Thursday, September 19, 2024
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अपनी भूलों को स्वीकारें

खुलेंगे आत्मोन्नति के मार्ग

जब मनुष्य कोई गलती कर बैठता है, तब उसे अपनी भूल का भय लगता है। वह सोचता है कि दोष को स्वीकार कर लेने पर मैं अपराधी समझा जाऊँगा, लोग मुझे बुरा भला कहेंगे और गलती का दंड भुगतना पड़ेगा। वह सोचता है कि इन सब झंझटों से बचने के लिए यह अच्छा है कि गलती को स्वीकार ही न करूँ, उसे छिपा लूँ या किसी दूसरे के सिर मढ़ दूँ ।

  • जब मनुष्य कोई गलती कर बैठता है, तब उसे अपनी भूल का भय लगता है।
  • वह सोचता है कि दोष को स्वीकार कर लेने पर मैं अपराधी समझा जाऊँगा।
  • लोग मुझे बुरा भला कहेंगे और गलती का दंड भुगतना पड़ेगा।
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  • वह सोचता है कि इन सब झंझटों से बचने के लिए यह अच्छा है कि गलती को स्वीकार ही न करूँ।
  • उसे छिपा लूँ या किसी दूसरे के सिर मढ़ दूँ।

होता है व्यक्तित्व का क्षरण

  • इस विचारधारा से प्रेरित होकर काम करने वाले व्यक्ति भारी घाटे में रहते हैं।
  • एक दोष छिपा लेने से बार-बार वैसा करने का साहस होता है।
  • और अनेक गलतियों को करने एवं छिपाने की आदत पड़ जाती है।
  • दोषों के भार से अंत:करण दिन-दिन मैला, भद्दा और दूषित होता जाता है।
  • अंततः वह दोषों की, भूलों की खान बन जाता है।
  • गलती करना उसके स्वभाव में शामिल हो जाता है।
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भूल को स्वीकारना है बहादुरी

  • भूल को स्वीकार करने से मनुष्य की महत्ता कम नहीं होती।
  • बल्कि उसके महान आध्यात्मिक साहस का पता चलता है ।
  • गलती को मानना बहुत बड़ी बहादुरी है।
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होती है आत्मोन्नति

  • जो लोग अपनी भूल को स्वीकार करते हैं।
  • और भविष्य में वैसा न करने की प्रतिज्ञा करते हैं वे क्रमशः सुधरते और आगे बढ़ते जाते हैं।
  • गलती को मानना और उसे सुधारना, यही आत्मोन्नति का सन्मार्ग है।
  • तुम चाहो तो अपनी गलती स्वीकार कर निर्भय, परम निःशंक बन सकते हो।

 

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