Sunday, December 7, 2025
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लोहड़ी का पर्व/FESTIVAL OF LOHRI

 

लोहड़ी का पर्व
लोहड़ी का पर्व

साल 2025 के पहले महीने यानी जनवरी में त्योहारों की बयार रहेगी इस माह लोहड़ी, पोंगल व मकर संक्रांति जैसे कई प्रमुख पर्व मनाए जाएंगे। 14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। इसके ठीक एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। लोहड़ी हर वर्ष पौष माह के अंतिम दिन उत्साह व उमंग के साथ मनाया जाता है। इसी दिन से माघ मास की शुरुआत भी हो जाती है। लोहड़ी सिख समुदाय का प्रमुख त्योहार है। इस पर्व पर रात में आग जलाई जाती है। जिसे लोहड़ी कहा जाता है। यह अग्नि पवित्र व शुभता का प्रतीक होती है। इस अग्नि में तिल, गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक आदि अर्पित किए जाते हैं।

2025 में कब मनाया जाएगा लोहड़ी का पर्व? /When will the festival of Lohri be celebrated in 2025?

ज्योतिषाचार्य के मुताबिक मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।

लोहड़ी पर आग का महत्व/ Importance of fire on Lohri

लोहड़ी का पर्व होली के जैसे मनाया जाता है। इस दिन रात्रि में एक स्थान पर आग जलाई जाती है। आस-पास के सभी लोग इस आग के इर्द-गिर्द इकट्ठा होते हैं। सभी लोग मिलकर अग्निदेव को तिल, गुड़ आदि से बनी मिठाइयां अर्पित करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। लोग अग्निदेव की परिक्रमा करते हैं और सुख-शांति व सौभाग्य की कामना करते हैं। अग्नि में नई फसलों को समर्पित किया जाता है और ईश्वर को धन्यवाद अर्पित करते हैं। इसके अलावा भविष्य में उत्तम फसल के लिए प्रार्थना करते हैं।

लोहड़ी पर क्यों जलाते हैं आग?/Why do we burn fire on Lohri?

मान्यताओं के अनुसार, लोहड़ी की आग की परंपरा माता सती से जुड़ी है। जब राजा दक्ष ने महायज्ञ का अनुष्ठान किया था। तब उन्होंने सभी देवताओं को बुलाया पर शिवजी और सती को आमंत्रित नहीं किया फिर भी माता सती महायज्ञ में पहुंचीं, लेकिन उनके पिता दक्ष ने भगवान शिव की बहुत निंदा की। इससे आहत सती ने अग्नि कुंड में अपनी देह त्याग दी। ऐसा कहा जाता है कि यह अग्नि मां सती के त्याग को समर्पित है। इस दिन परिवार के सभी लोग अग्नि की पूजा करके परिक्रमा करते हैं। अग्नि में तिल, रेवड़ी, गुड़ आदि अर्पित करके प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। इस तरह लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।

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लोहड़ी पर पूजा का महत्व/Pooja’s importance on Lohri

मान्यताओं के अनुसार, लोहड़ी की रात साल की सबसे लंबी रात होती है। इसके बाद दिन बड़े होने लगते हैं। मौसम अनुकूल होने लगता है। जो फसलों के लिए उत्तम होता है। इसलिए लोहड़ी पर किसान नई फसल की बुआई करना शुरू कर देते हैं। लोहड़ी पर पूजा का विशेष विधान है। लोहड़ी पर पश्चिम दिशा में मां आदिशक्ति की प्रतिमा स्थापित कर सरसों के तेल का दीपक जलाएं। प्रतिमा पर सिंदूर का तिलक लगाएं और तिल से बने लड्डू अर्पित करें।

लोहड़ी त्योहार की कहानी/Lohri festival’s story

लोहड़ी एक शीतकालीन त्योहार है जो आमतौर पर पंजाब और कुछ उत्तर भारतीय राज्यों में मनाया जाता है। यह शीतकालीन संक्रांति के अंत और सूर्य के उत्तर की ओर जाने का संकेत देता है। यह पंजाबियों के लिए फसल का त्योहार भी है। क्योंकि यह रबी फसल के मौसम के दौरान आता है। यह त्योहार हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में भी मनाया जाता है। जो लोग लोहड़ी मनाते हैं उनके लिए यह सभाओं और समारोहों का समय होता है। सिख और हिंदू संप्रदाय के लोग प्रमुख रूप से यह उत्सव मनाते हैं। यह त्योहार हर साल 13 जनवरी को मनाया जाता है।

मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग के दौरान भगवान विष्णु ने भगवान कृष्ण का अवतार लिया था। उसी समय कंस की मां ने नियमित रूप से कृष्ण को विभिन्न तरीकों से मारने का प्रयास किया। जब सभी लोग मकर संक्रांति का त्योहार मना रहे थे उसी समय कंस ने बाल कृष्ण को नष्ट करने के लिए राक्षस लोहिता को गोकुल भेजा था। जब उसने बाल कृष्ण को मारने का प्रयास किया तो बाल कृष्ण ने उसे अपने चंचल कृत्यों से मार डाला। चूंकि उसका नाम लोहिता था। इसलिए त्योहार का नाम उसके नाम पर रखा गया। इसके अलावा सिंधी संस्कृति में इस दिन को लाल लोहड़ी के रूप में जाना जाता है। लोहड़ी का अर्थ हिंदू त्योहार से संबंधित है। जो अग्नि देव को समर्पित है। इस दिन लोग पीटा हुआ धान, तिल, मूंगफली और अन्य खाद्य पदार्थ अलाव में फेंकते हैं। इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि राजा दक्ष की बेटी सती ने अपने पिता के दुर्व्यवहार से खुद को आग लगा कर भस्म कर लिया था। नतीजतन इस दिन को लोहड़ी के रूप में मनाने की प्रथा शुरू हुई। चूंकि सूर्य को ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। इसलिए इस दिन सूर्य और अग्नि (आग) दोनों की पूजा की जाती है।

लोहड़ी त्योहार की ज्योतिषीय मान्यताएं/ Astrological beliefs of Lohri festival

लोहड़ी हर साल 13 जनवरी को मनायी जाती है। यह मकर संक्रांति से एक रात पहले मनाया जाता है। माघी या मकर संक्रांति एक हिंदू त्योहार है, जो सूर्य में प्रवेश करने के बाद मनाया जाता है। यह त्योहार विक्रमी कैलेंडर (प्राचीन चंद्र-सौर हिंदू कैलेंडर) के अनुसार माघी से एक दिन पहले मनाया जाता है। यह त्योहार पौष माह में आयोजित किया जाता है। यह चंद्र सौर पंजाबी कैलेंडर के सौर भाग द्वारा निर्धारित किया जाता है। इस त्योहार का उल्लेख ग्रेगोरियन कैलेंडर में 13 जनवरी को मिलता है। इस त्योहार को शीतकालीन संक्रांति भी कहा जाता है। इस समय सूर्य उत्तर की ओर प्रस्थान करते है। उस दिन से उत्तरायण की शुरुआत होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरायण के बढ़ने के साथ-साथ दिन बड़े होते जाते हैं और रातें छोटी होती जाती हैं। यह एक ऐसा त्योहार है जो गर्म दिनों के आगमन की शुरुआत करता है। इस त्योहार को कई लोग प्रचुर मात्रा में फसल होने के लिए सूर्य भगवान की पूजा करते हैं।

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लोहड़ी समारोह/ Lohri celebration

लोहड़ी का पर्व

लोहड़ी उत्सव में सिख, हिंदू, मुस्लिम और ईसाई सभी वर्ग के लोग बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं। इस दिन विशेष रूप से पंजाब में एक आधिकारिक अवकाश रहता है। इस अवसर पर विशेष रूप से लोग गायन, नृत्य तथा सामूहिक भव्य दावत का लुत्फ उठाते हैं। लोहड़ी उत्सव के दौरान ढोल की थाप पर देर रात तक लोग नृत्य करते हैं। पुरुष, महिला बच्चे, जवान सभी आयु वर्ग के लोग इस उत्सव में बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं। लोग भांगड़ा नृत्य का खुब लुत्फ उठाते हैं। सिंधी समुदाय के कुछ वर्ग के लोग इसे लाल लोई के रूप में मनाते हैं। महोत्सव से कुछ दिन पहले ही लोग तैयारियां शुरू कर देते है। युवा लड़के और लड़कियां समूह बनाकर नृत्य का आयोजन करते है। साथ ही लोगों के घर-घर जाकर पारंपरिक गीत गाते हैं। स्वागत के तौर पर उन्हें तिल, गजक, मिश्री, गुड़, मूंगफली और पॉपकॉर्न दिया जाता है। लोहड़ी उस संग्रह को दिया गया नाम है जिसमें लोगों को सामूहिक रूप से इकट्ठा करने की प्रकिया की जाती है। आम तौर पर इस त्योहार पर पकवान वितरित किया जाता है। बच्चों को अक्सर मिठाई, नमकीन भोजन या पैसे दिए जाते हैं। इन्हें खाली हाथ लौटाना अशुभ माना जाता है।

इस त्योहार के उत्सव का एक बड़ा हिस्सा अलाव की रोशनी है। लोग अलाव के आसपास इकट्ठा होते हैं। यह मुख्य रूप से गांव के चौराहे पर सूर्यास्त के समय जलाया जाता है। अलाव आमतौर पर सूखे मवेशियों के गोबर और जलाऊ लकड़ी से बनाया जाता है। इस दौरान अग्नि और सूर्य देव के प्रति श्रद्धा के रूप में लोग सिर झुकाकर प्रार्थना करते हैं। इसके अलावा तिल के बीज, गुड़, मिश्री, पॉपकॉर्न, मूंगफली, रेवड़ी, तिल और गुड़ से बना एक स्वादिष्ट व्यंजन को होलिका के प्रसाद के रूप में फेंका जाता है। इन कार्यों को पूरा करने के बाद आग बुझने तक लोग गाते और नाचते रहते हैं। सिख समुदाय के लोग अपने घरों में पार्टी करते हैं। एक दुल्हन या नवजात शिशु की पहली लोहड़ी विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। इसलिए उत्सव को एक नए स्तर पर मनाने के लिए परिवार कई विशेष अनुष्ठान करते हैं। पंजाब के लोग इस अवसर के लिए कई तरह के पारंपरिक खाद्य पदार्थ और नमकीन व्यंजन तैयार करते हैं। लोहड़ी व्यंजनों में मक्की दी रोटी, सरसों दा साग, राऊ दी खीर, त्रिचोली, तिल चावल के बने व्यंजन तैयार करते हैं। इसके अलावे गन्ने की खीर, आटा लड्डू, ड्राई फ्रूट चिक्की, तिल बर्फी, कुरमुरे लड्डू और गजक, मूली, मूंगफली और गुड़ सभी आम खाद्य पदार्थ के रूप में शामिल करते हैं।

लोहड़ी त्योहार जिसे खास बनाती है/ What makes Lohri festival special?

लोहड़ी एक हिंदू त्योहार है, जिसमें सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। सर्दियों के मौसम में विशेष रूप से ज्यादा फसल पैदा होने के लिए भगवान सूर्य से प्रार्थना किया जाता है।

लोहड़ी अलाव/ Lohri bonfire

लोहड़ी अलाव लोहड़ी उत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अलाव से पैदा हुई रोशनी का बहुत बड़ा महत्व है। कुछ स्थानों पर लोक देवी लोहड़ी की एक छोटी छवि या पुतला जलाया जाता है। पुतले को मवेशियों के गोबर से बनाया जाता है और फिर उसमें आग लगाई जाती है। ऐसा करते ही लोग भजन गाना शुरु करते हैं। देवी प्राचीन शीतकालीन संक्रांति उत्सव की अभिव्यक्ति है। कहीं-कहीं देवी का उल्लेख नहीं होता। अग्नि गाय के गोबर और लकड़ी से बनाई जाती थी। फसल उत्सव के रूप में यह उर्वरता के महत्व का भी प्रतिनिधित्व करता है। परंपराओं के अनुसार इस पर्व में विशेष रूप से बच्चों के लिए प्रार्थना करने वाले जोड़े और अविवाहित बेटियों के लिए प्रार्थना करने वाले माता-पिता शामिल होते हैं। यह पंजाबी संस्कृति में नवविवाहितों और नवजात शिशुओं की माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण समय होता है। बच्चे के जन्म या नई दुल्हन के आने का जश्न मनाने के लिए परिवार कई विशेष समारोह आयोजित करते हैं।

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निष्कर्ष/ conclusion

लोहड़ी एक फसलों का उत्सव है, जो पंजाब और हरियाणा के निवासियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस मौसम में गेहूं, मक्का, गन्ना, सरसों, मूली, मूंगफली और अन्य फसलों की कटाई की जाती है। यह एक हिंदू त्योहार है, जो सर्दियों की फसल की कटाई से ठीक पहले होता है। लोहड़ी के उत्सवों में मूली, मेवा, भुने हुए मकई के टुकड़े और गन्ने की विभिन्न चीजें जैसे गुड़ और गजक खाना शामिल है। गन्ने के त्योहार अक्सर उत्सव के साथ आयोजित किए जाते हैं।
त्योहार नहीं होता कोई भी अपना पराया,
त्योहार वही जिसे सबने मिलकर मनाया।
जैसे मिलता है गुड़ में तिल,
वैसे ही आप भी एक दूसरे के साथ जाओ घुल-मिल।
                   लोहड़ी की शुभकामनाएं।

 

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– सारिका असाटी                                   

 

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