Saturday, September 21, 2024
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जैन धर्म में ‘क्षमा पर्व’ / On Forgiveness In Jainism

मिच्छामी दुक्कड़म/ Michhami Dukddam

जैन धर्म में 'क्षमा पर्व' / On Forgiveness In Jainism
जैन धर्म में ‘क्षमा पर्व’ / On Forgiveness In Jainism

मिच्छामी दुक्कड़म आज जैन धर्म का संवत्सरी पर्व है, जिसका दूसरा नाम क्षमा वाणिका पर्व भी है इस क्षमा वाणिका पर ‘मिच्छामी दुक्कड़म ‘’ कहकर सभी से माफी मांगी जाती है जैन  धर्म  के मुताबिक, मिच्छामी का अर्थ क्षमा करने से और दुक्कड़म का अर्थ गलतियों से है क्षमाभाव ही इसका मूलमंत्र है। जैन धर्म में ‘क्षमा पर्व’

‘’खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे।

मित्तिमे सव्व भुएस्‌ वैरं ममझं न केणई।‘’

अर्थात सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ मेरा बैर नहीं है।

मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कड़म/ WISH,PROMISE,BODY IS Michhami Dukddam

जैन धर्म के मूल सिद्धान्तो के अनुसार जैसी हमारी आत्मा है  वैसी ही लोक के सभी जीवो की पृथक पृथक आत्मा है। इसलिये प्रत्येक जीव अपने कर्मो का कर्त्ता भी है और भोक्त्ता भी है।

इस तथ्य के आधार पर सभी जीव अपने आयुष्य कर्म के अनुसार अपने जीवनकाल में पूर्व जन्मों और कुछ इस जीवन के भी जो उदय में आ रहे है  कर्मो के अनुसार कर्मों को भोगते समय अन्य जीवो के प्रति जो राग, द्धेष, मोह आदि करता है उसके कारण नये कर्मो का बंध भी अवश्य करता है और उनका भुगतान हमें भावी भवों में करना पङेगा।

इन कर्मो के क्षय किये बिना हम हमारे अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते। इस दौरान हमारा प्रयास यह होना चाहिये कि भविष्य के भावी भवों हेतु कम से कम कर्मो का बंध करे ताकि धीरे धीरे सभी कर्मो का क्षय कर सके।

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इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु हमारा प्रयास यह होगा कि इस भव में हम किसी भी प्राणी की तन , मन, धन, वचन आदि से किसी भी प्रकार की हिंसा करे नहीं, करावे नहीं और करते हुए की अनुमोदना भी न करें ,ताकि हिंसा से हो रहे कर्म बंधन से बचाव हो सके।

जैन धर्म को एक दूसरे से जोड़ता है ये शब्द मिच्छामी दुक्कड़म/This Word Michhami Dukddam connects Jainism to each other

व्यवहार में हमारें जीवन जीने हेतु अनेक जीवों की हिंसा न चाहते हुए भी करनी पङती है जैन दर्शन के अनुसार पानी, वनस्पति आदि में भी सुक्ष्म जीव होते है। इन प्राणियो की हिंसा भाव से नहीं करे तो भी द्रव्य से तो हो ही जाती है। उन सभी जीवों के प्रति हमने जो हिंसा का अपराध किया है उस हिंसा के लिये हार्दिक भाव से माफी मांगने हेतु हमें उन सभी जीवों से क्षमायाचना करनी चाहिये।

वर्तमान समय में जो व्यवहार से क्षमायाचना पर्व मनाया जा रहा है, उसके अनुसार हमने हमारे रिश्तेदारों, मित्रों, जान-पहिचान वालों,या जिनसे हमारा सम्पर्क हुआ है उन सभी मनुष्यों से किसी भी प्रकार से उपरोक्त वर्णित तथ्यों के आधार पर जो हिंसा की है,दुखः पहुचाया हो, या अन्य किसी भी प्रकार से ठेस पहुंचायी हो तो क्षमा याचना चाहते है।

स्वयं क्षमायाचना करने के पश्चात जिनसे क्षमायाचना की है उनसे भी विनती करता है कि आप भी मेरी सभी भूलों के लिये अपना बङपन दिखाते हुए मुझे भी क्षमा करावे।

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सभी को मिच्छामि दुक्कड़म/ Michhami Dukddam to all

जैन धर्म में 'क्षमा पर्व' / On Forgiveness In Jainism

क्षमा करने और क्षमा चाहने के बाद साधक के भाव यह होने चाहिये कि लोक के सभी जीवों से मेरी मित्रता है और किसी से भी आज के बाद प्रयास करुगां कि मेरा कोई भी शत्रु नहीं रहे,ऐसे मेरे ये भाव यथासंभव सदा रहे।

भावार्थ यह है कि जगत के सभी जीवों से मेरा मैत्री भाव रहे और जो किसी भी कारण से द्वेष हुआ है , वह स्वयं के कर्मो के कारण है और इसमें किसी का कोई दोष नहीं है।अहंकार भाव का त्याग होने पर ही यह संभव है।

यह आध्यात्मिक पर्व है और सभी देशों के नागरिक इसकी समझ कर पालना करे तो विश्व शान्ति संभव है।इसलिये इसको विश्व मैत्री पर्व भी कह सकते है।

हम कभी ना कभी जाने अनजाने में किसी अन्य व्यक्ति को दुखी कर देते हैं ऐसे में यदि हम उस व्यक्ति के समक्ष जाकर “मिच्छामी दुक्कड़म बोल दें तो सारी कड़वाहट मिठास में परिवर्तित हो जाती है और रिश्तों में एक नया भाव भी उत्पन्न होने लगता है. किसी पर्व के दिन किसी कार्य को करना अनिवार्य होता है, तो ठीक उसी प्रकार से पर्यूषण पर्व के दिन “मिच्छामि दुक्कड़म” कहने का अपना एक अलग ही महत्व है।

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यह लेख एक सामान्य जानकारी पर आधारित है लेख पसंद आए तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।अपने विचार और सुझाव कमेंटबॉक्स में जरूर लिखें।

जैन धर्म में 'क्षमा पर्व' / On Forgiveness In Jainism
सारिका असाटी

 

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