस के रुप में रु. 20,000 /- का भुगतान करने के लिए, एबीसी लि. को रु. 2000/- का डिडक्शन (कटौती) करना होगा।
- और रु. 18,000/- का नेट पेमेंट (निवल भुगतान) करना होगा।
- एबीसी लि. द्वारा डिडक्ट (कटौती) की गई रु. 2000/- की राशि सीधे तौर पर सरकार के खाते में जमा कर दी जाती है।
टीडीएस रेट क्या होता है?
- भारतीय टैक्स सिस्टम (कर पद्धति) में 20 से 25 सेक्शन्स (धाराएँ) [1] हैं।
- जो विभिन्न प्रकार के भुगतान को संचालित करती हैं जिन पर टीडीएस लागू होता है।
- यहाँ कुछ सामान्य प्रकार के भुगतान दिए गए हैं
- जिस पर सुसंगत धाऱा और लागू होने वाले टीडीएस रेट के साथ सोर्स (स्त्रोत) पर ही कर कटौती करनी होती है।
सेक्शन (धारा) | भुगतान का प्रकार | रेट/दर (%) |
धारा 192 | सैलरी इनकम (वेतन आय) | कोई निर्धारित दर नहीं (प्रचलित मौजूदा स्लैब दर के आधार पर औसत दर कैल्कुलेट किया जाना चाहिए) |
धारा 194 | धारा 2(22) के अंतर्गत डिविडेंड (लाभांश) | 10 |
धारा 194 ए | इंटरेस्ट इनकम / ब्याज आय (सिक्यूरिटीज़/प्रतिभूतियों पर प्राप्त ब्याज को छोड़कर) | 10 |
धारा 194 सी | एक निवासी ठेकेदार या उप-ठेकेदार को किए गए भुगतान/क्रेडिट | 1 (एचयूएफ और व्यक्ति के लिए) 2 (अन्य के लिए) |
धारा 194 डी | बीमा कमीशन | 5 (एचयूएफ और व्यक्ति के लिए) 10 (अन्य के लिए) |
धारा 194जी | लॉटरी टिकट की बिक्री पर कमीशन | 10 |
धारा 194 एच | कमीशन या ब्रोकरेज / दलाली | 5 |
धारा 194-आई | किराए से प्राप्त आय | 2 (संयंत्र, मशीनरी या उपकरणों से) 10 (फर्नीचर या फिटिंग, भूमि और इमारत से) |
धारा 194- आईए | किसी भी अचल संपत्ति का ट्रान्स्फर / स्थानांतरण (ग्रामीण भूमि को छोड़कर) | 1 |
धारा 194 जे | रॉयल्टी, तकनीकी या पेशेवर शुल्क (प्रोफेशनल फी) या निदेशक को मेहनताना/पारिश्रमिक | 10 |
धारा 194एलए | किसी विशिष्ट अचल संपत्ति का अधिग्रहण (एक्वीज़ीशन) | 10 |
सरकार के पास जमा होता है
- तमाम आय स्रोतों से काटा गया टीडीएस सरकार के पास जमा किया जाता है।
- इसके बदले आपको एक प्रमाणपत्र भी मिलता है।
- जिसमें ये बताया जाता है कि अमुक व्यक्ति से किटना टीडीएस काटा गया और सरकार के खाते में कितनी राशि गई।
- इनकम टैक्स से टीडीएस ज्यादा होने पर रिफंड क्लेम किया जाता है
- और कम होने पर एडवांस टैक्स या सेल्फ असेसमेंट टैक्स जमा करना होता है।
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सीधे तौर पर सरकार नहीं काटती टीडीएस
- सरकार सीधे तौर पर टीडीएस नहीं काटती है।
- टीडीएस सरकार के खाते में जमा करने की जिम्मेदारी पेमेंट करने वाले व्यक्ति या फिर उस संस्था की होती है
- जो भुगतान कर रहा है।
- टीडीएस काटने वालों को डिडक्टर कहा जाता है।
- वहीं जिसे टैक्स काट के पेमेंट मिलती है उसे डिडक्टी कहते हैं।
- अलग-अलग प्रकार की सेवाओं पर अलग-अलग टीडीएस की दरें तय होती हैं। जैसे- सैलरी पर टैक्स स्लैब के हिसाब से टीडीएस काटा जाता है।
- वहीं बिल्डिंग पर या अन्य ऐसे ही किसी किराया वसूलने पर इसके अलग नियम हैं।
- इसके अलावा बेसिक जरूरतों के अलावा खरीदे जाने वाले सामान जिन पर तय सीमा से ज्यादा पेमेंट किया जाता हो उस पर भी टीडीएस कटता है।
कैसे कटता है टीडीएस
- कोई भी संस्थान जो भुगतान कर रहा है, वो एक निश्चित रकम को टीडीएस के रूप में काटता है।
- ऐसे में डिडक्टी को भी टीडीएस कटने का सर्टिफिकेट जरूर लेना चाहिए।
- इस सर्टिफिकेट के जरिए डिडक्टी अपने चुकाए गए टैक्स का टीडीएस क्लेम कर सकता है।
- हालांकि उसे फाइनेंशियल ईयर में क्लेम करना पड़ेगा।
क्या हैं टीडीएस संबंधी नियम
केवल इनकम टैक्स रिटर्न भरने के लिए ही नहीं, लेकिन टीडीएस के संबंध में भी नियम मौजूद हैं।
यदि एक व्यक्ति या संस्था पर्याप्त रुप से इन नियमों का पालन करती है तो वे दंड, शुल्क या ब्याज टाल सकते हैं।
टीडीएस से जुड़े प्रमुख नियम हैं :
- महत्वपूर्ण नियमों में सबसे पहला नियम है सोर्स पर किया जाने वाला टैक्स डिडक्शन कटौटी
- जब भुगतान देय हो या जब वास्तविक राशि दी जाती है, जो भी पहले हो, तो डिडक्ट किया जाए।
- टीडीएस डिडक्शन में देरी होने पर प्रति माह @ 1% के दर से ब्याज भरना होगा।
- प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वो एम्प्लायर हो या कोई अन्य, उसे अगले महिने की 7 तारीख से पहले सरकार के खाते में टैक्स जमा करना आवश्यक है।
- टीडीएस के देरी से या ग़ैर-भुगतान के मामले में प्रति माह 1.5% रेट से ब्याज वसूला जाएगा
- जब तक टैक्स जमा नहीं किया जाता।
टीडीएस रिटर्न्स
- प्रत्येक तिमाही (क्वार्टर) में टीडीएस रिटर्न्स दाखिल किया जाना आवश्यक है।
- देरी से या रिटर्न दाखिल न किए जाने के मामले में इनकम टैक्स एक्ट (आयकर अधिनियम), 1961 की धारा 234ई के अंतर्गत एक दंड या रु. 200/- प्रति दिन का शुल्क वसूला जाएगा।
- जब तक आप रिटर्न दाखिल नहीं करते।
टीडीएस रिटर्न्स दाखिल करने की नियत तारीख इस प्रकार है :
तिमाही (क्वार्टर) | तिमाही अवधि (क्वार्टर पीरियड) | टीडीएस रिटर्न दाखिल करने की नियत तारीख |
1ली तिमाही | अप्रैल से जून | उसी वित्त वर्ष की 31 जुलाई को |
2री तिमाही | जुलाई से सितंबर | उसी वित्त वर्ष की 31 अक्तूबर को |
3री तिमाही | अक्तूबर से दिसंबर | उसी वित्त वर्ष की 31 जनवरी को |
4थी तिमाही | जनवरी से मार्च | अगले वित्त वर्ष की 31 मई को |
सैलरी (वेतन) में से कितनी टैक्स कटौती किए जाने की आवश्यकता है?
- व्यक्तियों द्वारा भुगतान करने के सबसे सामान्य प्रकारों में से एक है कर्मचारियों को दी जानेवाली सैलरी (वेतन)।
- इनकम टैक्स (आयकर) को संचालित करने वाले मौजूदा नियमों के अनुसार सैलरी इनकम (वेतन आय) से टीडीएस डिडक्ट (कटौती) करने का कोई फिक्स्ड रेट (निश्चित दर) नहीं है।
- यह कर्मचारी के टैक्सेबल इनकम (करयोग्य आय) पर लागू होनेवाले इनकम टैक्स स्लैब पर निर्भर करता है।
- इसके बाद एम्प्लॉयर (नियोक्ता) ‘इनकम टैक्स के एवरेज रेट/औसत दर’ के आधार पर टैक्स लाएबिलिटी (कर देयता) कैल्कुलेट करता है।
- एवरेज रेट/औसत दर का मतलब कुल टैक्स लाएबिलिटी (कर देयता) को कर्मचारी की कुल इनकम (आय) से विभाजित करना है।
- कुल टैक्स लाएबिलिटी (कर देयता) कैल्कुलेट करने के लिए सैलरी पर टैक्स डिडक्शन (कर कटौती) करने से पहले एम्प्लॉयर (नियोक्ता) कर्मचारी द्वारा किए गए सभी इन्वेस्टमेंट (निवेश) पर विचार करता है।
एक्जेम्प्शन :
यदि एस्टीमेटेड सैलरी (अनुमानित वेतन) बेसिक एक्ज़ेम्प्शन लिमिट (मूल छूट सीमा) से ज़्यादा न हो
तो स्त्रोत पर कोई टैक्ट डिडक्ट (कर कटौती) नहीं किया जाना चाहिए।
छूट प्राप्त भत्ते:
लीव ट्रैवल कन्सेशन (एलटीसी) /
यात्रा अवकाश छूट/
हाउस रेंट अलाउंस (एचआरए) /
गृह किराया भत्ता, कन्वेयेंस /
परिवहन, यात्रा जैसे भत्ते निर्धारित सीमा के अनुसार छूट प्राप्त (एक्ज़ेम्प्टेड) माने जाते हैं।
इसके साथ ही, टैक्सेबल इनकम कैल्कुलेट करने के लिए अन्य अनुलाभ (अतिरिक्त सुविधाएँ)
जो वेतन का भाग नहीं होते, उसे कर्मचारी के कुल सैलरी (वेतन) में से घटाया जाना चहिए।
अन्य कटौतियाँ:
अन्य कटौतियाँ भी होती हैं-
जैसे धारा 80सी, 80सीसीसी, 80 सीसीडी, 80सीसीजी, 80डी, 80डीडी, 80डीडीबी, 80ई और 80ईई
न पर वार्षिक आय कैल्कुलेट और सोर्स पर टैक्स डिडक्ट (स्त्रोत पर कर कटौती) करते समय विचार किया जाना चाहिए।
नोट:
इन डिडक्शन्स को क्लेम (कटौतियों का दावा पेश) करने के लिए व्यक्ति को इन्वेस्टमेंट (निवेश) करने और इन्हें घोषित करने की आवश्यकता है।
वित्तीय वर्ष के दौरान क्या टीडीएस राशि में बदलाव हो सकता है?
आमतौर पर, एम्प्लॉयर (नियोक्ता) कर्मचारी की नेट टैक्सेबल इनकम (निवल करयोग्य आय) के आधार पर टीडीएस डिडक्ट (कटौती) करता है।
मतलब ग्रॉस टैक्सेबल इनकम में से (एम्प्लॉई द्वारा दी गई जानकारी के आधार) धारा 80सी से 80 यू के अंतर्गत टैक्स सेविंग डिडक्शन्स को घटाना।
क्योंकि इनकम टैक्स की एवरेज रेट का कैल्कुलेशन कर्मचारी द्वारा की गई घोषणाओं या आगामी अवधि के लिए कर्मचारी के पूर्वानुमानित सैलरी के आधार पर किया जाता है,
इसमें निम्नलिखित परिस्थितियों में बदलाव हो सकता है :
- साल के दौरान कर्मचारी द्वारा प्राप्त किया गया कोई भी बोनस या सैलरी वृद्धि जो उनकी इनकम में और इसलिए पेयेबल टैक्स में वृद्धि करता है।
- (टैक्स सेविंग इन्वेस्टमेंट (कर बचत निवेश) के सबूत प्रस्तुत करना जो उन्होंने पहले प्रस्तुत नहीं किए थे
- (वास्तविक टैक्स सेविंग इन्वेस्टमेंट (कर बचत निवेश) राशि साल के शुरुआत में कर्मचारी द्वारा की गई घोषणा से कम है।
- कर्मचारी द्वारा नई नौकरी बदलने के मामले में
ऐसे मामलों में पहले की गई कम डिडक्शन (कटौती) को पूरा करने के लिए बाद के महीनों में अतिरिक्त टीडीएस डिडक्शन (कटौती) किया जाता है।
इसी तरह, यदि किसी कारणवश, एम्प्लॉयर (नियोक्ता) ने टीडीएस के हाईर रेट (उच्च दर) के अनुसार कटौती की है
तो आनेवाले महीनों में कुल टीडीएस को औसत करने के लिए कम टीडीएस काटा जाएगा।
टीडीएस रिफंड के लिए कैसे आवेदन करें?
- टीडीएस रिफंड दाखिल करने के लिए खाता क्रमांक और आईएफएससी कोड जैसे बैंक खाते का विवरण देना अनिवार्य होता है।
- ऐसा न कर पाने पर आपके लिए एक वैध फाइल नहीं बन पाएगी।
- यदि जितनी कटौती की जानी थी कोई उससे ज़्यादा टैक्स कटौती करता है,
- तो आपको इनकम टैक्स रिफंड किया जाएगा।
- जिसके लिए वार्षिक इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) दाखिल करते वक्त दावा प्रस्तुत किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए, आप एक ट्रान्स्पोर्ट एजेंसी के मालिक हैं और आपकी एक स्वामित्व वाली फर्म हैं।
- आपने रु. 20,000/- का एक इन्वॉइस प्रस्तुत किया है और भाड़े का भुगतान करनेवाले व्यक्ति ने (धारा 194सी के अंतर्गत रु. 1,000/- @ 2% की टैक्स कटौती करने के बाद) आपको रु. 19,600/- की नेट अमाउंट / निवल राशि का भुगतान किया है।
- इस मामले में टैक्स कटौती 1% दर के बजाय 2% के अनुसार की जाएगी और इसलिए रु. 200/- का अधिक टीडीएस काटा गया।
- इनकम टैक्स एक्ट, 1961 (आयकर अधिनियम,1961) के अनुसार इनकम टैक्स रिटर्न में यह रु. 200 का अधिक टीडीएस रिफंड के तौर पर सामने आएगा।
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उचित टीडीएस कटौती सुनिश्चित करें
- कमाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए सोर्स (स्त्रोत) पर टैक्स डिडक्शन (कर कटौती) एक अनिवार्य कानूनी बाध्यता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि किसी प्रकार की टैक्स चोरी नहीं हो रही है क्योंकि यह सोर्स (स्त्रोत) पर ही लगाया जाता है।
- प्रत्येक एम्प्लॉयर (नियोक्ता) व व्यक्ति को इस कटौती के लिए उचित ध्यान देना चाहिए।
- क्योंकि सोर्स पर डिडक्ट किया गया टैक्स (स्त्रोत पर की गई कर कटौती) फाइल/दाखिल न करने या देरी से फाइल/ दाखिल करने पर आर्थिक जुर्माना और दंड भरना होगा।
- आईटीआर कैसे भरा जाए इसके बारे में जागरुकता के साथ ही व्यक्तियों को अपनी ओर से एम्प्लॉयर (नियोक्ता)के साथ उचित दस्तावेज़ साझा करना चाहिए।
- इसके अलावा टीडीएस प्रावधानों में किसी भी तरह के अपडेट के लिए ऑनलाइन जाँच करनी चाहिए।
- यह सुनिश्चित करता है कि आपके एम्प्लॉयर (नियोक्ता)द्वारा आपके सैलरी इनकम (वेतन आय) से सोर्स (स्त्रोत) पर टैक्स कटौती की सही घोषणा हो।
- आपकी संस्था के स्तर पर किस तरह टीडीएस कैल्कुलेट किया जाता है
- इसे समझने के लिए आप टीडीएस कैल्कुलेटर्स का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- इनकम टैक्स दाखिल किए जाने के चरण से पहले टीडीएस कटौती की जाती है,
- इसलिए सुनिश्चित करें कि सही दिशा में बने रहने के लिए आप इसे अच्छी तरह समझ लें।
स्त्रोत:
https://www.incometaxindia.gov.in/pages/tax-laws-rules.aspx
https://www.incometaxindia.gov.in/tutorials/24.%20int.%20for%20delay%20in%20pymnt%20of%20tds.pdf