
भारत विविधताओं का देश है, जहाँ हर राज्य और क्षेत्र की अपनी अलग संस्कृति, परंपरा और नववर्ष मनाने की विशेष शैली है। हिंदी नववर्ष के साथ-साथ देश के अलग-अलग कोनों में विषु (केरल), बोहाग बिहू (असम), पोयला बोइशाख (बंगाल), मेषादी (ओडिशा) और पुतंदु पिराप्पु (तमिलनाडु) जैसे पर्व विशेष रूप से नववर्ष के रूप में मनाए जाते हैं। इन सभी पर्वों में मौसम परिवर्तन, कृषि का आरंभ और सांस्कृतिक एकता का भाव देखा जा सकता है।
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विषु (केरल)/ Vishu (Kerala)
- विषु, केरल में मनाया जाने वाला पारंपरिक नववर्ष है, जो सामान्यतः 14 या 15 अप्रैल को पड़ता है। यह पर्व सूर्य के मेष राशि में प्रवेश का प्रतीक है और इसे “मेष संक्रांति” भी कहा जाता है।
- विषु के दिन घर के बड़े सदस्य सुबह जल्दी उठकर “विषु कण्णी” (Vishu Kani) की झलक बच्चों को दिखाते हैं। इसमें फल, फूल, पैसे, दर्पण और भगवान विष्णु की मूर्ति को एक थाली में सजाकर रखा जाता है।
- इस पर्व पर “विषु सध्या” यानी विशेष भोजन भी तैयार किया जाता है। यह पर्व नई शुरुआत, समृद्धि और भाग्य की शुभकामना के साथ मनाया जाता है।
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बोहाग बिहू (असम)/Bohag Bihu(Assam)
- बोहाग बिहू, जिसे “रोंगाली बिहू” भी कहा जाता है, असम का सबसे बड़ा और हर्षोल्लास से भरा हुआ पर्व है। यह अप्रैल महीने में मनाया जाता है और यह असमिया नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है।
- इस अवसर पर खेतों की जुताई शुरू होती है और किसान बंपर फसल की कामना करते हैं। पर्व के दौरान पारंपरिक असमिया नृत्य “बिहू डांस” और गीतों का आयोजन होता है। लोग नए कपड़े पहनते हैं, मिठाइयाँ बांटते हैं और प्रकृति के साथ अपने संबंध को सम्मान देते हैं। यह पर्व जीवन, प्रेम और उमंग से भरा हुआ होता है।

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पोयला बोइशाख (बंगाल)/ Poila Boishakh (Bengal)
- पोयला बोइशाख, पश्चिम बंगाल का नववर्ष होता है और यह बांग्ला कैलेंडर के पहले दिन मनाया जाता है। यह आमतौर पर 14 या 15 अप्रैल को आता है। इस दिन लोग “शुभो नववर्ष” की शुभकामनाएँ एक-दूसरे को देते हैं।
- व्यापारी अपने पुराने बही-खाते बंद करके नए “हलकाता” (नई खाता बही) की पूजा करते हैं। मिठाइयों का आदान-प्रदान, पारंपरिक भोजन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और मेलों का आयोजन इस पर्व की विशेषताएं हैं। यह दिन बंगाली संस्कृति और परंपराओं को नए उत्साह के साथ जीने का अवसर होता है।
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मेषादी (ओडिशा)/Meshadi(Odisha)
- मेषादी या ओड़िया नववर्ष ओडिशा में मनाया जाने वाला पर्व है जो सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ ही शुरू होता है। इसे ‘पण संक्रांति’ भी कहा जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, लोग नदी में स्नान करते हैं और जरूरतमंदों को जल, पंखा, गुड़ और चावल दान करते हैं। यह पर्व सामाजिक सेवा, शुद्धता और नए संकल्प का प्रतीक है। मेषादी के अवसर पर ओडिया भाषा और संस्कृति के संरक्षण का भी संदेश दिया जाता है।
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पुतंदु पिराप्पु (तमिलनाडु)/ Putandu Pirappu (Tamil Nadu)
- पुतंदु पिराप्पु तमिल नववर्ष होता है, जो तमिल पंचांग के अनुसार चित्तिरै महीने के पहले दिन मनाया जाता है। यह भी आमतौर पर 14 अप्रैल को पड़ता है। इस दिन लोग अपने घरों को रंगोली, फूलों और दीपों से सजाते हैं।
- विशेष भोजन जैसे ‘मांगा पचड़ी’ बनाया जाता है जो जीवन के विभिन्न स्वादों (खट्टा, मीठा, कड़वा) को दर्शाता है। लोग मंदिरों में पूजा करते हैं और अपने बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। यह पर्व आत्ममंथन और नए वर्ष के लिए शुभ शुरुआत का प्रतीक है।
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- हालाँकि इन सभी पर्वों के नाम, रीति-रिवाज़ और मनाने की विधियाँ अलग हैं, लेकिन इनका मूल भाव एक ही है— नई शुरुआत, प्रकृति के प्रति आभार, और सामूहिक खुशहाली की कामना।
- यह विविधता भारत की संस्कृति को और अधिक समृद्ध बनाती है। ये पर्व न केवल हमारी परंपराओं को जीवित रखते हैं, बल्कि हमें एक-दूसरे की संस्कृति को समझने और अपनाने का अवसर भी प्रदान करते हैं।
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