हकीकत या अंग्रेजों का रचा झूठा फसाना? Reality or a false trap created by the British?

हिन्दुस्तानियों पर अपने अत्याचारों के लिए अंग्रेज़ इतिहास में दर्ज कलकत्ता की कालकोठरी का किस्सा सुनाते हैं।
मानों हिंदुस्तानियों ने उनके साथ ऐसा बुरा सुलूक न किया होता, तो अंग्रेज़ भी हिंदुस्तानियों पर कभी अत्याचार न करते।
आइए जानते हैं ये हकीकत है या अंग्रेजों का रचा झूठा फसाना है? –
इतिहास की खुलती परतें/ unfolding layers of history
- लंबे समय तक अंग्रेज़ों की इस झूठी कहानी को लोग सही मानते रहे हैं,
- लेकिन अब जैसे-जैसे इतिहास की परतें खुल रही हैं,
- तो कलकत्ता की कालकोठरी की क्रूर कहानी के सामने प्रश्नचिन्ह लगता जा रहा है।
- जैसे-जैसे शोध हो रहे हैं, वैसे-वैसे साबित हो रहा है कि
- यह षड़यंत्री कहानी अंग्रेज़ों का एक फरेबी झूठ था।
- बहरहाल, क्रूरता से भरी कलकत्ता की कालकोठरी का किस्सा कुछ यूं है –
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कलकत्ता का फोर्ट विलियम/ Fort William in Calcutta

- माना जाता है कि 17वीं शताब्दी के अंत में जब मुगलों की ताकत बहुत कम हो गई थी।
- अलग-अलग सूबों में नवाब राज कर रहे थे।
- उन दिनों भारत में ब्रिटिशर्स के पास गिने-चुने किले थे।
- इनमें से एक कलकत्ता का फोर्ट विलियम भी था।
- फोर्ट विलियम पर कब्जे के लिए फ्रेंच भी कोशिश कर रहे थे।
- इसलिए अंग्रेज़ों ने उसकी सुरक्षा बढ़ा दी।
- लेकिन बंगाल के तत्कालीन नवाब सिराजुद्दौला ने जब अंग्रेज़ों से किले में बढ़ाये गये सैनिकों के बारे में पूछताछ की,
- वे नवाब को संतोषजनक जवाब नहीं दे सके।
- न सिर्फ संतोषजनक जवाब नहीं दिया बल्कि तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर ने नवाब को इस संबंध में कोई जवाब ही नहीं दिया।
- यह बात सिराजुद्दौला को बहुत खराब लगी।
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सिराजुद्दौला का कलकत्ता कूच/ Siraj-ud-daulah marched to Calcutta
- वह 16 जून 1756 को 50 हजार सैनिकों की अपनी फौज लेकर मुर्शिदाबाद से कलकत्ता के लिए कूच कर गया।
- 19 जून को नवाब की सेना फोर्ट विलियम के बाहर खड़ी थी,
- जिसमें 500 से ज्यादा हाथी और 50 तोपें थीं।
- जब फोर्ट विलियम के गर्वनर जान ड्रेक को यह सब पता चला तो वह जान बचाने के लिए भाग निकले।
- वो कुछ खास लोगों, महिलाओं और बच्चों को लेकर हुगली नदी में खड़े एक जहाज के जरिये भाग गए।
अंग्रेज़ों की गलतफहमी/ misunderstanding of the british
- जब नवाब सिराजुद्दौला की सेना फोर्ट विलियम के बाहर खड़ी थी।
- उस समय हालवेल नाम का एक टैक्स कलेक्टर फोर्ट के अंदर 170 सैनिकों के कमांडर के रूप में मौजूद था।
- अंग्रेजों को यह गलतफहमी थी कि सिराजुद्दौला एक दिन के भीतर सरेंडर कर देगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
- उलटे करीब 24 घंटे के भीतर जॉन हालवेल ने ही सिराजुद्दौला के सामने समर्पण कर दिया।
- उसे नवाब के सामने पेश किया गया।
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जॉन हालवेल ने बताया/ John Hallwell told

- नवाब तब तक उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण बरताव कर रहे थे यह बताया जॉन हालवेल ने।
- हालवेल ने लिखा है कि नवाब ने उनसे वायदा किया कि उनके लोगों के साथ नरमदिली से पेश आया जायेगा।
- कहते हैं शाम तक सब कुछ ठीकठाक रहा।
- लेकिन शाम को अचानक नवाब के सैनिकों और ब्रिटिश फौजियों में तनातनी हो गई।
- यह स्थिति तब ज्यादा खराब हो गई जब एक अंग्रेज़ फौजी ने नवाब के सैनिक पर पिस्तौल तान ली।
- बाद में यह खबर सिराजुद्दौला के पास पहुंची।
- कहते हैं सिराजुद्दौला ने अपने कमांडर से पूछा कि इन लोगों के साथ क्या सुलूक किया जाए,
- तो कमांडर ने कहा, फिलहाल तो इन दोनों को कालकोठरी में बंद कर दिया जाए,
- अगले दिन देखा जायेगा कि इनके साथ क्या हो?
- हालवेल के मुताबिक फिर वही हुआ जिसकी कहानी हर अंग्रेज़ बार बार सुनाता रहा है।
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नवाब सिराजुद्दौला का आदेश/ Order of Nawab Sirajuddaulah

- कहानी के मुताबिक 20 जून 1756 को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने एक आदेश दिया।
- आदेश के तहत 146 अंग्रेज बंदियों को जिनमें कई स्त्रियाँ और बच्चे भी थे, एक 18 फुट लंबी और 14 फुट 10 इंच चौड़ी कोठरी में ठूंस दिया गया।
- इसके बाद 23 जून की सुबह जब कोठरी का दरवाजा खोला गया तो उसमें सिर्फ 23 लोग ही जिंदा थे,
- बाकी सबकी दम घुटकर मौत हो चुकी थी।
- जीवित बचने वालों में वह सैनिक अधिकारी हालवेल भी था।
- जिसे कुछ इतिहासकार इस षड्यंत्रकारी कहानी का रचनाकार मानते हैं।
अंग्रेज़ों का झूठा फसाना/ fallacy of british

- बहरहाल, अंग्रेज़ जो दशकों तक नमक-मिर्च लगाकर जो कहानी सुनाते और बताते रहे,
- उसके मुताबिक उस कोठरी में अंग्रेज़ कैदी भूसे की माफिक भरे गये थे।
- भयानक गर्मी में जल्द ही उनका बुरा हाल होने लगा।
- लोग प्यास से तड़पने लगे। यहां तक कि कई ने प्यास में एक-दूसरे का पसीना और मूत तक पिया।
- फिर भी ज्यादातर कैदी अपनी जान नहीं बचा सके।
- दो दिन बाद जब काल-कोठरी का दरवाजा खुला तो महज 23 लोग जिंदा थे।
- बाकी सब लोग मुर्दे के ढेर में तब्दील हो चुके थे।
- अंग्रेजों ने इस कहानी को प्लासी के युद्ध की पृष्ठभूमि के तौरपर भुनाया।
- और जल्द ही भारत में उनका साम्राज्य स्थापित हो गया।
- विस्तृत शोध अध्ययन का निष्कर्ष
- मगर सवाल है कि क्या यह कहानी वाकई सही है?
- तमाम इतिहासकारों ने अपने विस्तृत शोध अध्ययन के जरिये यह साबित किया है
- कि यह वास्तव में अंग्रेज़ों द्वारा किया गया झूठ का प्रोपेगंडा था।
- इनके मुताबिक अंग्रेज़ों ने अपने लोगों में भारतीयों के प्रति घृणा भरने करने के लिए यह कहानी गढ़ी थी।
- ऐसा मानने वाले सिर्फ भारतीय इतिहासकार ही नहीं हैं
- बल्कि कई इंग्लिश इतिहासकारों को भी हालवेल द्वारा बताये गये उन लोगों में से सभी का ब्यौरा कभी नहीं मिला,
- जो हालवेल के मुताबिक 146 लोग थे।
- अब तक इस घटना को लेकर कई दर्जन शोध हो चुके हैं।
- अलग-अलग इतिहासकारों के मुताबिक कोठरी में बंद किये जाने वाले लोगों की तादाद महज 56 से 65 के बीच थी।
- प्रसिद्ध इतिहासकार यदुनाथ सरकार ने भी लिखा है कि
- हालवेल ने जिन लोगों को कोठरी में मारे जाने की बात कही है, वो दरअसल लड़ाई में मारे गये थे।
- अंग्रेज हालांकि बार-बार इस कहानी को दोहराते रहे,
- लेकिन अपनी तमाम शोध प्रवृति के बावजूद वे कभी उन सभी लोगों को खोज ही नहीं पाए,
- जिनके मारे जाने या बलिदान की कहानी प्रचलित है।
- हां, इतिहास यह जरूर साबित करता है कि ये घटना हुई थी।
- मगर ऐसी नहीं जैसी कि अंग्रेज बता रहे हैं- इसमें सच्चाई बहुत कम, कहानी बहुत ज्यादा है।
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