
देश के अल्पकालिक प्रधानमंत्रित्व काल में जिस शौर्य एवं साहस के साथ लालबहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) ने शासन किया, वह किसी अन्य प्रधानमंत्री के शासनकाल में नहीं दिखा। वह चाहे पाकिस्तान द्वारा छेड़े युद्ध का मुंहतोड़ जवाब हो, अमेरिका के गेहूं आयात बंद करने की धमकी को ठेंगा दिखाना हो, अथवा देश का समुचित विकास के लिए जवानों और किसानों को प्रेरित करने वाला ‘जय जवान जय किसान’ का नारा हो। छोटे कद और विशाल व्यक्तित्व वाले इस गुदड़ी के लाल (लाल बहादुर शास्त्री) ने ताउम्र सादगी, कठोर परिश्रम एवं ईमानदारी भरा जीवन जीया। लालबहादुर शास्त्री की 57वीं पुण्यतिथि पर बात करेंगे उनके जीवन के कुछ अनछुए एवं प्रेरक प्रसंग पर।
बचपन की वह दीक्षा/Childhood initiation
एक दिन छह वर्षीय बालक मित्रों के साथ बगीचे से फूल तोड़ने गया। बड़े बच्चों ने फूल तोड़ लिया, मगर छोटा होने के कारण बच्चा फूल नहीं तोड़ सका। तभी माली आ गया। बड़े बच्चे भाग गये। माली ने छोटे बच्चे को पकड़ कर गुस्से में पीट दिया। बच्चे ने कहा, आपने मुझे इसलिए पीटा क्योंकि मेरे पिताजी नहीं हैं। माली को बच्चे पर दया आ गई। उसने उसे प्यार से समझाया, बेटा तब तुम्हें और जिम्मेदार होना चाहिए। माली से पिटने पर बच्चा नहीं रोया था, मगर उसके समझाने पर बच्चे की आंखों में आंसू आ गये। उसने उसी समय कसम खाई कि आइंदा वह ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा, जिससे किसी को नुकसान हो। बड़ा होने पर वह बालक आजादी की लड़ाई में कूदा और एक दिन लाल बहादुर शास्त्री के नाम से प्रधानमंत्री पद को सुशोभित हुआ।
खादी के प्रति अनुराग/Passion for Khadi
एक बार शास्त्रीजी ने अपनी वह अलमारी खोली, जिसमें उनके फटे-पुराने अनयूज्ड खादी के कुर्ते रखे थे। उन्होंने कहा, ये कपड़े अनयूज्ड नहीं हैं। नवंबर में जब सर्दी शुरू होगी, तब ये कोट के अंदर पहने जा सकते हैं। कारीगरों ने इसे बड़ी मेहनत से बुने हैं। इसके एक-एक सूत काम आने चाहिए। यही नहीं जब वह कुर्ता बिलकुल ही पहनने लायक नहीं रह जाता था, तो शास्त्री जी उसे पत्नी ललिता जी को देते हुए कहते कि इसका रुमाल बना दो।
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उधारी पसंद नहीं/Don’t like borrowing
एक बार किशोर वय के शास्त्रीजी मित्रों के साथ गंगा पार गांव में मेला देखने गये। शाम को लौटते समय उन्होंने देखा कि उनके पास मल्लाह को देने के लिए एक पाई भी नहीं थी। वे नहीं चाहते थे कि उनका किराया उनके मित्र दें। उन्होंने मित्रों से कहा, मुझे अभी और मेला देखना है, तुम लोग जाओ। मित्रों की नाव जब आंखों से ओझल हो गई, तब शास्त्रीजी ने अपना कुर्ता-पायजामा उतारकर सर पर बांधा और नदी में उतर गये। पास खड़े मल्लाहों ने समझाया कि गंगा की धारा को काटना आसान नहीं होगा, वह चाहे तो अगले दिन पैसा दे देंगे। शास्त्री जी को उधारी पसंद नहीं थी और उन्होंने तैर कर गंगा पार कर लिया।
सस्ती साड़ी चाहिए/Need a cheap saree
एक बार शास्त्रीजी कुछ साड़ियां लेने दुकान पर पहुंचे। दुकानदार शास्त्री जी को अपनी दुकान में देख गौरवान्वित हो उठा। उसने शास्त्री जी का स्वागत-सत्कार किया। शास्त्रीजी ने कहा, वे जल्दी में हैं, चार-पांच साड़ियां दिखा दो। दुकानदार ने सबसे अच्छी साड़ियां निकाली, शास्त्रीजी ने उसकी कीमत देखकर कहा, इतनी महंगी नहीं कम कीमत की साड़ियां निकाले। दुकानदार ने कहा, आप हमारे दुकान पर आये हैं, आप कीमत की चिंता नहीं करें। शास्त्रीजी ने कहा, मैं जो कह रहा हूं, वैसा ही करो। अंततः दुकानदार ने थोड़ी सस्ती साड़ियां निकाली, लेकिन शास्त्रीजी को वे साड़ियां भी महंगी लगीं। शास्त्री जी ने सबसे सस्ती साड़ियां निकालने को कहा। मैनेजर ने संकोच करते हुए सस्ती साड़ियां निकलवाईं। शास्त्रीजी उनमें से कुछ साड़ियां चुनी। उसकी कीमत देकर वहां से चले गये।
ट्रेन में अपने लिए कूलर लगवाने का विरोध/Opt to have a cooler for yourself in the train
अपने रेल मंत्री कार्यकाल में एक बार शास्त्री जी रेल के प्रथम श्रेणी में बैठकर कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें ठंड लगी। उन्होंने अपने पीए कैलाश बाबू को बताया। उसने बताया कि इसमें कूलर लगाया है। यह जान शास्त्रीजी रुष्ठ होते हुए बोले, बिना मुझसे पूछे कूलर क्यों लगाया? क्या बाकी लोगों ने टिकट नहीं लिया है? कायदे से तो मुझे भी थर्ड क्लास में सफर करना चाहिए। आप अगले स्टेशन मथुरा पर ट्रेन के रुकने पर कूलर निकलवा दीजिए। आगे से ऐसा कोई भी काम मुझसे पूछे बिना नहीं होना चाहिए। अंततः मथुरा पर ट्रेन रुकते ही कूलर निकलवाया गया।
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