
भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार नए वर्ष का प्रारम्भ वर्षप्रतिपदा के दिन होता है। वर्षप्रतिपदा की तिथि निर्धारित करने के पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं।
सृष्टि की रचना का दिवस है वर्षप्रतिपदा
- ब्रह्मपुराण पर आधारित ग्रन्थ ‘कथा कल्पतरु’ में कहा गया है कि
- चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी।
- उसी दिन से सृष्टि संवत की गणना आरम्भ हुई।
- समस्त पापों को नष्ट करने वाली महाशांति उसी दिन सूर्योदय के साथ आती है।
कैसे करें वर्षप्रतिपदा का स्वागत
- वर्षप्रतिपदा का स्वागत किस प्रकार करना चाहिए इसका वर्णन भी हमारे शास्त्रों में मिलता है।
- सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की पूजा ‘ॐ’ का सामूहिक उच्चारण, नए पुष्पों, फलों, मिष्ठानों से युग पूजा और सृष्टि की पूजा करनी चाहिए।
- सूर्य दर्शन, सुर्यध्र्य प्रणाम, जयजयकार, देव आराधना आदि करना चाहिए।
- परस्पर मित्रों, सम्बन्धियों, सज्जनों का सम्मान, उपहार, गीत, वाध्य, नृत्य से सामूहिक आनंदोत्सव मनाना चाहिए।
- साथ मिल बैठकर आपसी भेदों को समाप्त करना चाहिए।
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सर्वश्रेष्ठ तिथि प्रतिपदा

- चूंकि यह ब्रह्मा द्वारा घोषित सर्वश्रेष्ठ तिथि है अत इसको प्रथम पद मिला है, इसलिए इसे प्रतिपदा कहते हैं।
- हमारा यह शास्त्रीय विधान पूर्णत: विज्ञान सम्मत है।
- जागरण के इस काल में हमें काल पुरुष जगा रहा है, ऐसी सनातन संस्कृति में मान्यता है।
- आइये, हम भी हिंदुत्व के उगते सूरज के सम्मान और अभ्यर्थना में उठ खड़े हों।
वैदिक शुभकामना
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्श्र्वा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:।
स्वस्ति नस्ताक्श्र्यो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पतिरदधातु।।
अर्थात, महान यशस्वी इंद्र एश्वर्य प्रदान करें, पूषा नामक सूर्य तेजस्विता प्रदान करें।
ताक्षर्य नामक सूर्य रसायन तथा बुद्धि द्वारा रोग-शोक का निवारण करें।
बृहस्पति नामक गृह सभी प्रकार के मंगल तथा कल्याण प्रदान करते हुए उत्तम सुख समृधि से ओतप्रोत करें।
उक्त मन्त्र में खगोल स्थित क्रान्तिव्रत के समान चार भाग के परिधि पर समान दूरी वाले चार बिन्दुओं पर पड़ने वाले नक्षत्रों का उल्लेख है।
क्रमशः इंद्र, पूषा ताक्षर्य एवं बृहस्पति अर्थात चित्रा, रेवती, श्रवण व् पुष्य नक्षत्रों द्वारा क्रान्ति व्रत पर 180 अंश का कोण बनता है।
यह वैदिक पुरुष द्वारा की गई जन कल्याण की कामना है।
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हिन्दू काल गणना पर आधारित वर्षप्रतिपदा

- वर्षप्रतिपदा हिंदू काल गणना पर आधारित है और इसके साथ अन्य कई वैज्ञानिक तथ्य भी जुड़े हैं।
- इसी दिन वासंतिक नवरात्रि का भी प्रारम्भ होता है।
- वर्ष प्रतिपदा से ही नौ दिवसीय शक्ति पर्व प्रारम्भ होता है।
- सनातनी हिंदू इसी दिन से शक्ति की भक्ति में लीन हो जाते हैं।
विभिन्न खंडकाल में वर्षप्रतिपदा
- सतयुग के खंडकाल में भारतीय (हिन्दू) नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रारंभ हुआ था
- क्योंकि इसी दिन ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि की रचना का प्रारंभ किया गया था।
- आगे चलकर त्रेतायुग में वर्षप्रतिपदा के दिन ही प्रभु श्रीराम का लंका विजय के बाद राज्याभिषेक हुआ था।
- भगवान श्रीराम ने वानरों का विशाल सशक्त संगठन बनाकर असुरी शक्तियों (आतंक) का विनाश किया था।
- इस प्रकार अधर्म पर धर्म की विजय हुई और रामराज्य की स्थापना हुई थी।
- अगले खंडकाल अर्थात द्वापर युग में युधिष्ठिर संवत का प्रारम्भ भी वर्षप्रतिपदा के दिन हुआ था।
- महाभारत के धर्मयुद्ध में धर्म की विजय हुई और राजसूय यज्ञ के साथ युधिष्ठिर संवत प्रारम्भ हुआ।
- कलयुग के खंडकाल में विक्रम संवत प्रारम्भ हुआ।
- सम्राट विक्रमादित्य की नवरत्न सभा की चर्चा आज भी चहुंओर होती है।
- यह भारत के परम वैभवशाली इतिहास का एक अति महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
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इस नवरत्न सभा में निम्नलिखित रत्न शामिल थे –
(1) धन्वन्तरि-आर्युवेदाचार्य;
(2) वररुचि-व्याकरणचार्य;
(3) कालीदास-महाकवि;
(4) वराहमिहिर-अंतरिक्षविज्ञानी;
(5) शंकु-शिक्षा शाश्त्री;
(6) अमरसिंह-साहित्यकार;
(7) क्षणपक-न्यायविद दर्शनशास्त्री;
(8) घटकर्पर-कवि;
(9) वेतालभट्ट-नीतिकार।
विश्व की सबसे प्राचीन है भारतीय कालगणना पद्धति
- भारतीय सनातन संस्कृति पर आधारित कालगणना को विश्व की सबसे प्राचीन पद्धति माना जाता है।
- दरअसल भारत में कालचक्र प्रवर्तक भगवान शिव को काल की सबसे बड़ी इकाई के अधिष्ठाता होने के चलते ही उन्हें महाकाल कहा गया।
- कलयुग में विक्रमादित्य द्वारा नए संवत का प्रारम्भ विदेशी आक्रमणकारियों से भारत की मुक्ति के महाअभियान की सफलता का प्रतीक है।
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हमारा राष्ट्रीय पंचांग

- स्वतंत्र भारत की सरकार द्वारा राष्ट्रीय पंचांग निश्चित करने का निश्चय किया गया था।
- प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. मेघनाद साहा की अध्यक्षता में एक इसके लिए ‘कलैंडर रिफार्म कमेटी’ का गठन किया गया।
- वर्ष 1952 में ‘साइंस एंड कल्चर’ पत्रिका में प्रकाशित एक प्रतिवेदन के अनुसार,
- लगभग पूरे विश्व में लागू ईसवी सन का मौलिक सम्बंध ईसाई पंथ से नहीं है।
- यह यूरोप के अर्धसभ्य कबीलों में ईसामसीह के बहुत पहले से ही चल रहा था।
- इसके अनुसार एक वर्ष में 10 महीने और 304 दिन ही होते थे।
- वर्ष के कैलेंडर में जनवरी एवं फरवरी माह तो बाद में जोड़े गए हैं।
- पुरानी रोमन सभ्यता को भी तब तक ज्ञात नहीं था कि सौर वर्ष और चंद्रमास की अवधि क्या थी।
- यही दस महीने का साल वे तब तक चलाते रहे जब तक उनके नेता सेनापति जूलियस सीजर ने इसमें संशोधन नहीं कर लिया।
- ईसा के 530 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद, ईसाई बिशप ने पर्याप्त कल्पनाएं कर 25 दिसम्बर को ईसा का जन्म दिवस घोषित किया।
- वर्ष 1572 में तेरहवें पोप ग्रेगोरी ने कैलेंडर को दस दिन आगे बढ़ाकर 5 अक्टोबर (शुक्रवार) को 15 अक्टोबर माना,
- जिसे ब्रिटेन द्वारा 200 वर्ष उपरांत अर्थात वर्ष 1775 में स्वीकार किया गया।
- साथ ही, यूरोप के कैलेंडर में 28, 29, 30, 31 दिनों के महीने होते हैं, जो विचित्र है।
- क्योंकि यह न तो किसी खगोलीय गणना पर आधारित हैं और न ही किसी प्रकृति चक्र पर।
- उक्त वर्णित कारणों के चलते कैलेंडर रिफोर्म कमेटी ने विक्रम संवत को राष्ट्रीय संवत बनाने की सिफ़ारिश की थी।
- विक्रम संवत, ईसा संवत से 57 साल पुराना था।
- परंतु, दुर्भाग्य से भारत में अंग्रेज़ी मानसिकता से ग्रसित लोगों के यह सुझाव पसंद नहीं आया।
- इसके चलते देश में यूरोप के कैलेंडर को लागू कर दिया गया।
- हालांकि, विदेशी सिद्धांतो पर आधारित गणनाओं में कई विसंगतियाँ पाई गई हैं।
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कैलेंडर का इतिहास
- चिल्ड्रन्स ब्रिटानिका के प्रथम खंड (1964) में कैलेंडर का इतिहास बताया गया है।
- इसमें यह बताया गया है कि अंग्रेजी कैलेंडरों में अनेक बार गड़बड़ हुई हैं
- समय-समय पर इनमेव कई संशोधन करने पड़े हैं।
- इनमें माह की गणना चंद्र की गति से और वर्ष की गणना सूर्य की गति पर आधारित है।
- आज भी इसमें कोई आपसी तालमेल नहीं है।
- ईसाई मत में ईसा मसीह का जन्म इतिहास की निर्णायक घटना मानी गई है।
- अतः कालक्रम को BC (Before Christ) और AD (Anno Domini) अर्थात In the year of our Lord में बांटा गया।
- किंतु, यह पद्धति ईसा के जन्म के बाद भी कुछ सदियों तक प्रचलन में नहीं आई थी।
- इसके साथ ही, आज के ईस्वी सन का मूल रोमन संवत है।
- यह ईसा के जन्म के 753 वर्ष पूर्व रोम नगर की स्थापना से प्रारम्भ हुआ।
- तब इसमें 10 माह थे (प्रथम माह मार्च से अंतिम माह दिसम्बर तक) वर्ष होता था 304 दिन का।
- बाद में राजा नूमा पिंपोलियस ने दो माह (जनवरी एवं फरवरी) जोड़ दिए।
- तब से वर्ष 12 माह अर्थात 355 दिन का हो गया।
- यह ग्रहों की गति से मेल नहीं खाता था, तब जूलियस सीजर ने इसे 365 और 1/4 दिन का करने का आदेश दे दिया।
- इसमें कुछ माह 30 दिन व कुछ माह 31 दिन के बनाए गए और फरवरी के लिए 28 दिन अथवा 29 दिन बनाए गए।
- पश्चिमी कैलेंडर में इस प्रकार गणनाएं प्रारम्भ से ही अवैज्ञानिक, असंगत, असंतुलित विवादित एवं काल्पनिक रहीं।
- इसके विपरीत सनातन हिंदू संस्कृति पर आधारित काल गणना पूर्णतः वैज्ञानिक सिद्ध पाई गईं हैं।
- इस दृष्टि से वर्षप्रतिपदा का महत्व अपने आप ही बढ़ जाता है।
- भारत में आज हिंदू सनातनियों द्वारा वर्षप्रतिपदा के दिन ही नए वर्ष का प्रारम्भ माना जाता है।
- वर्ष भर की काल गणना भी हिंदू सनातन संस्कृति के आधार पर की जाती है, जिसे अति शुभ माना गया है।
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नोट – यह लेख सामान्य जानकारियों पर आधारित है। यदि आपको पसंद आए तो अधिक से अधिक शेयर करें। अपने विचार और सुझाव कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। धन्यवाद।

