
भूमिका (Introduction: Meaning of Vijayadashami)
भारत में हर त्यौहार सिर्फ रीति-रिवाज़ों का नहीं, बल्कि गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संदेशों का संगम होता है। विजयादशमी या दशहरा भी ऐसा ही पर्व है। शहरी, कस्बाई और ग्रामीण क्षेत्रों में रावण-दहन की तैयारियों के बीच असली सवाल यह है कि क्या दशहरा सिर्फ आतिशबाज़ी और पटाखों की गूंज में सीमित है या इसमें जीवन का कोई बड़ा संदेश छिपा है?
दशहरे की परंपरा मात्र रस्म बन गई है (Dussehra as a Ritual)
आज हमारे समाज में दशहरे का उत्सव कई जगह केवल एक औपचारिकता बनकर रह गया है।
- रावण दहन विशालकाय पुतलों, चमकदार आतिशबाज़ियों और भारी शोर के साथ संपन्न होता है।
- लोग कुछ क्षणों के लिए बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीकात्मक आनंद लेते हैं।
- लेकिन अगले ही दिन से अधिकांश लोग फिर अपनी पुरानी आदतों, दैनिक स्वार्थों और सामाजिक कुरीतियों में उलझ जाते हैं।
इस प्रकार दशहरे का असली उद्देश्य – आत्मपरिवर्तन और समाज सुधार – कहीं पीछे छूट जाता है।
विजयादशमी का वास्तविक संदेश (True Message of Vijayadashami)
विजयादशमी का अर्थ है साहस और संकल्प का जागरण। यह पर्व हमें प्रेरणा देता है कि:
- सत्य को पहचानने और अपनाने का साहस करें।
- जीवन से नकारात्मक शक्तियों को मिटाने का संकल्प लें।
- धर्म, न्याय और सद्भाव की राह पर दृढ़ रहें।
पौराणिक संदर्भ (Mythological Inspirations)
भगवान श्रीराम और रावण वध (Lord Rama and Ravan Vadh)
मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम ने विजयोत्सव की भूमिका दशहरे के दिन ही रची थी।
- महर्षि के आश्रम में उन्होंने “निशिचर हीन करौं महि” का संकल्प लिया।
- अनेक संघर्षों और कठिनाइयों के बाद विजयादशमी के दिन रावण का वध करके अपने संकल्प को सार्थक किया।
यह प्रसंग बताता है कि दृढ़ संकल्प और न्यायप्रिय साहस से असत्य और अधर्म का नाश अवश्य होता है।
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दुर्गा का महिषासुर मर्दन (Durga and Mahishasura Mardan)
मां आदिशक्ति दुर्गा ने शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों तक असुरों से युद्ध किया और दशमी तिथि पर महिषासुर तथा शुंभ-निशुंभ का वध किया।
- यह घटना इस पर्व का दूसरा बड़ा आधार है।
- विजयादशमी देवी दुर्गा की उस शक्ति और विजय की स्मृति है, जो हमें मनोबल और आत्मबल को पुष्ट करने की शिक्षा देती है।
क्रांतिकारियों की दृष्टि (Revolutionary Views)
महान स्वतंत्रता सेनानियों ने भी इस पर्व को उच्च आदर्शों से जोड़ा।
- रामप्रसाद बिस्मिल कहते थे: “विजयादशमी साहस और संकल्प का पर्व है। साहस का प्रयोग आतंक और अन्याय के खिलाफ होना चाहिए, अपनों पर नहीं। इसी तरह संकल्प भी अहंकार के लिए नहीं, देश के लिए होना चाहिए।”
- चंद्रशेखर आज़ाद भी इस पर्व को उत्साह से मनाते थे और इसे राष्ट्र-निर्माण की प्रेरणा मानते थे।
इस प्रकार दशहरे को सामाजिक और राष्ट्रीय एकता से भी जोड़ा गया है।
आज के संदर्भ में दशहरा (Dussehra in Modern Context)
वर्तमान समय में विजयादशमी का संदेश और भी प्रासंगिक है।
- आज साहस का प्रयोग अक्सर विनाशकारी दिशा में हो रहा है – लड़ाई-झगड़े, सांप्रदायिकता और तोड़-फोड़ में।
- संकल्प की शक्ति भी सकारात्मक निर्माण की बजाय व्यक्तिगत अहंकार और स्वार्थ में व्यर्थ की जा रही है।
आवश्यकता है कि साहस और संकल्प की ऊर्जा को-
- जातिवाद और आतंकवाद की जड़ें काटने में,
- सामाजिक समरसता एवं सौहार्द बढ़ाने में,
- अनीति और कुरीतियों को मिटाने में,
- राष्ट्र की अखंडता को सुरक्षित रखने में नियोजित किया जाए।
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दशहरे का सही उत्सव (The True Celebration of Vijayadashami)
यदि हम वास्तव में दशहरा मनाना चाहते हैं तो केवल रावण का पुतला जलाने से नहीं होगा।
- हमें अंदर बैठे रावण – जैसे घृणा, लालच, हिंसा, स्वार्थ और अहंकार – का नाश करना होगा।
- हमें साहसिक संकल्प लेना होगा कि हम जीवन और समाज की बुराइयों के विरुद्ध संघर्ष करेंगे।
- तभी यह पर्व अपने उद्देश्य को पूरा करेगा।
निष्कर्ष (Conclusion)
विजयादशमी न केवल एक धार्मिक उत्सव है बल्कि साहस और संकल्प की महान शिक्षा है।
आज आवश्यक है कि हर व्यक्ति यह संकल्प ले कि वह—
- सत्य और न्याय की राह चलेगा,
- समाज से दुष्प्रवृत्तियों का अंत करेगा,
- राष्ट्र की एकता, सौहार्द और अखंडता को मजबूत करेगा।
तभी हम कह पाएंगे कि हमने वास्तविक दशहरा मनाया और अपनी संस्कृति की जड़ों को सार्थक किया।
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