देवो के देव महादेव, भोलेशंकर या भगवान शिव(भोलेनाथ) का प्रिय मास है सावन या श्रावण और पूरे महीने शिव आराधना की जाती है। इस मास में कांवड़िए दूर-दूर तक कांवड़ लेकर पैदल जाते हैं।
क्यों की जाती है शिव की पूजा सावन में/ Why is Shiva worshiped in Sawan?
सावन में भगवान शिव का रूद्राभिषेक किया जाता है। बिल्वपत्र, धतूरा, भस्म व फलादि आर्पित किए जाते हैं। भारत में सावन बारिश का मौसम होता है और शिवजी को चढ़ने वाले फूल-पत्ते बारिश के मौसम में ही पल्लवित होते हैं। इसलिए सावन में शिव पूजा की परंपरा बनी।
श्रवन नक्षत्र के कारण कहते हैं श्रावण मास/ Because of Shravan Nakshatra it is called Shravan month.
- सावन के महीने पूर्णिमा तिथि पर श्रवण नक्षत्र होता है।
- इस नक्षत्र के कारण ही सावन महीने का ये नाम पड़ा बताते हैं।
- सावन के महीने में महादेव की पूजा, उनकी आराधना, भत्ति, पूजा आदि का विशेष महत्व माना जाता है।
- भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु सामर्थ्य अनुसार व्रत, उपवास, पूजन, शिव का अभिषेक आदि करते हैं।
विष्णु की योगनिंद्रा/ Vishnu’s yoga sleep
- मान्यता है कि सावन के आरंभ में भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं।
- इसलिए सारे संसार की सत्ता-संचालन का दायित्व प्रभु शिव के हाथों में होता है।
- कहते हैं कि सावन माह में की गई उपासना का विशेष फल भत्तों को पर प्राप्त होता है।
पौराणिक कथाओं में विवरण/ Description in mythology
- देवी सती(माता पार्वती) ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति द्वारा अपनी देह का त्याग किया था।
- देह त्याग से पहले देवी सती ने महादेव को प्रत्येक जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था।
- अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने राजा हिमाचल और रानी मैना के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया था।
- कहते हैं कि मां पार्वती ने सावन के महीने में अन्न-जल आदि त्याग कर, निराहार रह कर कठोर व्रत किया था।
- मां पार्वती के इस व्रत से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव(भोलेनाथ)ने देवी पार्वती से विवाह किया।
- तभी से भगवान महादेव को सावन का महीना अतिप्रिय है।
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संहार और निर्माण के देवता शिव/ Shiva, god of destruction and creation
- सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं।
- त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं।
- सच तो यह है कि शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्त्रोत हैं।
- वास्तव में, त्रिदेवों में भगवान शंकर को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
- भगवान ब्रह्मा सृजनकर्ता, भगवान विष्णु संरक्षक और भगवान शिव विनाशक की भूमिका निभाते हैं।
शिव के विविध नाम/ Various names of Shiva
- वैसे तो भगवान शिव के अनेक नाम हैं।
- लेकिन शिव के कुछ प्रचलित नामों में महाकाल, आदिदेव, किरात, शंकर, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय (मृत्यु पर विजय पाने वाले) हैं।
- त्रयम्बक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विषधर, नीलकण्ठ, महाशिव, उमापति (माता पार्वती के पति), काल भैरव, भूतनाथ, त्रिलोचन (तीन नयन वाले), शशिभूषण भी प्रचलित नाम हैं।
- पशुपतिनाथ, अर्द्धनारीश्वर, लिंगम(संपूर्ण ब्रह्मांड के प्रतीक), नटराज (नृत्य के देव), भोलेनाथ (कोमल हृदय, आसानी से माफ करने वाले, शीघ्र प्रसन्न होने वाले) आदि भी उनके नाम हैं।
सृष्टि के आदि पुरुष/ the first man of creation
- आदि का अर्थ है आरंभ। शिव को ‘आदिनाथ’ भी कहा जाता है और आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम आदिश भी है।
- वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं।
- भगवान शिव को रूद्र नाम से भी जाना जाता है।
- रुद्र का अर्थ है रुत् दूर करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला। वास्तव में रूद्र से तात्पर्य है दुखों का निर्माण और नाश करना।
- ‘शिव’ शब्द का अर्थ ‘शुभ, स्वाभिमानिक, अनुग्रहशील, सौम्य, दयालु, उदार, मैत्रीपूर्ण’ होता है।
- लोक व्युत्पत्ति में ‘शिव’ की जड़ ‘शि’ है जिसका अर्थ है जिन में सभी चीजें व्यापक हैं।
- यहां ‘वा’ का अर्थ है ‘अनुग्रह के अवतार।’
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शिव ऋग्वेद में/ Shiva in Rigveda
- ऋग्वेद में शिव शब्द एक विशेषण के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- शिव शब्द ने मुक्ति, अंतिम मुक्ति और शुभ व्यक्ति का भी अर्थ दिया है।
जन्मस्थान शिव का / birthplace of shiva
- कैलाश सरोवर को शिव का निवास स्थान माना जाता है, जहां भगवान शिव साक्षात् विराजते हैं।
- शिव’ का शाब्दिक अर्थ है- `जो नहीं है’। शिव ‘शून्य’ हैं।
- देखा जाए तो हमारी इस संपूर्ण सृष्टि में सब कुछ ‘शून्यता’ से ही तो आता है और वापस ‘शून्य’ में ही चला जाता है।
- जानकारी मिलती है कि शिव ही वो गर्भ हैं जिसमें से सब कुछ जन्म लेता है, और वे ही वो गुमनामी हैं, जिनमें सब कुछ फिर से समा जाता है।
- सब कुछ शिव से आता है, और फिर से शिव में चला जाता है।
- दूसरे शब्दों में यह बात कही जा सकती है कि शिव वह चेतना है जहाँ से सब कुछ आरम्भ होता है, जहाँ सबका पोषण होता है।
- जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है कोई भी कभी ‘शिव’ के बाहर नहीं हैं क्योंकि पूरी सृष्टि ही शिव में विद्यमान है।
शिव तत्व/ Shiva element
- हमारा मन, शरीर सब कुछ केवल शिव तत्व से ही बना हुआ है, इसीलिए शिव को ‘विश्वरूप’ कहते हैं
- विश्वरूप का अर्थ है कि सारी सृष्टि उन्हीं का रूप है।
- शिव का कोई आदि और अंत नही है। भगवान शिव को स्वयंभू कहा जाता है।
- स्वयंभू का अर्थ है कि वह अजन्मा हैं। वह ना आदि हैं और ना ही अंत।
- वास्तव में, भोलेनाथ को अजन्मा और अविनाशी कहा जाता है।
- सच तो यह है कि श्रद्धा का नाम माँ पार्वती और विश्वास का नाम शिव है।
- शिवतत्व में शिवतत्व और शक्तितत्व दोनों का अंतर्भाव होता है। परमशिव प्रकाशविमर्शमय है।
- इसी प्रकाशरूप को शिवतत्व और विमर्शरूप को शत्तितत्व कहते हैं।
- यही विश्व की सृष्टि, स्थिति और संहार के रूप में प्रकट होती है।
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शिवलिंग/ Shivalinga
- अनंत शिव की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है शिवजी।
- शिव को सुंदरेश भी कहते हैं वहीं उन्हें अघोर (भंयकर) भी कहते हैं।
- चेतना की जागृत, निद्रा और स्वप्न अवस्था के परे हैं शिव।
शिव क्या हैं/ what is shiva
- समाधि हैं शिव – चेतना की चौथी अवस्था, जिसे केवल ध्यान में ही प्राप्त किया जा सकता है।
- इस संसार में बल्कि यूं कहें कि इस संपूर्ण ब्रह्मांड में ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ शिव न हों।
- शिव सर्वत्र विराजमान हैं। जब हम शिव कहते हैं, तो हम एक विशेष योगी की बात कर रहे होते हैं।
- वे जो आदियोगी या पहले योगी हैं, और जो आदिगुरू या पहले गुरु भी हैं।
- आज हम जिसे योगिक विज्ञान के रूप में जानते हैं, उसके जनक शिव ही हैं।
- अतः हम यह कह सकते हैं कि शिव शब्द के दो अर्थ हैं। एक योगी शिव और दूसरा शून्यता।
- ये दोनों ही देखा जाए तो एक तरह के पर्यायवाची हैं, पर फिर भी वे दो अलग-अलग पहलू हैं।
चित्त शुद्धि करता है शिव का ध्यान/ Meditation on Shiva purifies the mind
- ओम् नमः शिवाय मन्त्र हमारे संपूर्ण सिस्टम को शुद्ध करता है और ध्यानमय बनाने में हमारी मदद करता है।
- दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि भगवान शिव का स्वरूप कल्याणकारक है।
नीलकंठ/ Neelkanth
- समुद्र मंथन के समय महादेव को इस दुनिया को बचाने के लिए विष(जहर) का पान करना पड़ा था।
- और उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण करना पड़ा था।
- यही कारण है कि उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है।
शिव-शक्ति/ Shiva-Shakti
- मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव और माता पार्वती भू लोक पर साक्षात् निवास करते हैं।
- यदि विधि-विधान से सच्चे मन, आत्मा, विश्वास और पूर्ण श्रद्धा भाव से उनका पूजन किया जाए तो सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम’ अर्थात इस संसार में जो भी सत्य है, वह शिव है और जो शिव है, वह स्वयं में सुंदर है।
- वास्तव में, शिव चेतना के स्वामी हैं और शिव की अर्द्धागिंनी स्वयं मां शक्ति अर्थात पार्वती हैं।
भगवान शिव की संतति/ shiv progeny
शिव के पुत्र कार्तिकेय, अय्यपा और गणेश हैं और अशोक सुंदरी, ज्योति और मनसा देवी इनकी पुत्रियां हैं।
शिव का स्वरूप/ form of shiva
- उनके मस्तक में ज्वाल है, जिसे शांत करने के लिए उनके मस्तक पर चन्द्रमा तथा जटाओं में पावन मां गंगा का वास है।
- शिव के गले में नागदेवता का वास है और इनके हाथों में डमरू और त्रिशूल हैं।
- सौम्य भी हैं और रूद्र हैं शिव। इसलिए शिव जी की पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है।
- अंत में, हम यह बात कह सकते हैं कि शिव स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च हैं।
- शिव इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड के अस्तित्व के आधार हैं।
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