Saturday, September 13, 2025
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आहार-विहार पर ध्यान दें

आहार के साथ विहार पर भी ध्यान दें
आहार के साथ विहार पर भी ध्यान दें

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए उचित आहार के साथ-साथ विहार पर भी पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है। निम्न सुझावों पर चिंतन-मनन कर उन्हें अपनी प्रकृति का अंग बना लेना चाहिए। आहार-विहार पर ध्यान दें

बराबर श्रम/ Equal labour

आहार के साथ विहार पर भी ध्यान दें

  • हर मनुष्य के लिए श्रम बहुत अधिक आवश्यक है। इसके बिना सभी कल पुर्जे जकड़ जाते हैं।
  • आहार के पचने और रक्त के दौड़ने में बाधा पड़ती है। बराबर श्रम हमारी जीवनचर्या में जुड़ा होना ही चाहिए।
  • श्रम कीउपयोगिता निस्संदेह बहुत अधिक है।
  • शारीरिक अंगों के परिचालन, रक्त संचार की क्रियाशीलता तथा पाचन संयंत्रों की सुदृढ़ता बनाए रखने के लिए परिश्रम का बड़ा महत्त्व है।
  • आलस्य में समय गंवाने तथा श्रम से बचे रहने वाले कब्ज, गैस, सिरदर्द, मधुमेह व गठिया जैसे रोगों के शिकार हो जाते हैं।
  • सृष्टि के अन्य प्राणी आहार खोजने, आश्रय खोजने, संकट से बचने तथा मनोविनोद के लिए भागते-दौड़ते रहते हैं। यही उनकी बलिष्ठता की कुंजी है।

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श्रम के बाद उचित आराम जरूरी/ Proper rest is necessary after labour
  • श्रम के बाद उचित आराम की बहुत आवश्यकता होती है। दिन के बाद रात तथा जीवन के बाद मृत्यु का क्रम इसी सिद्धांत पर आधारित है कि बहुत अधिक श्रम से उत्पन्न शक्ति हृास दूर हो कर, अगले जीवन के लिए काफी शक्ति व सजीवता प्राप्त हो सके।
  • श्रम का विश्राम से ऐसा ही संबंध है। बद्ध जीवन का आधार यही है कि हम शारीरिक श्रम तो करें किंतु आराम करना न भूलें। इससे शक्ति और शांति मिलती है।
  • गहरी नींद छः से आठ घंटे अवश्य सोना चाहिए। निद्रावस्था में टूटे कोषों को हटाने तथा नए कोषों का निर्माण कार्य तेजी से चलता है।
  • श्रम के कारण कोष टूटते हैं  इसी कारण थकावट लगती है। शरीर श्रम के बाद आराम चाहता है।
  • काफी नींद के बाद पुनः शरीर में सजीवता बढ़ती है और नई ताजगी व स्फूर्ति का अनुभव होता है।
  • आराम का यह अर्थ कभी नहीं होता कि जब काम से थक जाएं तो बैठकर या लेटकर शारीरिक थकान दूर करें किंतु मन में पूरी तरह दुश्चिंताएं घूमती रहें।
  • विद्वेष, क्रोध प्रतिशोध, हिंसा की भावना उठ रही हो , तो शारीरिक दृष्टि से आराम करते हुए भी आराम नहीं मिलेगा ।
  • मानसिक बेचैनी का शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे धमनियां शिथिल हो जाती हैं खून खराब होने लगता है व स्वास्थ्य गिर जाता है।
  • आराम की सार्थकता मानसिक तनाव से बचकर शारीरिक थकान को मिटाने से ही पूरी होती है।
  • मानसिक तनाव के कारण देखा गया है कि अकसर लोगों को बड़ी देर तक नींद नहीं आती।
  • यद्यपि शरीर चारपाई पर लेटा हुआ रहता है पर इससे आराम की आवश्यकता पूरी नहीं हो पाती।
  • जब कभी ऐसी स्थिति आए तो आराम करने के पूर्व अपने मन को चिंता शून्य बना लेना चाहिए।
  • सारे शरीर को सुस्त बनाते हुए दोनों आंखें मूंद लेनी चाहिए। जब आप शरीर के किसी एक ही अंग का चिंतन करना प्रारंभ करेंगे तो आप देखेंगे कि अंदर ही अंदर वह अंग सुस्त पड़ने लगता है।
  • इसी प्रकार क्रम से दोनों हाथ, पैर, धड़, सिर आदि का चिंतन करते हुए शरीर के सारे अंगों को सुस्ती करने का अभ्यास करने से इच्छानुसार शरीर को सुस्त बना कर पूर्ण आराम का आनंद प्राप्त करना आसान हो जाएगा।
  • एक दो सप्ताह में यह क्रिया स्वाभाविक हो जाएगी। आराम करने से पूर्व शरीर को इस प्रकार सुस्त कर लेने से अच्छी व गहरी नींद आती है।
  • उसी अनुपात में शरीर शक्ति प्राप्त कर लेता है और आगे कार्य करने के लिए सजीव हो उठता है।
  • सांस ठीक से लें श्वसन द्वारा हमारा शरीर रक्त की सफाई फेफड़ों द्वारा करता हैं।
  • प्राणवायु ऑक्सीजन के रूप में पाकर प्रत्येक कोष को शक्ति मिलती है। स्वच्छ-शुद्ध वायु मिले, इसके लिए गहरी सांस लेते रहें तथा रात को सोते समय मुंह ढंक कर न सोएं।
  • सोते समय कमरे की खिड़कियां खुली रहें, इसका ध्यान अवश्य रखा जाए।
  • श्वास नाक से ही लेने की आदत बनाएं। झुककर नहीं बैठना चाहिए। बैठते व चलते समय कमर सीधी रखें।
  • गहरी सांस लेने की आदत डालें। रहने के स्थान पर चारों ओर हरियाली रहे तो उपयोगी प्राणवायु मिलने का लाभ मिलता है।
  • वनस्पतियों के क्षेत्रा में घर बनाएं या फिर घर के आस-पास हरियाली लगाएं। नियमित प्राणायाम करें।

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जल्दी जागना/Wake Up Early
  • प्रातः काल जल्दी जागना और रात को जल्दी सोना, यह नियम बना लेना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त में प्राण शक्ति का संचार होता है।
  • प्रातः जल्दी जागने वाला सक्रिय, स्फूर्तिवान और प्रसन्न-स्वस्थ बना रहता है।

टहलना/Walk

आहार के साथ विहार पर भी ध्यान दें

  • प्रातः जल्दी उठकर टहलने का नियम सभी उम्र के लोगों के लिए अच्छा नियम है।
  • शारीरिक दृष्टि से दुर्बल व्यक्ति स्त्राी, बच्चे वृद्ध सभी अपनी -अपनी अवस्था के अनुकूल इससे लाभ उठा सकते हैं।
  • इसमें किसी भी हानि की संभावना नहीं है। टहलना एक सरलतम कसरत है। घूमना जितना स्वास्थ्य के लिए उपयोगी हो सकता है उतना ही रूचि कर भी होता है।
  • इससे मानसिक प्रसन्नता व शारीरिक स्वास्थ्य की दो हरी आवश्यकता पूरी होती है।
  • इसीलिए संसार के सभी स्वास्थ्य विशेषज्ञों तथा महा पुरूषों ने इसे सर्वोत्तम व्यायाम बताया है और सभी ने इसका दैनिक जीवन मं प्रयोग किया हैं।
हंसना मुस्कराना/Laughing and smiling

आहार के साथ विहार पर भी ध्यान दें

  • खिलखिलाहटों की खनकती गूंज इन दिनों कहीं खो सी गई है। कृत्रिम सभ्यता ने मनुष्य की नींद व चैन हराम करके रख दिया है।
  • अपनी व्यस्तता में उसे किसी चीज के लिए फुरसत नहीं है।
  • अगर फुरसत मिलती भी है तो सिर्फ तनाव, चिंता एवं उद्विग्नता के लिए।
  • इसकी परिणति यह है कि शरीर भांति-भांति के रोगों से ग्रसित और मन तरह-तरह के मानसिक विकारों से व्यथित रहता है।
  • इंसान शारीरिक आरोग्य मानसिक संतुलन व जीवन में सुख-शांति के लिए तरह-तरह के उपचार जुटा रहा है।
  • इस सबके लिए पर्याप्त समय, श्रम एवं धन भी लुटा रहा है लेकिन राहत के नाम पर उसे असफलता जन्य असंतोष ही पल्ले पड़ता है।
  • मानव प्रकृति के मर्मज्ञों का मानना है कि समस्या का शाश्वत निदान तभी संभव है जब मनुष्य तनाव मुक्त हो सके और यह किसी औषधि से नहीं, हंसी की गूंज से ही संभव है।
  • ठहाकों भरी हंसी, खिलखिलाहटों की मधुर गूंज और आनंद बिखरेती मुस्कान इन सभी समस्याओं की अचूक औषधि है।
  • इसके बहु आयामी प्रभावों वउपयोगिता पर वैज्ञनिकों ने भी पर्याप्त शोध किया है।
  • उनका यह भी निष्कर्ष है कि इससे अच्छी और प्रभावी दवा दूसरी कोई नहीं है।

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कुछ अन्य बातें/ some other things

  1. छींक, पेशाब व पाखाना आदि का वेगन रोकें।
  2. मन को इंद्रियों का स्वामी मानकर संयमित जी वनक्रम अपनाएं।
  3. सिंथेटिक व कसे हुए वस्त्रा न पहनें।
  4. ऊंची एड़ी के जूते चप्पल न पहनें।
  5. नियमित उपासना-सा धना जप-ध्यान, पूजा-पाठ अवश्य करें।
  6. सदाचार, सद्भाव, सेवा, परोपकार अपनाएं।
  7. ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, चिंता, भय, क्रोध आदि तीव्र मनोवेगों से यथासंभव बचने का प्रयास करें।
  8. नित्य एक घंटा त्साहित्य का स्वाघ्याय करें।
  9. मन की निश्चितता के साथ छः से आठ घंटा गहरी नींद लें।
  10. टी.वी. नजदीक से न देखें । दिनभर से एक-दो घंटे से अधिक टी.वी. न देखें।

 

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– सारिका असाटी
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