Thursday, September 19, 2024
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एक विचित्र समुद्री जीव

वर्ष 2018 में एक पेशेवर फोटोगरफर ने एक विचित्र से दिखने वाले तैरते समुद्री जीव की तस्वीर सोशल मीडिया पर डाली थी। यह भूरा-नारंगी गोल गेंदनुमा जीव दिख रहा था। जिसके चपटे वाले गोलार्ध पर बालों या जटाओं की तरह संरचनाएं निकली हुई दिख रही थीं। यह कोई कीट, मोलस्क या क्रस्टेशियन नहीं था। लेकिन किसी को मालूम नहीं था कि यह है कौन-सा जीव।

अब, केरोलिंस्का इंस्टीटयूट के वैकासिक तंत्रिका वैज्ञानिक इगोर एडेमेयको ने करंट बायोलॉजी में बताया है कि उन्होंने इसके कुल की पहचान कर ली है। यह चपटे कृमियों के एक समूह डाइजेनियन फ्लूक का एक परजीवी सदस्य है।

नये अज्ञात समुद्री जीव की खोज

वर्ष 2018 में एक पेशेवर फोटोगरफर ने एक विचित्र से दिखने वाले तैरते समुद्री जीव की तस्वीर सोशल मीडिया पर डाली थी। यह भूरा-नारंगी गोल गेंदनुमा जीव दिख रहा था। जिसके चपटे वाले गोलार्ध पर बालों या जटाओं की तरह संरचनाएं निकली हुई दिख रही थीं। यह कोई कीट, मोलस्क या क्रस्टेशियन नहीं था। लेकिन किसी को मालूम नहीं था कि यह है कौन-सा जीव।

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हुई कुल की पहचान

  • अब, केरोलिंस्का इंस्टीटयूट के वैकासिक तंत्रिका वैज्ञानिक इगोर एडेमेयको ने करंट बायोलॉजी में बताया है कि उन्होंने इसके कुल की पहचान कर ली है। यह चपटे कृमियों के एक समूह डाइजेनियन फ्लूक का एक परजीवी सदस्य है।
  • एडेमेयको ने मटर के दाने जितने बड़े इस जीव का ध्यानपूर्वक विच्छेदन किया। उन्होंने देखा कि इस जीव को (तैरकर) आगे बढ़ने में जटानुमा उपांग गेंदनुमा संरचना मदद कर रही थी। यह उपांग जिस ऊपरी हिस्से से जुड़े थे, वो चपटा था। बारीकी से अवलोकन करने पर उन्होंने पाया कि यह कोई एक परणी नहीं है। बल्कि आपस में गुत्थमगुत्था बहुत सारे जीव हैं, और मुख्यत: दो तरह के जीव हैं।
  • एक तरह के जीव गोल संरचना के ऊपरी ओर बाहर लहराते हुए दिख रहे थे। इनकी कुल संख्या करीब 20 थी, ये गोले को तैरने या आगे बढ़ने में मदद कर रहे थे। इन्हें एडमेयको ने `नाविक’ की संज्ञा दी है। इनके सिर पर दो बिंदुनुमा आंखें थीं, जिससे इनके सिर सांप के फन की तरह दिखाई दे रहे थे।

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  • दूसरी तरह के जीव, गोले के दूसरे (या निचले) भाग के चारों ओर हज़ारों की तादाद में मौजूद थे। ये दिखने में शुक्राणु जैसे दिख रहे थे, जिनके सिर पेंसिल की तरह नुकीले थे और पूंछ बाल से भी पतली थी। ये सभी जीव गोले के बीच में पूंछ की ओर से एक-दूसरे के साथ गुत्थमगुत्था थे। सभी के सिर गोले के बाहर की ओर निकले हुए थे। इन जीवों को शोधकर्ताओं ने `यात्रियों’ की संज्ञा दी है।
  • विच्छेदन से जीव की बनावट तो समझ आ गई थी लेकिन इसकी पहचान नहीं हो पाई। इसे पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने एंटीबॉडी की मदद से कोशिकाओं के पैटर्न देखे। इसके आधार पर लगा कि ये जीव लोफोट्रोकोज़ोअन नामक एक समूह से सम्बंधित होंगे, जिसमें मोलस्क, बरयोज़ोआन, ब्रेकिओपोड और चपटा कृमि जैसे जीव आते हैं। उन्हें यह भी संदेह था कि जीवों का यह झुंड कोई परजीवी होगा।

  • इसके बाद, शोधकर्ताओं ने इसका डीएनए विश्लेषण किया। अंतत: वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह परजीवी चपटा कृमि कुल डायजेनियन फ्लूक का सदस्य है। और यह इसका लार्वा रूप है।
  • इस नए डायजेनियन परजीवी की दिलचस्प बात यह है कि इसमें दो तरह के लार्वा होते हैं जो आपस में सहयोग करते हैं। `यात्री’ लार्वा मछली वगैरह जैसे मेज़बानों की आंत में संक्रमण फैलाते हैं। खुले वातावरण में वे सिर्फ अपने मेज़बान में प्रवेश करने के इंतज़ार में रहते हैं। वहीं, `नाविक’ लार्वा तैरकर लार्वाओं के इस पूरे गोले को यहां-वहां पहुंचाते हैं ताकि नए मेज़बान तक पहुंच सकें। लेकिन ऐसा करने के लिए वे अपना प्रजनन अवसर त्याग देते हैं ताकि अन्य को प्रजनन अवसर सुलभ हो सके। यानी ये लार्वा सहोदर चयन की एक और मिसाल हैं।

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  • शरीर के बाहर मुत्त वातावरण में किसी परजीवी लार्वा का अध्ययन नई बात है। इस अध्ययन से पता चलता है कि मुत्त लार्वा के स्तर पर भी इस तरह का श्रम विभाजन होता है।
  • शोधकर्ता ऐसे और लार्वा की तलाश में हैं ताकि जान सकें कि झुंड में यह निर्णय कैसे होता है कि कौन `नाविक’ बनेगा और कौन `यात्री’? और इस गोले की गति का नियंत्रण कैसे होता है? शायद नाविकों के सिर पर मौजूद दो बिंदुनुमा आंखों की इसमें कुछ भूमिका हो।

 

 

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