
अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस का उद्देश्य (Purpose of International Day of Persons with Disabilities)
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) हर साल 3 दिसंबर को “अंतर्राष्ट्रीय विकलांग व्यक्ति दिवस” (International Day of Persons with Disabilities – IDPD) के रूप में मनाता है। इसका उद्देश्य है दुनिया भर में विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों, कल्याण, और समान अवसरों को बढ़ावा देना।
इस अवसर पर WHO अपने जिनेवा मुख्यालय में विशेष आयोजन करता है, जिसमें लोगों को शिक्षित किया जाता है, संवेदना व जागरूकता बढ़ाई जाती है, और सरकारों को नीति निर्माण में विकलांगजन की भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जाता है। हर साल इस अवसर पर global report on Health and Equality for Persons with Disabilities जारी की जाती है।
दिव्यांगता सबसे प्रमुख सामाजिक चुनौती (Disabilities is one of the main social challenges)
संयुक्त राष्ट्र के 17 सतत विकास लक्ष्यों का उद्देश्य है वर्ष 2030 तक गरीबी मिटाना और वैश्विक समानता सुनिश्चित करना। इन लक्ष्यों को पाने के लिए हमें 169 प्रकार की असमानताओं को दूर करना होगा — जिनमें दिव्यांगता सबसे प्रमुख सामाजिक चुनौती है।
वैश्विक परिदृश्य: कितने लोग हैं दिव्यांग? (Global Overview: How Many People Are Disabled?)
विश्व स्तर पर लगभग 1.3 अरब लोग किसी न किसी रूप में विकलांगता का अनुभव करते हैं — यानी कुल विश्व जनसंख्या का लगभग 16 प्रतिशत।
यदि दिव्यांग लोगों को एक देश माना जाए, तो यह संख्या भारत और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आबादी होती। यह तथ्य ही बताने के लिए पर्याप्त है कि दिव्यांगता केवल चिकित्सा या सामाजिक विषय नहीं, बल्कि मानवता और नीति का प्रश्न है।

भारत में दिव्यांगजनों की स्थिति (Status of Disability in India)
भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 2.68 करोड़ लोग किसी न किसी स्तर की विकलांगता से पीड़ित हैं। इनमें से:
- 56% पुरुष (लगभग 1.5 करोड़)
- 44% महिलाएं (लगभग 1.18 करोड़)
यह आबादी देश की कुल जनसंख्या का लगभग 2.21 प्रतिशत है।
भारत में दिव्यांगजन मुख्यतः इन वर्गों में आते हैं:
- दृष्टिबाधित (Blind or Partially Blind)
- श्रवण-बाधित (Hearing Impaired)
- वाणी-बाधित (Speech Impaired)
- मानसिक रूप से अस्वस्थ (Mentally Ill)
- कुष्ठ रोगी (Leprosy Affected)
- गतिशीलता सीमित (Physically Disabled)
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अंतर्राष्ट्रीय तुलना (International Comparison of Disability)
दुनिया भर में विभिन्न समुदायों और देशों के बीच विकलांगता की दर में बड़ा अंतर है:
- अमेरिका के आदिवासी समुदायों में विकलांगता दर सबसे अधिक – लगभग 16%
- अफ्रीकी मूल के लोग – लगभग 11%
- श्वेत लोग – करीब 9%
- हिस्पैनिक आबादी – लगभग 7%
- एशियाई मूल के लोग – लगभग 4%
ग्रामीण इलाकों में संसाधनों की कमी के कारण विकलांगता का प्रभाव अधिक गहरा दिखाई देता है, जबकि शहरी क्षेत्रों में तकनीकी सहायता कुछ अंतर पैदा कर देती है।
नीति बनाम व्यवहार (Policy vs Practice)
कागज़ पर दुनिया के लगभग सभी देश यह दावा करते हैं कि विकलांग व्यक्तियों को समान अधिकार और अवसर मिलेंगे। परंतु व्यवहार में ऐसा बहुत कम होता है।
भारत में भी यही चुनौती देखी जाती है — स्वास्थ्य, शिक्षा, और रोजगार में दिव्यांगजनों को पर्याप्त अवसर नहीं मिलते।
समस्या दया की नहीं, सक्षम वातावरण की है। यदि दिव्यांगजनों को प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर दिए जाएं, तो वे किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह समाज में योगदान दे सकते हैं। कई दिव्यांग व्यक्तियों ने अपनी प्रतिबद्धता और मेहनत से असाधारण उपलब्धियाँ हासिल की हैं।
सहानुभूति नहीं, अवसर चाहिए (Not Sympathy, But Opportunity)
दिव्यांगजनों को दया की नहीं, बल्कि अवसर और सशक्तिकरण की आवश्यकता है। यदि सरकार और समाज मिलकर उन्हें सही दिशा और प्रशिक्षण दें, तो उनके जीवन की गुणवत्ता में गहरा परिवर्तन सम्भव है।
भारत में आज भी अनेक दिव्यांगजन भीख पर आश्रित जीवन जीने को विवश हैं। लेकिन यदि उन्हें हुनर, शिक्षा, या डिजिटल स्किल्स में प्रशिक्षित किया जाए, तो ऐसे 90% लोग आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
राज्य और समाज दोनों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे दिव्यांग व्यक्तियों को सम्मानजनक रोजगार, बेहतर चिकित्सा, और सुलभ शिक्षा के समान अवसर प्रदान करें।
सरकारों की भूमिका (The Role of Governments)
दिव्यांगजनों के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकारों को सतर्क और संवेदनशील नीति बनानी चाहिए।
मुख्य पहलें होनी चाहिए:
- समावेशी शिक्षा (Inclusive Education) – प्रत्येक विद्यालय में सुलभता और विशेष शिक्षण सहायता।
- रोजगार आरक्षण (Employment Reservation) – शारीरिक रूप से सक्षम क्षेत्रों में उपयुक्त पद।
- सुलभ अवसंरचना (Accessible Infrastructure) – सार्वजनिक स्थानों, परिवहन और सरकारी इमारतों में समावेशी डिज़ाइन।
- डिजिटल पहुंच (Digital Accessibility) – वेबसाइट, ऐप, और ऑनलाइन संसाधनों में दिव्यांग अनुकूल तकनीकें।
- स्वास्थ्य सुविधा (Health Access) – ग्रामीण स्तर पर विशेष पुनर्वास केंद्रों की स्थापना।
इन पहलों से दिव्यांगजनों को वह सामाजिक प्रतिष्ठा और आत्मनिर्भरता मिलेगी, जिसके वे हकदार हैं।
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सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव (Changing Social Attitudes)
समाज को दिव्यांगजनों को “कमज़ोर” नहीं बल्कि “क्षम” मानना होगा। दया के बजाय सम्मान और प्रोत्साहन की संस्कृति विकसित करनी चाहिए।
समावेशी सोच से ही सामाजिक विकास संभव है। प्रत्येक नागरिक की भागीदारी – चाहे वह दृष्टिबाधित हो या शारीरिक रूप से सीमित – समाज की समग्र प्रगति में योगदान करती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
दिव्यांगजन समाज का अभिन्न अंग हैं। यदि हम उन्हें दया या दुर्बलता के स्थान पर समान अवसर और सशक्तिकरण के दृष्टिकोण से देखें, तो समाज अधिक न्यायसंगत और संवेदनशील बनेगा।
“दिव्यांगजनों के लिए, दिव्यांगजनों के साथ” का भाव तब ही सार्थक है जब सरकार, समाज और संस्थाएं मिलकर समानता की दिशा में ठोस कदम उठाएं।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि विकास तभी पूर्ण है जब वह समावेशी हो।
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