अंतर में मिलेगा उत्तम आनंद
उत्तम आनंद की खोज में भटकता हुआ इंसान, दरवाजे दरवाजे पर टकराता फिरता है। लेकिन उसे ये आनंद उसके अंतर में ही मिलेगा।
- उत्तम आनंद की खोज में भटकता हुआ इंसान, दरवाजे दरवाजे पर टकराता फिरता है।
- लेकिन उसे ये आनंद उसके अंतर में ही मिलेगा।
- वह चाहता है बहुत-सा रुपया जमा करे, स्वस्थ रहे और सुस्वाद भोजन करें।
- सुंदर वस्त्र, बढ़िया मकान और गाड़ियों और नौकर-चाकर की चाह हर किसी को होती है।
- इंसान चाहता है कि पुत्र, पुत्रियों, बंधुओं से घर भरा हो, उच्च अधिकार प्राप्त हों, समाज में प्रतिष्ठा हो, कीर्ति हो।
- ये चीजें आदमी प्राप्त करता है, जिन्हें ये चीजें उपलब्ध नहीं होतीं, वे प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।
- जिनके पास हैं, वे उससे अधिक लेने का प्रयत्न करते हैं 1
- इन सब तस्वीरों में आनंद की खोज करते-करते चिरकाल बीत गया, पर राजहंस को ओस ही मिली।
- मोती की तो खोज ही नहीं की, मानसरोवर की ओर तो मुँह ही नहीं किया।
- लंबी उड़ान भरने की तो हिम्मत ही नहीं बाँधी।
- मन ने कहा- जरा इसे और देख लूँ।
- आँखों से न दिख पड़ने वाले मानसरोवर में मोती मिल ही जाएँगे, इसकी क्या गारंटी है।
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- यही पहिया चलता रहता है।
- आपने खूब खोजा, कुछ क्षण पाया भी, परंतु वे ओस की बूँदें ठहरीं।
- वे दूसरे ही क्षण जमीन पर गिर पड़ीं और धूल में समा गईं।
- यही नष्ट होने की आशंका अधिक संचय के लिए प्रेरित करती रहती है।
- इन नाशवान चीजों का नाश होता ही है।
- इसलिए नाशवान नहीं चिरकाल तक चलने वाले आनंद को ढूंढें।
- इसे बाहर नहीं अपने अंतर में ढूँढें।
- अपने अंतर में ही मिलेगा उत्तम आनंद। (संदर्भ – अखंड ज्योति)
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