माया से परे देखना जरूरी
यह संसार ब्रह्म की माया से ही उत्पन्न होता है और उत्पन्न होकर ब्रह्म को, सत्य को अपने पीछे छुपा लेता है। यही संसार का सत्य है। सद्गुरु रमेशजी (हाउस आफ़ एनलाइटनमेंट)कहते हैं कि जब तक इस माया को हम हटाएंगे नहीं हम इस सत्य स्वरूप ब्रह्म को देख नहीं पाएंगे, ना ही जान पाएंगे।
- यह संसार ब्रह्म की माया से ही उत्पन्न होता है और उत्पन्न होकर ब्रह्म को, सत्य को अपने पीछे छुपा लेता है।
- यही संसार का सत्य है।
- जिस प्रकार पानी के ऊपर पैदा होने वाले घास या काई पानी की शक्ति से ही पैदा होती है।
- फिर वह पूर्ण रूप से पानी की सतह पर फ़ैल जाती है।
- यह काई अपने पीछे पानी को इस तरह छुपा लेती है कि पानी का आभास ही नहीं होता।
- इसी प्रकार परमात्मा या ब्रह्म की शक्ति से उत्पन्न हुआ यह संसार उस परमात्मा ब्रह्म को अपने पीछे छुपा लेता है।
- जब तक इस माया को हम हटाएंगे नहीं हम इस सत्य स्वरूप ब्रह्म को देख नहीं पाएंगे, ना ही जान पाएंगे।
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क्या है माया
- जिसे काई या जंगली घास के बारे में पता है
- वह यह जानता है कि इसके पीछे पानी ही इसका होने का कारण है।
- परंतु जिसे जानकारी न हो इस बारे में वह यही जानेगा कि इस घास के नीचे जमीन ही होगी
- क्योंकि पानी तो दिखता ही नहीं। इसे ही माया कहते हैं।
परमात्मा है माया के पीछे
- आध्यात्मिक व्यक्ति यह जानता है कि संसार में जो भी दिखाई दे रहा है वह माया है।
- माया के पीछे परम परमात्मा छुपा हुआ है।
- जिस ब्रह्म की शक्ति से यह सब दिख रहा है, वह इसी में समाया हुआ है।
- इस आध्यात्मिक ज्ञान के कारण ऐसा व्यक्ति माया से प्रभावित नहीं होता।
- बादलों को बादल के रूप में देखना माया को देखना है परंतु इन बादलों के पीछे का सत्य जल है।
- बादल जल का ही परिवर्तित वाष्प रूप है। ज्ञानी बादल में भी जल को ही देखता है।
ज्ञानी की सत्य दृष्टि
- पानी के घड़े को सिर्फ घड़ा जानना माया है।
- परंतु घड़े में मिट्टी को देखना जिससे वह बना है, यह सत्य है।
- ज्ञानी की दृष्टि स्वर्ण आभूषणों में स्वर्ण को ही देखती है जिससे वह बनते हैं।
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बदलें अपनी दृष्टि
- इस प्रकार यदि हमारी दृष्टि बदल जाए और जो दिखाई दे रहा है उसके पीछे न दिखने वाले को हम देखने, जानने लग जाएं,
- तो हम धीरे-धीरे संसार की माया से प्रभावित हुए बिना सत्य को देखने और जानने लगेंगे।
- हमें सिर्फ अपनी दृष्टि को ही बदलना है।
- सब में छिपे सत्य को ही देखना है।
सुख और दुख का कारण
- क्योंकि सत्य हमेशा सुख देता है और असत्य यानी माया ही दुख देती है।
- हर परिस्थिति के पीछे के कारण को देखने वाला कभी भी परिस्थितियों से, लोगों से प्रभावित नहीं होता।
- जैसे कि यदि कोई क्रोध कर रहा है तो हम या तो उसके क्रोध से प्रभावित होकर उस पर क्रोध करें,
- या फिर उसके क्रोध के पीछे के कारण को समझने का प्रयास करें
- तो हम उसके क्रोध से प्रभावित नहीं होंगे, दुखी नहीं होंगे।
- बल्कि हमारा प्रति उत्तर शांत व्यवहार होगा।
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अंतदृष्टि को बदलें
- अतः बाहरी परिस्थितियों को नहीं बल्कि अंतर्दृष्टि को ही बदलना है।
- खासकर दुख देने वाली परिस्थितियों में उसके पीछे के कारण को, सत्य को समझने पर ध्यान देना चाहिए।
- इतना भी यदि हम कर लें तो माया से ऊपर उठ सकेंगे।
माया में फंसाता है अज्ञान
- मैं और मेरा का अज्ञान ही माया में फंसाता है।
- जो भी दिखाई देता है, उसके अंदर के सत्य को, कारण को जानना, देखना उसके स्रोत तक ले जाता है। जहां से वह उत्पन्न हुआ।
सर्वत्र व्याप्त है ब्रह्म तत्व
- यह चिंतन, मनन कि हर जगह वह ब्रह्म तत्व विद्यमान है उस ब्रह्म से योग करा देता है।
- सबमें परमात्मा के दर्शन करा देता है।
- फिर हम सबमें स्वयं के ही दर्शन करते हैं।
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माया से पार जाएँ
- हर परिस्थिति हर जीव, हर वस्तु में हर स्थान में उस परब्रह्म को, चेतना को देखना माया से पार जाना है।
- सारी सृष्टि परब्रह्म की भावना शक्ति द्वारा उत्पन्न हुई है
- और हम उस चेतन परब्रह्म के अंश हैं तो उससे प्राप्त प्रबल भावना की शक्ति हमारे अंदर भी है।
- हम इस भावना शक्ति द्वारा सभी में उस परब्रह्म को अनुभव कर सकते हैं, देख सकते हैं।
दुख और सुख का कारण
- जो दिखाई देता है उसको वैसे ही देखना दुख को आकर्षित करता है।
- और जो दिखाई नहीं देता, उसको देखना सुख पाना है।
- सब जगह और सबमें परमात्मा ही परमात्मा है।
- यह जानकर किया गया व्यवहार हमें परमात्मा से योग की तरफ ले जाता है।
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