Sunday, September 14, 2025
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वरलक्ष्मी व्रत पूजा विधि/Varalakshmi Vrat Puja Vidhi

 

वरलक्ष्मी व्रत पूजा विधि/Varalakshmi Vrat Puja Vidhi
वरलक्ष्मी व्रत पूजा विधि/Varalakshmi Vrat Puja Vidhi

वरलक्ष्मी व्रतम, जिसे वरलक्ष्मी नोमु या वरलक्ष्मी पूजा के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो मुख्य रूप से भारत के दक्षिणी राज्यों, विशेष रूप से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार धन और समृद्धि की हिंदू देवी, देवी लक्ष्मी को समर्पित है।

वरलक्ष्मी व्रत की उत्पत्ति प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों में से एक, स्कंद पुराण की एक कथा से जुड़ी है। यह कथा चारुमति नाम की एक पतिव्रता स्त्री के इर्द-गिर्द घूमती है, जो कुंडिना नगर में रहती थी।

स्कंद पुराण के अनुसार, चारुमति एक कुलीन और धर्मपरायण महिला थीं जो अपने परिवार और देवी लक्ष्मी की अगाध भक्ति करती थीं। एक दिन, उन्हें स्वप्न में देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं और उन्होंने वरलक्ष्मी व्रत के महत्व के बारे में बताया। देवी ने बताया कि श्रद्धा और निष्ठा से व्रत करने से चारुमति की मनोकामनाएँ पूरी होंगी और उनके परिवार का कल्याण होगा।

इस दिव्य रहस्योद्घाटन से उत्साहित होकर, चारुमति जाग उठी और तुरंत अपने सपने के बारे में अपनी सहेलियों और पड़ोसियों को बताया। यह खबर तेज़ी से फैली और जल्द ही शहर की कई महिलाओं ने अपने परिवार के कल्याण के लिए देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए व्रत रखना शुरू कर दिया।

हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, वरलक्ष्मी व्रत आमतौर पर श्रावण (जुलाई-अगस्त) माह की पूर्णिमा से पहले वाले शुक्रवार को मनाया जाता है। इस दिन, विवाहित महिलाएँ सुबह जल्दी उठती हैं, स्नान करती हैं और पारंपरिक परिधान पहनती हैं। वे अपने घर के प्रवेश द्वार पर एक सुंदर और जटिल रंगोली बनाती हैं और फूलों, फलों और अन्य प्रसाद से सजी एक विस्तृत पूजा स्थल स्थापित करती हैं।

पूजा का मुख्य भाग देवी लक्ष्मी के प्रतीक कलश (पवित्र पात्र) की पूजा करना है। कलश को चावल और जल से भरकर, आम के पत्तों से सजाया जाता है और उसके ऊपर एक नारियल रखा जाता है। इसके बाद महिलाएँ प्रार्थना करती हैं, भक्ति गीत गाती हैं और पारंपरिक आरती करती हैं। पूजा के बाद, वे बड़ों से आशीर्वाद लेती हैं और अपने परिवार की खुशहाली, समृद्धि और सुख के लिए देवी लक्ष्मी से आशीर्वाद मांगती हैं।

वरलक्ष्मी व्रत दिव्य स्त्री ऊर्जा का उत्सव है और विवाहित महिलाओं द्वारा देवी लक्ष्मी के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करने का एक तरीका है। यह त्योहार पारिवारिक एकता, प्रेम और घर की समृद्धि एवं सद्भाव के लिए आशीर्वाद मांगने के महत्व को पुष्ट करता है। यह महिलाओं के लिए एक साथ आने, अपने अनुभव साझा करने और समुदाय के भीतर अपने बंधन को मजबूत करने का अवसर भी प्रदान करता है।

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कब है वरलक्ष्मी व्रत ?/When is Varalakshmi Vrat?

हिंदू पंचांग के अनुसार साल 2025 में वरलक्ष्मी व्रत 8 अगस्त, शुक्रवार को रखा जाएगा, यह दिन श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पड़ता है. शुक्रवार और लक्ष्मी का गहरा संबंध माना जाता है और इस दिन इन्द्र योग और सुकर्मा योग जैसे शुभ संयोग भी बन रहे हैं, जो पूजा के फल को और भी प्रभावशाली बनाते हैंI

वरलक्ष्मी व्रत का पौराणिक महत्व/Mythological importance of Varalakshmi Vrat

वरलक्ष्मी व्रत की कथा देवी पार्वती और भगवान शिव से जुड़ी है. एक बार माता पार्वती ने शिवजी से पूछा कि कौन-सा व्रत महिलाओं के लिए सबसे कल्याणकारी है, तब शिवजी ने वरलक्ष्मी व्रत की महिमा बताई. मान्यता है कि जो स्त्री इस व्रत को नियमपूर्वक करती है, उसके जीवन में अष्टलक्ष्मी, धन, धान्य, संतान, विद्या, धैर्य, विजय, वीरता और गज लक्ष्मी का वास होता हैI

वरलक्ष्मी व्रत की पूजा विधि/Worship method of Varalakshmi fast

वरलक्ष्मी व्रत पूजा विधि/Varalakshmi Vrat Puja Vidhi

स्नान और संकल्प– सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें, फिर व्रत का संकल्प लें,

कलश स्थापना– लकड़ी के पाटे पर लाल या पीले कपड़े को बिछाएं. उस पर थोड़ा सा चावल रखें और उस पर एक कलश स्थापित करेंI कलश में जल, सुपारी, हल्दी, एक सिक्का और अक्षत डालें, ऊपर आम के पत्ते और नारियल रखेंI

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मां लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापना– कलश के पास मां लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें, उन्हें फूल, चावल, कुमकुम, हल्दी आदि अर्पित करेंI

आरती और कथा– मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें और फिर वरलक्ष्मी व्रत कथा पढ़ें या सुनें, कथा में माता चारुमती की कहानी आती है, जिनके व्रत से पूरी नगरी समृद्ध हो गई थी

भोग अर्पण– मां लक्ष्मी को खीर, फल, पायसम, नारियल, मिठाई और दक्षिण भारतीय व्यंजन अर्पित करेंI

सौभाग्य सामग्री का आदान-प्रदान– व्रतधारी महिलाएं एक-दूसरे को सुहाग की चीज़ें (चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी, मेहंदी आदि) भेंट करती हैं और आशीर्वाद लेती हैंI

प्रसाद वितरण और व्रत समापन– अंत में प्रसाद सभी को वितरित करें और व्रत का समापन करें, कुछ महिलाएं अगले दिन व्रत खोलती हैं, जबकि कुछ इसी दिन संध्या को भोजन करती हैंI

किसे करना चाहिए यह व्रत?/Who should observe this fast?

यह व्रत विवाहित महिलाओं के लिए विशेष रूप से शुभ माना गया हैI वे इसे अपने पति की लंबी उम्र, परिवार की खुशहाली और सौभाग्य के लिए करती हैं वहीं कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की कामना से इसे कर सकती हैंI

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– सारिका असाटी

 

 

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