न्यूटन से पहले ही बता दिया था गुरुत्वाकर्षण के बारे में
भास्कराचार्य ने इस ग्रन्थ में पृथ्वी के गोल होने व उसमें गुरुत्वाकर्षण शक्ति के होने की बात कही है। संस्कृत साहित्य से अनभिज्ञ लोग न्यूटन को इस सिद्धान्त का प्रतिपादक समझते हैं जो कि ग़लत है। यह सही है कि इस सिद्धान्त की सबसे पहले न्यूटन ने सम्पूर्ण व्याख्या की थी; परन्तु उससे कई शताब्दियों पहले भास्कराचार्य इसका उल्लेख अपने ‘सिद्धान्त शिरोमणि ग्रंथ’ में कर चुके थे।
आधुनिक धारणा
आज यदि विज्ञान के किसी छात्र से यह पूछा जाए
कि पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया था,
तो उसका रटा रटाया उत्तर होगा – ‘न्यूटन ने’ ।
लेकिन यह धारणा गलत है।
वास्तव में पृथ्वी चपटी क्यों दिखती है?
ग्रहण लगने का क्या कारण है?
किसी चीज़ को ऊपर फेंक देने के बाद वह पुनः पृथ्वी पर क्यों लौट आती है?
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प्रकाण्ड विद्वान भास्कराचार्य
- आदि भौतिकी के अनेक गूढ़ प्रश्नों का उत्तर प्राचीन भारतीय विद्वानों ने खोज लिया था।
- 12 वीं शताब्दी में भारत में ज्योतिष एवं गणित के प्रकाण्ड पंडित भास्कराचार्य हुए थे।
- इनका ‘सिद्धांत शिरोमणि’ ग्रन्थ गणित व ज्योतिष के क्षेत्र में ऊँचा स्थान रखता है।
- इसके दो अध्याय लीलावती एवं बीजगणित और अंकगणित एवं बीजगणित के उच्च सिद्धान्तों का परिचय देते हैं।
सिद्धांत शिरोमणि ग्रन्थ
- इसी प्रकार इस ग्रन्थ के ग्रह, गणित और गोल अध्याय ज्योतिष के सिद्धान्तों की जानकारी के लिए अत्यन्त ही मूल्यवान् है।
- भास्कराचार्य ने इस ग्रन्थ में पृथ्वी के गोल होने व उसमें गुरुत्वाकर्षण शक्ति के होने की बात कही है।
- संस्कृत साहित्य से अनभिज्ञ लोग न्यूटन को इस सिद्धान्त का प्रतिपादक समझते हैं जो कि ग़लत है।
- यह सही है कि इस सिद्धान्त की सबसे पहले न्यूटन ने सम्पूर्ण व्याख्या की थी;
भास्कराचार्य ने लिखा
परन्तु उससे कई शताब्दियों पहले भास्कराचार्य इसका उल्लेख अपने ‘सिद्धान्त शिरोमणि ग्रंथ’ में कर चुके थे।
उनकी इस पुस्तक का यह श्लोक उल्लेखनीय है:
आकृष्टि शक्तिश्च मही तथा आकृष्यते तत्पततीव भांति समे
यत् खस्थं गुरु स्वाभिमुखं स्वशक्त्या ।
समन्तात्र क्व पर्तात्वये खँ ।।
अर्थात् पृथ्वी में एक आकर्षण शक्ति है।
उसी शक्ति से आकाश स्थित भारी वस्तु उसके द्वारा स्वाभिमुख आकृष्ट की जाती है, वह गिरती हुई-सी प्रतीत होती है।
गुरुत्वाकर्षण शक्ति का स्पष्ट उल्लेख
- इस श्लोक में पृथ्वी में निहित गुरुत्वाकर्षण शक्ति का स्पष्ट उल्लेख है।
- न जाने क्यों तब भी हम भारतवासियों ने अपने इस महान् विद्वान् की इतनी महत्त्वपूर्ण खोज की उपेक्षा की।
- इस नियम के प्रतिपादन का सारा श्रेय एक पाश्चात्य विद्वान् को दे रहे हैं।
उपेक्षित हैं हमारे विद्वान
- आज भी हमारी शिक्षण संस्थाओं में विज्ञान के विद्यार्थियों को यही पढ़ाया जाता है कि इस सिद्धान्त के प्रवर्त्तक न्यूटन थे।
- भास्कराचार्य व उनके अमर ग्रन्थ ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ का कहीं कोई उल्लेख नहीं किया जाता।
- देश के एक प्राचीन विद्वान् की उपलब्धि एवं खोज के बारे में सबको अवश्य पता होना चाहिए।