बलराम जयंती पर विशेष/ SPECIAL ON BALRAM JAYANTI


भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन बलराम का जन्म होने के कारण इस दिन इनकी जयंती मनाई जाती है।
इस तिथि को हल षष्ठी के रुप में मनाया जाता है। इस व्रत को बलराम जयन्ती, ललही छठ, बलदेव छठ, रंधन छठ, हलछठ, हरछठ व्रत, हल छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ जैसे नामों से भी जाना जाता है। बलराम का अस्त्र हल था।
इसीलिए इस षष्ठी को हल षष्ठी के नाम से भी पुकारा जाता है। हल षष्ठी के दिन पृथ्वी पूजन होता है।
कृषक लोग कृषि कार्य में उपयोग में आने वाली कृषि यंत्रों, वस्तुओं का पूजन करते हैं।
हरछट का महत्व/ MEANING OF HARCHAT
- श्रीकृष्ण के अग्रज बलराम रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।
- बलभद्र, संकर्ण, हलधर, हलायुधयु , रोहिणीनन्दन, काम, नीलाम्बर आदि इनके अनेक नाम हैं। बलभद्र के सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थी, जिन्हें चित्रा के नाम से भी जाना जाता है।
- बलभद्र का विवाह रेवत नाम से प्रसिद्ध कुशस्थली नामक राज्य के राजा का कुदमी की पुत्री रेवती से हुआ था।
- मान्यता है कि कुदमी की पुत्री रेवती इक्कीस हाथ लंबी थीं, जिसे बलभद्र ने अपने हल से खींचकर छोटी किया था।
- इनके संतान के नाम निषस्थ उल्मुख और वत्सला थे। शत्ति का प्रतीक माने जाने वाले बलभद्र को एक आज्ञाकारी पुत्र एक आदर्श भाई एक अच्छा पति इन सभी रूप में मान्यता प्राप्त है।
- ये अपने शरीर पर नीला वस्त्र और हाथों में हल धारण करते हैं। इनके अस्त्र हल व गदा हैं।
- इनको नागराज अनंत का अवतार और किसानों का देवता भी माना जाता है।
- पौराणिक ग्रंथों में इन्हें अनेक उपाधियों से विषिभूत करते हुए इनके पराक्रमों का विशद वर्णन र्किया गया है।
- बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र भी कहा जाता है। बलराम बचपन से ही अत्यन्त गंभीर और शान्त थे।
- श्रीकृष्ण उनका विशेष सम्मान करते थे।
- बलराम भी श्रीकृष्ण की इच्छा का सदैव ध्यान रखते थे।
- यही कारण है कि ब्रजलीला में शंखचूड़ का वध करके श्रीकृष्ण ने उसका शिरोरत्न बलराम को उपहार स्वरूप प्रदान किया था।
- बलराम ही अपने योग्य प्रतिद्वन्द्वी जान पड़े। श्रीकृष्ण ने मना न किया होता तो बलराम प्रथम आक्रमण में ही उसे यमलोक भेज देते।
- महाभारत युद्ध में बलराम तटस्थ होकर तीर्थ यात्रा के लिये चले गये।
- येगदायुद्ध में विशेष प्रवीण थे। इसी से कई बार इन्होंने जरासंध को पराजित किया था।दुर्योधन और भीमसेन इनके ही शिष्य थे।
- उन्होंने अपने अनुज श्रीकृष्ण के साथ बचपन में मथुरा के राजा कंस के पहलवान मुष्टि का वध किया था। उन्होंने कंस के दानव धेनुक का भी वध किया था।
- श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब (शांब के) द्वारा दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा का हरण किए जाते समय कौरव सेना द्वारा साम्ब को बंदी बना लिए जाने पर बलभद्र ने ही उन्हें छुड़ाया था।
- स्यमंतक मणि लाने के समय भी ये श्रीकृष्ण के साथ गए थे। यदुवंश के उपसंहार के बाद उन्होंने समुद्र तट पर आसन लगाकर अपनी लीला का संवरण किया।
- मृत्यु के समय इनके मुँह से एक बड़ा नाग निकला और प्रभास के समुद्र में प्रवेश कर गया था।
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श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम/ BALRAM – BIG BROTHER OF LORD KRISHNA
- भारत के बहुसंख्यकों की मान्यतानुसार यदुवंश में उत्पन्न बलराम श्रीकृष्ण के अग्रज और शेष के अवतार हैं।
- जैनियों के अनुसार उनका सम्बन्ध तीर्थकर र्नेमिनाथ से है।
- पांचरात्र मत के अनुसार बलभद्र भगवान वासुदेव के स्वरूप हैं।
- बलराम नारायणीयोपाख्यान में सिद्धान्त के अनुसार विष्णु के चार रूपों में दूसरा रूप संकर्षण है।
- कंस के द्वारा देवकी-वसुदेव के छह पुत्रों को मार दिए जाने पर देवकी के गर्भ में भगवान बलराम पधारे।
- योगमाया ने उन्हें संकार्षित कर के नन्द बाबा के यहाँ निवास कर रही रोहिणी के गर्भ में पहुँचा दिया।
- इसलिए उनका एक नाम संकर्षण के बाद कृष्ण के पुत्र प्रद्यम्युन तथा पौत्र अनिरूद्ध का नाम आता है जो क्रमश: मनस् अहंकार के प्रतीक हैं।
- ये सभी देवता के रूप में पूजे जाते हैं। इन सबके आधार पर सिद्धांत की रचना हुई है।
- जगन्नाथ की त्रिमूार्ति में कृष्ण, सुभद्रा तथा बलराम तीनों साथ विराजमान हैं।
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कौन थे बलराम ? कैसे हुआ जन्म? / WHO WAS BALRAM? HOW WAS HE BORN?
- महाभारत और पौराणिक ग्रंथों में अंकित वर्णनों के अनुसार बलभद्र का जन्म विद्रुम वन में हुआ था। बलराम का जन्म यदूकुल में हुआ।
- कंस ने अपनी प्रिय बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वसुदेव से विधिपूर्वपूक और सम्मान कराया।
- विवाहोपरान्त जब वसुदेव देवकी को विदा कराकर ले जाने लगे, तो उस समय कंस स्नेह पूर्वक उस दंपति का सारथी बनकर हाँक रहा था और अपनी बहन को वसुदेव के घर पहुंचाने जा रहा था।
- लेकिन उसी समय आकाशवाणी हुई कि जिसे वह पति के घर पहुंचाने जा रहा है, उसी देवकी- वसुदेव का अष्टम पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा।
- यह सुन के कंस- देवकी का अंत करने के लिए तैयार हो गया। वसुदेव ने कंस को शांत करने के लिए वचन दिया कि देवकी के गर्भ से जीतने भी पुत्र उत्पन्न होंगे उनको वे स्वयं कंस को आर्पित कर देंगे।
- इस प्रकार देवकी की परण रक्षा तो हो गई। परंतु कंस ने अपनी बहन देवकी को पति वसुदेव सहित कारागार में बंदी बना लिया और उनसे उत्पन्न छह पुत्रों को जन्म लेते ही मार दिया।
- सप्तम संतान गर्भ में ही नष्ट हो गई। सातवें पुत्र के रूप में शेष के अवतार बलभद्र थे जिसे श्रीविष्णु ने योगमाया से देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ में स्थापित करा दिया।
- रोहिणी की यह संतान भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठ तिथि के दिन उत्पन्न हुए बलराम थे।
- आठवें गर्भ में भगवान श्रीकृष्ण थे। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन बलराम का जन्म होने के कारण इस दिन इनकी जयंती मनाई जाती है।
- इस तिथि को हल षष्ठी के रुप में मनाया जाता है।
- इस व्रत को बलराम जयन्ती, ललही छठ, बलदेव छठ, धन छठ, हलछठ, हरछठ व्रत, तिनछठी, तिन्नी छठ जैसे से नामों से भी जाना जाता है।
- बलराम का अस्त्र हल था। इसीलिए इस षष्ठी को हल षष्ठी के नाम से भी पुकारा जाता है।
- हल षष्ठी के दिनपृथ्वी पूजन होता है। कृषक लोग कृषि कार्य में उपयोग में आने वाली कृषि यंत्रों, वस्तुओं का पूजन करते हैं।
- कृषि के मुख्य साधन खेत जोतने में बैल के साथ प्रयुत्त होने वाली हल की विशेष रूप से पूजन करते हैं।
- इस अवसर पर षष्ठी देवी की पूजा , बलराम, श्रीकृष्ण की पूजा सूर्य पासना करना अत्यंत शुभ दायक माने जाने के कारण अपने परिवार के सुख सुमृद्धि के लिए श्रद्धापूर्वक पूजा अर्चना र्करती हैं।
- अनुष्नुठान करती हैं। मंदिरों में हवन करती हैं। इस व्रत को पुत्रवती स्यां मुख्य रुप से करती हैं।
- संतान पप्ति के लिए भी इस व्रत को करना अत्यंत ही शुभ दायक होता है।
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हरछट की कथा / STORY OF HARCHAT
- हल षष्ठी के संबंध में एक कथा प्रचलित है जिसके संबंध में मान्यता है कि हल षष्ठी के दिन व्रत करने के साथ-साथ इस हल षष्ठी कथा को पढ़ने और सुन ने से व्रत का शुभ फल होता है।
- कथा के अनुसार पचीन काल में एक नगर में घर-घर दूध-दही बेचकर अपना घर गृहस्थी चलाने वाली एक ग्वालन अपने पति के साथ सुखपूर्वक थी।अपने पति के साथ सांसारिक सुख भोगते हुए गर्भवती होती है।
- प्रसव का समय नजदीक आने पर उसे पीड़ा होने लगी। लेकिन घर में उस दिन का दूध और दूही बिक्री नहीं होने के कारण पड़ा हुआ था।
- इसलिए वह दूध-दही बेचने के लिए बर्तन उठा कर घर से निकल पड़ती है। लेकिन उसकी प्रसव पीड़ा इतनी बढ़ गई कि उसे मार्ग में ही खेत में संतान को जन्म देना पड़ा।
- प्रसवोपरांत अपनी संतान को कपड़े में लपेट कर वह वहीं रख देती है और सामान बेचने के लिए आगे निकल पड़ती है।
- संयोगवश उस दिन हल षष्ठी होती है। उस ग्वालन के पास गाय और भैंस दोनों का दूध होता है।
- गांव- घर में दूध-दही ले घूमघूम ने पर गरहकों ने कहा कि आज हल षष्ठी है ऐसे में वे गौ दुग्ध कैसे ले व सेवन कर सकते हैं?
- वह आज गए नहीं बल्कि भैंस का दूध ही लेंगे। यह सुन ग्वालन ने गहकों को झूठ बोल दिया कि उसका दूध भैंस का ही है।
- झूठ बोल उसने सभी को दूध बेच दिया।
- दूध-दही बेच कर ग्वालन अपने बच्चे के पास खेत की ओर लौटती है परंतु हां उसने बच्चे को रखा था उस स्थान पर किसान हल जोत रहा होता है।
- तभी हल की नोक शिशु पर लगने से उस नवजात बच्चे की मृत्यु हो जाती है।
- ग्वालन जब वहां पहुंच अपने मृत बच्चे को पाती है तो विलाप करने लगती है और कहती है कि आखिर उसने एसा कौन सा पाप किया जिसके कारण उसके साथ एसा हुआ?
- तभी अचानक उसे याद आता है कि उसने आज झूठ बोल कर गाय के दूध को भैंस का दूध बता कर लोगों को बेच दिया और उनके धर्म को खराब किया।
- उनके विश्वास के साथ उसने धोखा किया, खिलवाड़ किया।
- यह समझ आते ही ग्वालिन तुरंत उठ कर उन सभी लोगों के पास जाती है जिनको उसने दूध बेचा होता है।
- वह सभी से हाथ जोड़ क्षमा मांगती है और उन्हें सच बता देती है।
- इसके बाद वह खेत में पहुंची तो उसका बच्चा उसे जीवित मिलता है।
- यह देख वह भगवान का धन्यवाद करती है और प्रतिवर्ष हल षष्ठी का व्रत करने का प्रण लेती है और अपने परिवार के साथ सुख पूर्वक रहती है।
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बलराम या हलषष्ठी पूजा विधि/ PROCESS OF BALRAM OR HARCHAT POOJA
- सुबह सवेरे उठकर महुये के दातून से सबसे पहले दांत साफ किया जाता है।
- इसके बाद दोपहर पूजा करने तक व्रत रखना होता है।
- इसके पश्चात खेत में बिना हल से जूते पैदा हुए खाद्य पदार्थ खाये जाते हैं। जिसमें पसई धान के चावल, जिसे तिनी के चावल के नाम से जाना जाता है भेंस के दूध के साथ इसका उपयोग भोजन में किया जाता है।
- ध्यान रहे भोजन पूजा के बाद ही करना है।
मैया बहुत बुरौ बलदाऊ।
कहन लग्यौ बन बड़ो तमासौ, सब मोड़ा मिलि आऊ।
मोहूँ कौं चुचकारि गयौ लै, जहां सघन वन झाऊ।
भागि चलौ, कहि, गयौ उहां तैं, काटि खाइ रे हाऊ।
हौं डरपौं, कांपौं अरू रोवौं, कोउ नहिं धीर धराऊ।
थरसि गयौं नहिं भागि सकौं, वै भागे जात अगाऊ।
मोसौं कहत मोल को लीनौ, आपु कहावत साऊ।
सूरदास बल बडौ चवाई, तैसेहि मिले सखाऊ।।
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