राम और सभाजन रहे आश्चर्यचकित
एक बार एक कुत्ता राजा राम के दरबार में फरियाद लेकर आया। उसने राजा रामचंद्रजी से ब्राह्मण के लिए जो सजा की मांग की, उसे सुनकर सभा में सभी आश्चर्यचकित रह गए।
- राम का राज्याभिषेक हुए अरसा गुज़र चुका था।
- रामराज्य में प्रजा चैन की वंश बजा रही थी।
- कहीं कोई अशान्ति नहीं थी।
- हर किसी को न्याय मिलता था।
- फरियादी को राम के पास पहुँचने में कोई अड़चन नहीं थी।
- दिन हो या रात, सोते-जागते, किसी भी समय फरियादी राम तक अपनी फरियाद लेकर जा सकता था।
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विचित्र फरियादी
- एक बार भगवान् राम अपने दरवार में बैठे थे।
- इतने में लक्ष्मणजी हाथ जोड़कर उनके सामने आ खड़े हुए।
- राम ने पूछा, “क्या बात है, लक्ष्मण? कुछ कहना चाहते हो? निर्भय होकर कहो।”
- “भगवन्, आज आपके द्वार पर एक विचित्र फरियादी खड़ा हुआ है।
- अनुमति हो तो उसे भीतर बुलाया जाये।” लक्ष्मण ने कहा।
- “उसे अविलम्ब मेरे सामने लाया जाये।” राम ने आदेश दिया।
- एक हृष्ट-पुष्ट झवरा-झबरा कुत्ता, दरबार में हाज़िर किया गया।
- उसका सिर फटा हुआ था, वह एकदम लहूलुहान था।
- “श्वानराज, यह क्या हुआ? किसने तुम्हारी यह दुर्दशा की?
- तुम निर्भय होकर अपनी बात कह सकते हो।”
- भगवान् राम ने कुत्ते को देखकर कहा।
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कुत्ते ने कहा
- “महाराज, मैं एक अधम कुत्ता हूँ।
- मेरा कोई अपराध नहीं मैं व्यर्थ भौका भी नहीं था।
- मैंने किसी को काटा भी नहीं, फिर भी एक ब्राह्मण ने मेरा मस्तक डण्डे के प्रहार से फोड़ डाला। दुहाई है महाराज, मेरा न्याय करें।”
- कुत्ते ने अपनी फरियाद सुनायी।
- “वह अभियुक्त ब्राह्मण दरबार में लाया जाये।”
दरबार में अभियुक्त
- राजा राम ने हुक्म दिया। ब्राह्मण दरबार में हाज़िर हुआ।
- “आपके विरुद्ध इस श्वान ने शिकायत की है कि आपने इस बेकसूर श्वान का सिर अकारण फोड़ दिया।
- आपको इस शिकायत के बारे में कुछ कहना है?” भगवान् रामचन्द्र ने उस ब्राह्मण से पूछा ।
- “महाराज, में अपना अपराध स्वीकार करता हूँ।
- इस श्वान ने मेरा कोई अपराध नहीं किया था, मैं ही घर से झुंझलाहट में झल्लाकर बाहर आया था।
- यह श्वान अचानक सामने पड़ गया।
- इसने न तो मुझे काटा और न ही यह मुझ पर भौंका,
- मैंने नाहक ही इसका सिर फोड़ दिया।
- महाराज, मैं अपराधी हूँ, आप जो उचित समझें वह सजा मुझे दें।”
- ब्राह्मण ने बिना किसी हीले-हवाले के अपना अपराध स्वीकार लिया।
- “श्वान, तुम्हारे अपराधी ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है,
- अब तुम ही बतलाओ, इन्हें ऐसी क्या सजा दी जाये, जिससे तुम सन्तुष्ट हो,
- तुम्हें पूरा-पूरा सही-सही न्याय मिल सके।” भगवान् श्रीराम ने श्वान से पूछा।
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विचित्र सजा
- “कालिंजर मठ के मठाधीश का पद रिक्त है, महाराज, इन्हें मठाधीश बना दिया जाये।”
- कुत्ते ने विनयपूर्वक निवेदन किया।
- “क्या कहते हो, श्वान? मठाधीश होने के बाद तो यह चैन की वंशी बजायेगा, खूब हलुआ-पूड़ी खायेगा।
- यह दण्ड है या पुरस्कार!” रामचन्द्रजी ने आश्चर्य से पूछा।
- “महाराज, कालिंजर मठ का वह मठाधीश, जो मर गया है और जिसके मरने से वह पद खाली हुआ है, मैं ही हूँ।
- महाराज, मठाधीश होने के बाद आदमी स्वभावतः ऐसे कर्म करता ही है कि उसको अगले जन्म में कुत्ता होना पड़ता है।
- मठाधीश महाराज, होने के बाद, अगले जन्म में यह भी कुत्ता ही होगा और तब बिना किसी अपराध कोई इसका माथा फोड़ेगा।
- महाराज, तभी मेरा न्याय पूरा होगा।”
- कुत्ते ने अपनी बात पूरी की। सभी आश्चर्य से कुत्ते का मुँह देखते रह गये ।
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यह कथा लोक मान्यताओं पर आधारित है। यह कंटेंट किसी की भी भावनाओं को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं लिया गया है।
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