
बैसाखी कृषि से जुडा हुआ एक त्योहार है, जिसे पंजाब और हरियाणा में काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता हैI यह त्योहार सिख नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है वैशाख मास के प्रथम दिन को पर्व के रूप में मनाने की परंपरा सिखों के तृतीय गुरु श्रीगुरु अमरदास जी के काल में आरंभ हुई थी।
सिख नववर्ष और बैसाखी का ऐतिहासिक महत्व/HISTORICAL SIGNIFICANCE OF SIKH NEW YEAR AND BAISAKHI
- यह मान्यता भी है कि इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। यही कारण है कि बैसाखी को हिंदू और सिखों के साझे पर्व के रूप में देखा जाता है। इसका धार्मिक महत्व तब बढ़ गया, जब गुरु गोविंद सिंह जी ने वर्ष 1699 में वैसाखी के ही दिन आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ सजाया।
- गुरु अमरदास जी के काल से प्रत्येक वर्ष सिख बैसाखी के दिन बड़ी संख्या में एकत्र होते और गुरु के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेकर कृतार्थ होते थे। इस अवसर पर उनके उल्लास का अन्य कारण होता महीनों के कठिन परिश्रम के फलस्वरूप खेतों में रबी की फसल का पक कर तैयार हो जाना। इस तरह बैसाखी आत्मिक लाभ और भौतिक उपलब्धि का संयुग्म बन गई थी।
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गुरु गोविंद सिंह जी– खालसा पंथ की स्थापना/GURU GOVIND JI – THE ESTABLISHMENT OF KHALSA SECT

- गुरु गोविंद सिंह जी अकस्मात उठे और नंगी तेग लहराते हुए बोले कि उन्हें एक शीश चाहिए। सभी स्तब्ध रह गये। उनके पुनः दोहराने पर एक सिख उठा और स्वयं को प्रस्तुत कर दिया। उसे गुरु साहिब निकट के एक छोटे तंबू में ले गये। इसके बाद गुरु साहिब ने एक के बाद एक चार और शीश मांगे।
- बाद में पांचों सिखों को गुरु साहिब वापस लाये और उन्हें अमृत पान कराकर पांच ककारों से सुसज्जित किया। इन्हें पंच पियारे कहा गया। गुरु गोविंद सिंह जी ने स्वयं भी और वहां उपस्थित सारी संगत ने अमृत छका।
- गुरु गोविंद सिंह जी ने इस अवसर पर सिखों को खालसा नाम दिया, जिसका अभिप्राय था सारे विकारों, अवगुणों से मुक्त होना और सद्गुण धारण कर परमात्मा को समर्पित हो जाना।
- खालसा एक ऐसा समाज था, जहां न कोई जाति थी, न वर्ण अथवा वर्ग। यह ऐसे धर्म पालकों की संगत थी, जो उपकार करने और दीन-दुखी के हित हेतु त्याग करने के लिये सदैव तत्पर रहे।
- इसीलिए इसे अकाल पुरख की फौज कहा गया। खालसा होना वस्तुतः श्रेष्ठ आत्मिक अवस्था धारण करना है। खालसा का बल उसकी मानवीय मूल्यों के लिये प्रतिबद्धता है। गुरु गोविंद सिंह जी ने शस्त्रों के उपयोग को अंतिम उपाय कहा। बैसाखी का पर्व उल्लास के साथ ही गुरु गोविंद सिंह द्वारा स्थापित उन आदर्शों के स्मरण का भी है, जो समानता, सदभाव, संयम और प्रेमपरिपूर्ण गौरवशाली समाज का आधार हैं।
बैसाखी का आत्मिक और भौतिक संतुलन/SPIRITUAL AND PHYSICAL BALANCE OF CRUTCHES
- खुशियों का त्योहार बैसाखी आज है। यह पर्व पंजाब, हरियाणा समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग रबी की फसल तैयार होने पर भगवान को धन्यवाद देते हैं।
- इस मौके पर लोग अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और करीबियों के साथ जश्न मनाते हैं और मिठाइयां बांट कर बैसाखी की शुभकामनाएं देते हैं। बैसाखी के दिन बंगाल में पोइला बोइसाख, बिहार में सत्तूआन, तमिलनाडु में पुथांडु, केरल में विशु और असम में बिहू मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, रबी फसल तैयार होने के बाद सबसे पहले अग्नि देव को अर्पित किया जाता है। इसके बाद तैयार अन्न को सामान्य लोग ग्रहण करते हैं।
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बैसाखी का महत्व/IMPORTANCE OF BAISAKHI
- सनातन शास्त्रों की मानें तो बैसाखी के दिन ही भगवान ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। अतः बैसाखी को सृष्टि का उद्गम हुआ है। आसान शब्दों में कहें तो बैसाखी के दिन से मानव जीवन की शुरुआत हुई है। वहीं, त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम बैसाखी के दिन अयोध्या के राजा बने थे।
- उस समय अयोध्या में राम राज की स्थापना की गई थी। वर्तमान समय में भी राम राज प्रासंगिक है। महात्मा गांधी ने भी आजादी के पश्चात देश में राम राज की कल्पना की थी। जबकि, प्राचीन भारत में बैसाखी के दिन महाराजा विक्रमादित्य ने विक्रमी संवत की शुरुआत की थी। अतः बैसाखी पर्व का विशेष महत्व है।
कैसे मनाते हैं बैसाखी ?/HOW DO PEOPLE CELEBRATE BAISAKHI?
- इस दिन सिख समुदाय के लोग स्नान-ध्यान करने के बाद सबसे पहले अनाज की पूजा करते हैं। इसके बाद भगवान को जीवन में प्राप्त सभी चीजों के लिए धन्यवाद देते हैं। इसके पश्चात तैयार फसल को काटा जाता है। वहीं, स्वयंसेवकों द्वारा गुरुद्वारों को भव्य तरीके से सजाया जाता है।
- गुरुद्वारों पर कीर्तन-भजन संग गुरुवाणी का आयोजन किया जाता है। बड़ी संख्या में संख्या में लोग स्नान-ध्यान कर नवीन पोशाक पहनते हैं। बड़े वृद्ध गुरुद्वारे में जाकर मत्था टेककर बाबा से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। कई जगहों पर मेले का आयोजन किया जाता है। बच्चे और वृद्ध सभी मेला घूमने जाते हैं। लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ गिद्दा डांस कर खुशियां मनाते हैं।
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