आदिनाथ भगवान की पूजा का है महत्व

जैन धर्मावलंबी कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रसिद्ध तीर्थस्थल पालीताना (गुजरात, जिला भावनगर) जाकर मनाते हैं । ये दिन श्री शत्रुंजय तीर्थ यात्रा के रूप में भी जाना जाता है जो प्रत्येक जैन के जीवन का स्वप्न होता है। वे पहाड़ी के ऊपर स्थित जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री आदिनाथ भगवान की पूजा करने के लिए 4500 सीढ़ी के पहाड़ी इलाके को पैदल तय करते हैं।

महत्वपूर्ण दिवस है कार्तिक पूर्णिमा
- भारत की धार्मिक आस्था का विशेष दिन कार्तिक पूर्णिमा जैन परम्परा का एक महत्वपूर्ण धार्मिक दिन है।
- जैन धर्मावलंबी कार्तिक पूर्णिमा के प्रसिद्ध तीर्थस्थल पालीताना जाकर मनाते हैं ।
- इस दिन हजारों जैन तीर्थयात्री गुजरात के भावनगर जिले की पालीताना तालुका की शत्रुंजय पर्वत की तलहटी की शुभ यात्रा करते हैं।
- ये दिन श्री शत्रुंजय तीर्थ यात्रा के रूप में भी जाना जाता है।
Read this also – कार्तिक पूर्णिमा – देव दीपावली का पवित्र त्योहार
पूजा भगवान आदिनाथ की
- यहॉ की पैदल यात्रा करना प्रत्येक जैन के जीवन का स्वप्न होता है,
- पहाड़ी के ऊपर स्थित जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री आदिनाथ भगवान की पूजा करने के लिए 4500 सीढ़ी के पहाड़ी इलाके को पैदल तय की जाती है।
- जैन धर्म मे इस दिन को बहुत शुभ दिन माना जाता है।
चातुर्मास का अंतिम दिन
- प्राचीन भारत में भी इस दिन को श्रेष्ठ मान कर विभिन्न यात्रा आरम्भ की जाती थी।
- वर्षा ऋतु चातुर्मास का यह अंतिम दिन है।
- यह दिन पैदल तीर्थ यात्रा के लिए भी अधिक महत्व रखता है,
- क्योंकि जो पहाड़ियाँ चातुर्मास के चार महिनों के दौरान जनता के लिए बंद रहती हैं।
- वे कार्तिक पूर्णिमा पर भक्तों के लिए खोल दी जाती हैं।
- चूंकि भक्तों को मानसून के मौसम के चार महीनों तक अपने भगवान की पूजा से दूर रखा जाता है।
- इसलिए पहले दिन भक्तों की अधिकतम संख्या आकर्षित होती है।
Read this also – दुनिया का सबसे बड़ा स्वर्ण मंदिर/ The world’s largest golden temple
प्रथम तीर्थंकर की प्रथम देशना
- जैन परम्परा में यह मान्यता है कि पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने अपनी पहली देशना (उपदेश) शत्रुंजय के पहाड़ पर जाकर इसे पवित्र किया था।
मोक्ष का मार्ग सिद्ध भूमि
- जैन ग्रंथों के अनुसार, इन पहाड़ियों पर लाखों साधुओं और साध्वियों ने मोक्ष प्राप्त किया है।
- इस पहाड़ को जैन परम्परा की सिद्ध भूमि कहा जाता है।
- जैन यात्री यहॉ की यात्रा निराहार करते है। पर्वत पर कुछ भी खानपान नहीं करते हैं।
- शास्त्रों की मान्यता है कि शत्रुंजय पहाड़ की सात बार यात्रा करने से आत्मा की तीन भवों में मुक्ति हो जाती है।
- और आत्मा परमात्मा बन जाती है।
Read this also – गुरु नानक जयंती
टूंकों की महिमा
- शत्रुंजय गिरिराज तलहटी से आदिनाथ भगवान के मुख्य मंदिर टूंक तक की यात्रा में आठ मुख्य टूंक और सैकड़ो छोटे बड़े मंदिर और महापुरुषों के चरण चिन्ह आते हैं।
- जहॉ पर प्रत्येक दर्शनार्थी शीश झुकाता है।
- और नौवीं मुख्य टूंक के लिए आगे बढ़ जाता है।
- मुख्य टूंक पर भगवान आदिनाथ की भव्य प्रतिमा, मंदिर का गगनचुंबी शिखर और उस पर लहराती ध्वजा का दृष्य देखना प्रत्येक यात्री को आत्म संतुष्टि देता है।
- यात्रा की सारी थकान यात्री भूल जाता है। बड़ा ही अलौकिक व अनूठा यहॉ का वातावरण रहता है।
शंत्रुजय का प्राकृतिक सौंदर्य
- शत्रुंजय पर्वत अरावली पर्वत माला के अन्तर्गत आता है।
- पर्वत के नीचे शत्रुंजय नदी का प्रवाह भी अनवरत रहता है।
- यहॉ पर डैम बना हुआ है। जिससे कि नदी किसी विशाल सागर के सदृश हिलोरे लेती दिखाई देती है।
- पालीताणा नगर और तलहटी के बीच की दूरी अब पूरी तरह से खत्म हो गई है।
अहिंसा नगर पालीताणा
- वर्तमान में यह नगर अहिंसा नगर के रूप में प्रख्यात है।
- लगभग बारह महिनों यहॉ तीर्थयात्री रहते हैं।
- पर्वत की तलहटी से लगभग 3 किलोमीटर तक के क्षेत्र में सैकड़ो जैन धर्मशाला यहॉ बनी हुई हैं।
- जहॉ ठहरने, सात्विक भोजन आदि की समूची व्यवस्था है।
Read this also – श्रीगणेश पूजा चीन और जापान में (हिन्दी में)
वर्ष भर आते हैं तीर्थयात्री
- वर्ष में कार्तिक पूर्णिमा के अलावा चैत्र पूर्णिमा, अक्षय तृतीया, फाल्गुन तेरस के दौरान विशेष रूप से जैन धर्मावलंबी यहॉ आते हैं और आराधना करते हैं।
- यहॉ के वातावरण में एक अलग ही अनुभूति श्रद्धालुओं को होती है।
यदि यह लेख पसंद आये तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। अपने विचार और सुझाव कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। धन्यवाद।