Sunday, December 7, 2025
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दशहरा के दिन सिंदूर खेला

 

दशहरा के दिन सिंदूर खेला  Sindur Khela
दशहरा के दिन सिंदूर खेला  Sindur Khela

 

दुर्गा पूजा हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। 9 दिनों तक मां दुर्गा की आराधना की जाती है।वैसे तो देश भर में इसकी धूम रहती है लेकिन दुर्गा पूजा के वक्त पश्चिम बंगाल का नजारा ही कुछ और रहता है। पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा काफी भव्य होती है। बड़े-बड़े पंडाल सजाए जाते हैं। यहां की दुर्गा पूजा देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। सबसे खास बात यह है कि बंगाल में दुर्गा पूजा में सिंदूर खेला मनाया जाता है। बहुत कम लोगों को इस परंपरा की जानकारी होती है।

 मायके से विदा होने पर मां दुर्गा को लगाया जाता है सिंदूर/ SINDOOR IS APPLIED TO MOTHER DURGA WHEN SHE BIDS FARWELL TO HER PARENTS’HOME

दशहरा के दिन सिंदूर खेला  Sindur Khela

जिस दिन मां दुर्गा को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है यानी जिस दिन उनकी विदाई होती है उसी दिन बंगाल में सिंदूर खेला मनाया जाता है। मां दुर्गा की मांग सिंदूर से भर कर उनकी विदाई की जाती है। विजयदशमी के दिन सभी शादीशुदा महिलाएं मां दुर्गा को पान के पत्ते से सिंदूर चढ़ती हैं। मां दुर्गा को मिठाई खिलाई जाती है। इसके बाद सभी सुहागन महिलाएं मां से आशीर्वाद लेती हैं,फिर एक दूसरे को सिंदूर लगाकर जश्न मनाती है। इस परंपरा को निभाकर महिलाएं अपनी शादीशुदा जिंदगी को सुखद और सौभाग्यशाली बनाने की प्रार्थना करती हैं। मान्यता है कि मां दुर्गा सुहाग की रक्षा करती हैं।

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क्या है सिंदूर खेला का इतिहास?/WHAT IS THE HISTORY OF SINDUR KHELA?

सिंदूर खेला की प्रथा आज की नहीं बल्कि सदियों पुरानी है। जी हां 450 साल पहले इस प्रथा की शुरुआत की गई थी। यह रस्म पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ जिससे में शुरु हुई थी। ऐसी मान्यता है की मां दुर्गा साल भर में एक बार अपने मायके आती हैं और 10 दिन रुकने के बाद वापस से अपने ससुराल चली जाती हैं। जब मां अपने मायके आती हैं तो उसे अवधि को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। बता दें कि सिंदूर खेला के साथ ही बंगाली समुदाय का एक बहुत ही खास धुनुची डांस भी किया जाता है। इस नृत्य के जरिए मां दुर्गा को खुश किया जाता है।

नवरात्रि का पर्व 9 दिनों तक मनाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि मां दुर्गा पूरे 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं और उनका स्वागत करने के लिए मां दुर्गा की मूर्ति के साथ विशाल पंडालों को सजाया जाता है. बंगाली समुदाय में मां दुर्गा की पूजा पंचमी तिथि से शुरू होती है और अंत में दशमी तिथि के . दिन उन्हें सिंदूर होली खेलकर विदा किया जाता है. बंगाली समुदाय में इसे सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता है।

धुनुची नृत्य/ DHUNUCHI DANCE

दशहरा के दिन सिंदूर खेला  Sindur Khela

धुनुची नृत्य की परंपरा भी निभाई जाती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार धुनुची नृत्य करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं. इसे मनाने के पीछे मान्यता यह है क… कि मां दुर्गा प्रसन्न होंगी और अपने बच्चे की रक्षा करेंगी।

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जानें, कौन देवी बोरोन?/ KNOW, WHO IS GODDESS BORON?

मान्यता है कि जब सिंदूर खेला खत्म हो जाता है उसके बाद पूजा के बाद देवी बोरोन किया जाता है. यहां पर सभी विवाहित महिलाएं देवी को अंतिम अलविदा कहने के लिए लाइन में लगी होती हैं. इस दौरान महिलाएं दोनों हाथों में पान का पत्ता और सुपारी लेती हैं और मां के चेहरे को पोंछती हैं. इसके बाद मां दुर्गा को सिंदूर लगाती है. कहते हैं कि मां दुर्गा के साथ एक पोटली बांध के रखी जाती है, जिसमें कुछ खाने-पीने की चीजें होती हैं, ताकि उन्हें देवलोक पहुंचने में किसी भी तरह की कोई परेशानी ना हो.

 

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– सारिका असाटी

 

 

 

 

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