
देवी की आराधना और समाज में बेटियों का स्थान (Worship of Goddess and Position of Girls in Society)
भारत में देवी पूजा को अत्यंत पवित्र माना जाता है, विशेषकर नवरात्रि में जहां देवी के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। लेकिन ऐसे देश में जहाँ देवी की उपासना होती है, वहां बेटियों के प्रति भेदभाव और कन्या भ्रूण हत्या होना विडंबना है।
लोकसंख्या आँकड़ों के अनुसार, कई राज्यों में खासकर उत्तर भारत में लिंगानुपात गंभीर रूप से खराब रहा है, जहां 1000 लड़कों के मुकाबले कुछ सौ ही लड़कियां बची हैं। यह स्थिति नैतिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से चिंता का विषय है।[भारतीय सरकारी आंकड़े]
कन्या भ्रूण हत्या और सामाजिक जागरूकता (Female Foeticide and Social Awareness)
हाल के वर्षों में कड़े कानूनों जैसे कि ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ ने इस स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया है। सरकारी योजनाओं और अभियान की वजह से कुछ प्रदेशों में लिंगानुपात में सुधार जरूर आया है।
फिर भी, भ्रूण हत्या की घटनाएं पूरी तरह समाप्त नहीं हुई हैं। यह सामाजिक चेतना को पूरी तरह से जगा रही है कि लड़कियों का सम्मान करें और भ्रूण हत्या जैसे अपराध को रोका जाए।[सरकार][मीडिया रिपोर्ट]
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जन्म से मृत्यु तक बेटियों के साथ भेदभाव (Discrimination Against Girls From Birth to Death)
भेदभाव केवल भ्रूण हत्या तक सीमित नहीं है, यह जन्म के बाद भी घर और समाज में जारी रहता है। खासकर पैदाइशी बेटियों को शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य अवसरों में समान अधिकार नहीं मिल पाते।
कई मामलों में बेटियों को नौकरियॉ, सामाजिक गतिविधियों और परिवार में सम्मान नहीं मिलता। यहां तक कि नवरात्रि जैसे देवी का पर्व मनाने के बाद भी घरों में बेटियों के प्रति पूर्वाग्रह खत्म नहीं हो पाते।[सामाजिक रिपोर्ट]
बेटियों का महत्त्व और भारतीय समाज की भूमिका (Importance of Daughters and Role of Indian Society)
बहुत से ग्रामीण तथा शहरी इलाकों में बेटियां खेती, घर-गृहस्थी और व्यवसाय में निम्नतम नहीं, बल्कि स्तंभ के रूप में काम करती हैं। महिलाओं का आर्थिक योगदान कई राज्यों में पुरुषों से भी अधिक है।
नवरात्रि के पर्वों में बेटियों का सम्मान करने की परंपरा है, जैसे कि ‘कन्या भोज’, जो धीरे-धीरे घर-परिवार के प्रति जागरूकता बढ़ाने का माध्यम बन रहा है। हमें यह बनाए रखना होगा और बेटियों के प्रति भेदभाव को समाप्त करना चाहिए।[स्थानीय परंपरा][सांस्कृतिक विश्लेषण]
मोदी सरकार का बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान (Narendra Modi Government’s Beti Bachao Beti Padhao Campaign)
2014 के बाद से मोदी सरकार ने ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान को पूरे देश में प्रोत्साहित किया है। इसका उद्देश्य भ्रूण हत्या रोकना और लड़कियों को शिक्षा एवं स्वास्थ्य में बराबरी दिलाना है।
अतिरिक्त सामाजिक कार्यक्रम, जागरूकता अभियान और आर्थिक प्रोत्साहन मुख्य स्तंभ हैं। यह अभियान धीरे-धीरे परिणाम दे रहा है, खासकर उन राज्यों में जहां पहले लिंगानुपात बहुत खराब था।[सरकारी दस्तावेज][योजना रिपोर्ट]
नवरात्रि और बेटियों पर दोहरे मानदंडों का विरोध (Opposition to Dual Standards on Girls During Navratri)
नवरात्रि में बेटियों की पूजा करने और सम्मान करने के बाद भी समाज में उनका भेदभाव सलामत रहता है। यह दोहरा मानदंड धार्मिक आस्था की चुनौती है।
सच्ची श्रद्धा तभी होगी जब पूरी सामाजिक व्यवस्था बेटियों के पक्ष में होगी। बेटियों को पूरी स्वतंत्रता, सुरक्षा, शिक्षा और सम्मान देना होगा। तभी मां दुर्गा की पूजा का वास्तविक अर्थ होगा।[सामाजिक आलोचना]
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बेटियों के प्रति बराबरी का संदेश (Message of Equality for Girls)
बेटियों को हर रूप में समान दर्जा देने की जरूरत है। परिवारों को, समाज को और शासन व्यवस्थाओं को इस दिशा में प्रयास तेज करने होंगे।
जब घर में बेटियों के प्रति भेदभाव खत्म होगा, तभी हसन मजबूत समाज बनेगा और बेटियों को अनुभाग एवं अधिकार प्राप्त होंगे। सामाजिक जागरूकता और कानूनी कदमों को साथ में आगे बढ़ाना होगा।[सामाजिक जागरूकता][कानून]
निष्कर्ष (Conclusion)
देवी पूजक समाज में बेटियों के प्रति भेदभाव का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। नवरात्रि जैसे पवित्र पर्व का उद्देश्य केवल देवी की आराधना नहीं बल्कि सामाजिक एकता और समानता का संदेश भी है।
हमें संकल्प लेना होगा कि बेटियों की हत्या, उत्पीड़न और भेदभाव को रोका जाए। बेटियां ही समाज का भविष्य हैं, और उनका सम्मान करना हमारा धर्म और कर्तव्य है।
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