
माघ पूर्णिमा का दिन भारतीय संस्कृति में धर्म, आस्था और दान का विशेष पर्व माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दान और भगवान विष्णु की आराधना से जीवन में पवित्रता और आध्यात्मिक उन्नति का संचार होता है। इस बार की माघ पूर्णिमा और भी खास है क्योंकि इस बार की माघ पूर्णिमा प्रयागराज में 144 वर्षों बाद आयोजित हो रहे महाकुंभ के विशेष कालखंड में पड़ रही है।
माघ पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त/ Magh Purnima date and auspicious time
इस बार की माघ पूर्णिमा 11 फरवरी 2025 को सायं 6 बजकर 55 मिनट पर शुरू होगी; जिसका समापन अगले दिन 12 फरवरी को शाम 7 बजकर 22 मिनट पर होगा। हिन्दू धर्म में उदयातिथि की मान्यता है। इसलिए माघ पूर्णिमा 12 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी।
माघ पूर्णिमा का महत्व/ Importance of Magh Purnima
माघ पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान और दान से मनुष्य सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है। यह दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत फलदायी माना जाता है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि माघ मास में जो व्यक्ति नित्य स्नान, जप और दान करता है, वह मोक्ष का अधिकारी बनता है। इस दिन उपवास और भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व है।
विशेष रूप से प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर इस बार माघ पूर्णिमा का स्नान इसलिए भी खास माना जा रहा है क्योंकि 144 वर्षों बाद आने वाले इस कालखंड का धार्मिक महत्व और अधिक बढ़ गया है।
दान की महिमा/ glory of charity
इस दिन दिया गया दान कई गुना पुण्य फल प्रदान करता है। शास्त्रों में कहा गया है कि दान देने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है। इस दिन “दानं प्रतिपालयेत्” के सिद्धांत को अपनाना चाहिए।
दान या देने का कार्य व्यक्ति को भौतिक जीवन के दुखों से छुटकारा पाने और मन की शांति, पारलौकिक आनंद प्राप्त करने में मदद करता है, जो मोक्ष प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। दान हमेशा फलता है और व्यक्ति को सुख-संपत्तिवान और वैभवशाली बनाता है। दान की भावना प्रत्येक व्यक्ति के मन में होनी चाहिए। चाहे कोई व्यक्ति कम धन अर्जित करे या ज्यादा, सब को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए।
दान का महत्व भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा है; इसे पुण्य और आशीर्वाद का एक प्रमुख स्रोत माना गया है। शास्त्रों में दान को सर्वोत्तम कार्य माना गया है, क्योंकि समाज की भलाई करने के साथ ही आत्मा की शुद्धि का भी कारण बनता है।
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श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने दान के महत्व को बताते हुए कहा है
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।।
अर्थात् जो दान किसी उद्देश्य के बिना, बिना किसी स्वार्थ के और निःस्वार्थ भाव से दिया जाता है, वही सात्त्विक दान कहलाता है।
यह दान उस समय, स्थान और पात्र के अनुसार होना चाहिए, जिसमें यह उपयुक्त हो। भगवान श्री कृष्ण ने पार्थ से सात्त्विक दान की विशेषताओं को बताया है और यह बताया है कि दान का वास्तविक मूल्य तब है जब यह बिना किसी अपेक्षाओं और स्वार्थ के किया जाता है।
यज्ञदानतपःकर्म नित्यं सम्प्रतपस्विन:।
आधारं श्रद्धया युक्तं तं दानं धर्मनिष्ठितम्॥
अर्थात् दान को श्रद्धा और निष्ठा से किया जाना चाहिए, तभी वह सच्चे अर्थों में धर्मयुक्त होता है।
दान से न केवल देने वाले का पुण्य बढ़ता है, बल्कि यह समाज में सहयोग और सहानुभूति की भावना भी उत्पन्न करता है, जिससे समाज में सकारात्मक बदलाव आता है।
माघ पूर्णिमा पर इन चीजों का करें दान/ Donate these things on Magh Purnima
माघ पूर्णिमा पर अन्न के दान को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस दिन दान देकर में स्नान और आत्मशुद्धि के लिए पधारे श्रद्धालुओं को भोजन कराने के सेवा प्रकल्प में सहयोग करके पुण्य के भागी बनें।
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माघ पूर्णिमा पौराणिक कथा/ Magh Purnima mythology
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु क्षीर सागर में विश्राम कर रहे थे तो उस समय नारद जी प्रकट हुए नारद जी को देख प्रभु श्री हरि विष्णु ने कहा कि हे महर्षि आपके आने की क्या कारण है तब नारद जी ने बताया कि मुझे ऐसा कोई उपाय या सुझाव बताएं जिसे करने से लोगों का कल्याण हो सके तब श्री हरि विष्णु जी ने कहा कि जो साधक संसार के सुखों को भोगना चाहता है और मृत्यु के बाद परलोक या बैकुंठ की प्राप्ति का वरदान चाहता है तो वह पूर्णिमा तिथि के दिन पूरी श्रद्धा और आराधना से सत्यनारायण कि पूजा-अर्चना और कथा करनी होगी |इसके बाद नारद मुनि जी ने प्रभु श्री हरि विष्णु ने व्रत विधि के बारे में विस्तार से ज्ञान दिया| साथ ही विष्णु जी ने कहा कि इस व्रत में दिन भर उपवास रखना शुभ माना जाता है और शाम को भगवान सत्य नारायण की कथा और पाठ करना चाहिए और प्रभु को भोग अर्पित करें,ऐसा करने से सत्यनारायण देव प्रसन्न हो कर अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
धार्मिक परंपरा के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान और पूजा–अर्चना करने से पापों से छुटकारा मिलता है, साथ ही जीवन में सुख–समृद्धि और पितरों के दोषों से मुक्ति भी प्राप्त होती है।
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