जब हम मेरा-तेरा, मोह- माया से अपना ध्यान हटाकर ‘स्व’ पर केंद्रित करते हैं, तब हमें परम आनंद का अनुभव होता है। सृष्टि की उत्पत्ति ही परम आनंद से हुई है और अंत में सबको उसी में लीन होना है। आइए, इस बारे में जानते हैं सद्गुरु रमेश जी की सीख-
स्व पर केंद्रित हो ध्यान
- सृष्टि की चौरासी लाख योनियों में केवल मनुष्य ही सुख की अनुभूति कर सकता है।
- इस चराचर जगत की उत्पत्ति ही परम आनंद से हुई है और अंत में सबको उसी में लीन होना है।
- प्राकृतिक रूप से मनुष्य का मन भीतर से आनंद और उल्लास से भरा है।
- परंतु बाहरी वस्तुओं से मन इतना प्रभावित हो जाता है कि वह भीतरी शाश्वत आनंद को भूल जाता है। जीवन भर सुख-दुख, खुशी-गम, प्रसन्नता-अप्रसन्नता में झूलता रहता है।
- जब हम मेरा-तेरा, मोह- माया से अपना ध्यान हटाकर ‘स्व’ पर केंद्रित करते हैं
- तब हमें आंतरिक आनंद की अनुभूति होती है।
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सांसारिक आनंद है अस्थाई
- हमारे मन, बुद्धि और इंद्रियों की सीमा है, लेकिन आनंद असीम और अनंत है।
- इसीलिए जब हम सांसारिक वस्तुओं को प्राप्त करके खुशी पाना चाहते हैं तो वह खुशी सदा नहीं रह पाती।
- क्योंकि संसार की कोई भी चीज स्थायी है ही नहीं।
- सांसारिक चीजों को पाने से खुशी मिलती है तो उनके खोने से दुख भी होता है ।
जीवनशैली सुधारने से मिलेगा परम आनंद
- परम आनंद की स्थिति पाने के लिए हमें अपनी जीवन शैली में कुछ चीजों को शामिल करना चाहिए । प्रतिदिन विश्व के सभी जीवों के सुख की प्रार्थना करें।
- सभी जीवों से जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे और उन्हें क्षमा करें।
- जहां तक संभव हो सबकी प्रशंसा करें।
- सभी में चेतना के दर्शन करते हुए उनके साथ व्यवहार करें, न कि संबंध, आयु, पद-प्रतिष्ठा, परिस्थिति आदि के आधार पर।
गुरु-शरण में है परम आनंद
- किसी भी संत, गुरु या ज्ञानी की शरण में हमें स्वत: ही आनंद की अनुभूति होती है।
- इससे यह सिद्ध होता है कि आनंद का भंडार तो हमारे भीतर ही है।
- लेकिन हमारी दृष्टि स्वयं उस पर नहीं जा पाती क्योंकि दृष्टि संसार में रहती है।
- जब-जब हम किसी संत की कृपा से भक्ति, ध्यान, योग, सत्संग आदि से जुड़ते हैं
- तब-तब हमें आनंद की अनुभूति होती है।
आनंद भाव में रहें स्थित
- इस आनंदित अवस्था को बनाए रखने के लिए हर कार्य आनंद के भाव में स्थित होकर करें न कि आनंद पाने के लिए।
- आनंद को अपने व्यवहार का अंग बना कर हम सदा आनंद में रहते हुए जीते जी परमानंद में लीन हो सकते हैं ।
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