गांधी का सच्चा भारत/Gandhi’s True Indiaएक साधारण व्यक्ति जो पहले दक्षिण अफ्रीका जाता है, और वहां कुछ बातें समझता है, सीखता है। तमाम उसकी सीमाएं और कोई बहुत नैसर्गिक प्रतिभा का धनी नहीं था। अधिकारियों के सामने खड़े हो जाते तो अपनी बात रखना मुश्किल हो जाता था। खुद ही बोलते हैं कि आवाज नहीं निकलती थी, आत्मविश्वास की इतनी कमी थी, ऐसा व्यक्तित्व था गांधी का। लेकिन दक्षिण अफ्रीका में देखा कि कुछ अन्याय हो रहा है तो उसके खिलाफ खड़े हो गए। उनकी प्रैक्टिस अच्छी चल रही थी और फिर विदेश में ही उनका व्यवसाय भी काफी अच्छा चलने लगा, लोगों से सम्मान भी मिलने लगा।
भारत लौटने के बाद संघर्ष और दृष्टिकोण/Struggle and perspective after returning to India
इतना सब हासिल करने के बावजूद भी वे भारत लौट आते हैं और पहले कुछ साल बस चुपचाप समझने की कोशिश करते हैं कि यहां हो क्या रहा है और जब समझते हैं क्या हो रहा है, तो कहते हैं कि मैं अपना ये सूट, कोट पैंट पहन कर इन लोगों के पास जाऊं कैसे? बोले अब इनके पास अगर जाना ही है तो इन्हीं के जैसा हो कर जाऊंगा, दरिद्रनाथ की सेवा में लगना है तो कैसे मैं उसके सामने अंग्रेज बन के खड़ा हो जाऊं। ऐसे इंसान थे
1922 का भारत और ब्रिटेन की ताकत/1922 Power of India and Britain
जरा आज से ठीक सौ साल पहले के भारत में जाना, 1922 के भारत में। और सौ साल पहले के ब्रिटेन को सोचना जहां कभी सूरज अस्त नहीं होता था, जिन्होंने जर्मनी को एक नहीं दो बार परास्त करा था। ऐसे गुलाम भारत में क्या कोई इंसान हिंसा के लिए यहां के दुर्बल, दरिद्र लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार कर सकता था? स्वयं भारतीय क्या तैयार थे इसके लिए?
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गांधी और ब्रिटेन के खिलाफ आर्थिक संघर्ष/Economic struggle against Gandhi and Britain
भारत से जो कच्चा माल निर्यात होता था उसमें बहुत ज्यादा अनुपात में सब ब्रिटेन की टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए ही इस्तेमाल होता था। और उसकी जो एक्पोर्ट डेस्टिनेशन थी वो भारत थी। जैसे आज का अमेरिका है, उससे लगा लो दस गुना ज्यादा ताकतवर तब का ब्रिटेन था। अंग्रेजों को जबर्दस्त चोट दी थी गांधी ने।
ये तो विदेशी कपड़ों की होली जलाया करते थे। कोई हल्की चीज नहीं थी यह। मैनचेस्टर से जाकर पूछो कि गांधी का वहां क्या नाम था और क्या छवि थी।
गांधी के नैतिक और सामाजिक सिद्धांत/Gandhi’s Ethical and Social Theory
गांधी कहते थे-
यह सब व्यापारी हैं, सभी पैसे के भूखे हैं। इन्हें भारत से जो पैसा मिल रहा है, भारत को लूट-लूट कर के लंदन मोटा रहा है। मैं भारत की लूट रुकवाऊंगा। और उस लूट को रुकवाने के लिए ही उन्होंने यह सब रास्ते चुने, चाहे खादी हो या नमक सत्याग्रह हो। जो उनके धुर्र विरोधी थे वो भी कभी यह नहीं कह पाए कि बंदा हल्का है, चर्चिल को कोफ्त थी गांधी से।
राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस और नैतिक हथियार/Round Table Conference and Moral Arms
कभी गूगल करके राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस लंदन की देखिएगा वहां वो सारे बैठे हुए हैं सूट ही नहीं गर्म सूट पहनकर के और उनके बीच में बैठे एक नंगे आदमी ने बाकी सब में हीन भावना भर दी थी, ठंड नहीं लग रही और यह एक मोरल वेपन (नैतिक हथियार) था जिसका उन्होंने इस्तेमाल किया, जैसे कह रहे हों-
अरे मैं भारतीय हूं और अकेला हूं, मेरे पास संख्या नहीं है, मेरे पास बल नहीं है, मेरे पास पैसा भी नहीं है लेकिन देखो मेरे सामने तुम सब लज्जाए बैठे हो।
गांधी की लोकप्रियता और उनके आलोचक/Popularity of Gandhi and his critics
कौन कह रहा है कि गांधी को तुम देवता या भगवान का दर्जा दे दो, लेकिन इंसान को इंसान की तरह तो देखो न। मरने के बाद उनके चरित्र का नाश कर रहे हो, ये बिलकुल शोभा नहीं देता। सौ उनमें खोट थी, कौन इंकार कर सकता है लेकिन उनसे कोई बेहतर अगर था तो वहां खड़ा हो जाता देशवासी उसके साथ चल देते गांधी, पर कोई खड़ा नहीं हुआ। गांधी को महात्मा इस देश ने बनाया है तो अगर हमें गांधी की प्रसिद्धि इत्यादि की समस्या है तो दोष देशवासियों को देना चाहिए, गांधी को नहीं।
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गांधी का जनसाधारण के बीच जीवन/Gandhi’s life among the masses
देशवासियों को प्यार हो गया था गांधी से, वे स्वयं तो लोगों से मुहब्बत की भीख नहीं मांग रहे थे। लोगो को अच्छा लगता था 12 हड्डी का आदमी चला आ रहा है और तेजी से चल रहा है और चलता ही जा रहा है, रुकते ही नहीं। एक गांव से दूसरे गांव भाग रहा है, ये कर रहा है, वो कर रहा है। लोगों को बड़ा अच्छा लगा, दोष देना है तो देशवासियों को दो।
उन्होंने थोड़े ही कहा था मुझे महात्मा बोलो।
निष्कर्ष और सीख/Conclusion and learning
देखो, कोई आवश्यकता नहीं है कि आप गांधी की विचारधारा पर चलें, बिल्कुल नहीं। उनकी बहुत सारी बातें हैं विशेषकर जो उनके आर्थिक क्षेत्र में सिद्धांत थे, वो अगर आज लागू कर दिए जाएं, तो उसके परिणाम बहुत भयानक हो जाएंगे। तो एक निष्पक्ष चिंतन होना चाहिए जो बातें ठीक नहीं है, उनको अस्वीकार कर दो और जो सही है, सराहनीय हैं, उन पर एक बार तो विचार करो, उसका असली मूल्य समझो।
मत चलो उनके सिद्धांतों पर, मत मानो उनके आदर्शों को, लेकिन उनको एक बार ठीक से पढ़ लो, जान लो, वैसा कोई आदमी आज भी खड़ा हो जाए तो सबको बहुत अच्छा लगेगा, आसान नहीं होता गांधी बनना।
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