गहन खगोलीय गणना से तैयार हुआ हिन्दू कैलेंडर

शरद ऋतु के पतझड़ के बाद वृक्षों पर जब नयी कोपलें जीवन की नवीनता का संदेश देती हैं, चारों ओर नए फूल, फल एवं पत्तियाँ नजर आती हैं तब मन में एक नई शुरूआत का संकल्प जागता है। प्रकृति के नव कलेवर के साथ हिन्दू नववर्ष शुरू होता है। दलअसल, हिन्दू कैलेंडर प्रकृति और खगोल शास्त्र की दृष्टि से पूर्ण वैज्ञानिकता के साथ, गहन गणना के आधार पर तैयार किया गया है। यह पूर्ण रूप से वैज्ञानिक आधार पर काल की गणना करता है एवं विभिन खगोलीय घटनाओं की सटीक एवं प्रामाणिक जानकारी मुहैया करवाता है।

अलग-अलग नववर्ष
वैसे विभिन्न समुदाय के लोग अलग-अलग तिथियों एवं माह में नया वर्ष मनाते हैं। ईसाई धर्म के लोग ग्रिगोरियन कैलेंडर के आधार पर 1 जनवरी को नववर्ष मनाते है। इसी प्रकार चीन के लोग लूनर कैलेंडर के आधार पर, इस्लाम के अनुयायी हिजरी संवत के आधार पर, पारसी नववर्ष नवरोज से मनाते हैं तो पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व से, जैन नववर्ष दीपावली के अगले दिन से मनाया जाता है।
नल नाम संवत्सर
भारत में सदियों से हिन्दू समुदाय द्वारा विक्रम संवत पर आधारित कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नया संवत के नाम से भी जाना जाता है। यह दिवस सामान्यतः ग्रिगोरियन कैलेंडर (ईसाई कैलेंडर) के मार्च या अप्रैल के महीने में पड़ता है। वर्ष 2023 में हिन्दू नववर्ष बुधवार, 22 मार्च 2023, विक्रमी संवत 2080 को मनाया जायेगा। इस संवत्सर का नाम नल होगा और इसके अधिपति बुध ग्रह और मंत्री शुक्र ग्रह होंगे।
नववर्ष के विभिन्न नाम
हिन्दू नववर्ष को महाराष्ट्र, गोवा और कोंकण क्षेत्र में गुड़ी पड़वा, आंध्र-प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक में उगादी, राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में थापना, जम्मू-कश्मीर में नवरेह एवं सिंधी क्षेत्र में चेती चाँद के नाम से जाना जाता है। गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग इसे संवत्सर पड़वो के नाम से बुलाते हैं। मणिपुर में इसे सजिबु नोंगमा पानबा के पर्व के रूप में मनाया जाता है।

ऐतिहासिक महत्व
विक्रम संवत कैलेंडर की शुरूआत ईसा पूर्व 58 में की गई थी। इसे तैयार किया था उज्जैन के महान शासक विक्रमादित्य के प्रशासनिक विशेषज्ञों ने। शकों को पराजित करके विक्रमादित्य जब लौटे तो उन्होंने अपनी विशेषज्ञ मंडली को इसे तैयार करने का सुझाव दिया था।
प्रकृति और विज्ञान का मेल
वैज्ञानिक पद्धति से तैयार किया गया विक्रम संवत कैलेंडर पूर्ण रूप से वैज्ञानिक गणना पर आधारित है जहाँ नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में मनाया जाता है। इस काल प्रकृति में चारों ओर उत्साह एवं सौंदर्य रस का प्रवाह होता है। बसंत ऋतु का आगमन होता है। हिन्दू नववर्ष के अवसर पर सम्पूर्ण प्रकृति ही नए साल का स्वागत करने के लिए तैयार प्रतीत होती है।
संयोग और संदर्भ
हिन्दू नववर्ष के साथ कई संयोग और संदर्भ भी जुड़े हुए हैं। इसके साथ कई ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, पौराणिक, प्राकृतिक एवं नैसर्गिक कारण छिपे हुए है। आइए इनके बारे में जानते हैं –
पौराणिक कारण
– माना जाता है कि इस दिन प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था।
– इस दिवस के अवसर पर ही प्रभु राम द्वारा बाली का वध किया गया था।
– धर्मराज युधिष्ठर का राज्याभिषेक दिवस भी हिन्दू नववर्ष के दिन माना जाता है।
– लंकापति रावण के विजय के अवसर पर इस दिवस अयोध्यावासियों ने अपने घरों पर भगवान राम के सम्मान में विजय पताका फहराई थी।
– नवरात्र की शुरुआत भी नववर्ष से मानी जाती है।
– इस दिन सिंधी समुदाय के आदर्श पुरुष झुलेलाल जी की जयंती होती है।
– पौराणिक ग्रंथों के अनुसार नववर्ष के अवसर पर ही ब्रह्मा जी ने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया था। यही कारण है की इस दिवस को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।
प्राकृतिक कारण
– हिन्दू नववर्ष हमारे देश में बसंत ऋतु के आगमन का अवसर होता है ऐसे में प्रकृति में चारों ओर हरियाली छायी रहती है।
भारत का आधिकारिक कैलेंडर
भारत सरकार द्वारा 22 मार्च 1957 को ग्रिगोरियन कैलेंडर (ईसाई कैलेंडर) के साथ भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर को आधिकारिक कैलेंडर के रूप में अपनाया गया था, जो कि शक संवत पर आधारित है। शक संवत को 78. ईस्वी में शकों के महान शासक कनिष्क द्वारा जारी किया गया था जिसे कि भारत सरकार द्वारा आधिकारिक कैलेंडर के रूप में अपनाया गया है।

