
सुहागिनों के कठिन व्रत का ये नाम कैसे पड़ा हरतालिका तीज
हिंदू वर्ष में पूरे साल में तीन तीज के त्योहार मनाए जाते हैं। ये सभी व्रत अखंड सौभाग्य और दांपत्य जीवन की खुशहाली के लिए रखे जाते हैं। इनमें मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है। ये तीन तीज के व्रत हैं हरियाली तीज, जो सावन में आती है। इसके बाद कजरी तीज आती है, जो भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को आती है। ये दोनों तीज के व्रत हो चुके हैं। अब तीसरी और साल की अंतिम तीज आने वाली है।
ये है हरतालिका तीज का व्रत। ये व्रत हर साल भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शिव-पार्वती की मूर्ति मिट्टी से बनाकर उसकी पूजा की जाती है और निर्जला उपवास किया जाता है। हरतालिका तीज का त्योहार खासतौर से उत्तर भारत में मनाया जाता है। यह देवी पार्वती और भगवान शिव के दिव्य मिलन का प्रतीक है। इस पर्व के नाम पड़ने की रोचक कहानी है।
हरतालिका तीज नाम का अर्थ
इस त्यौहार का नाम इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा के आधार पर रखा गया है। ‘हरतालिका’ शब्द ‘हरत’ और ‘आलिका’ से मिलकर बना है। इसमें हरत का अर्थ अपहरण है और तालिका का मतलब स्त्री सखी होता है। पार्वती राजा हिमवान की बेटी हैं, जो उनका विवाह विष्णु से करना चाहते थे। लेकिन पार्वती भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थीं। इसलिए अपनी भक्ति सिद्ध करने के लिए कई वर्षों तक कठोर व्रत किया। पार्वती की साधना में विघ्न न आए, इसलिए उनकी सहेलियां उन्हें एक घने वन में ले जाकर छुपा दिया। इस कारण से उनका विवाह विष्णु से नहीं हो पाया और आखिर पार्वती की भक्ति से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
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पूजा तिथि और मुहूर्त
इस वर्ष हरितालिका तीज का व्रत 26 अगस्त 2025 को रखा जाएगा। तृतीया तिथि की शुरुआत 25 अगस्त को दोपहर 12:34 बजे से होगी और इसका समापन 26 अगस्त को दोपहर 1:54 बजे होगा। उदया 26 अगस्त को मिलने की वजह से यह उपवास भी इसी दिन रखा जाएगा।
व्रत का पारण
हरतालिका तीज के व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है। इस दिन, महिलाएं भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करने के बाद, व्रत का पारण करती हैं।
पूजा के लिए मिट्टी से बनाई जाती है शिव-पार्वती की मूर्ति

हरतालिका तीज पर, विवाहित महिलाएं मिट्टी या रेत से भगवान शिव और देवी पार्वती की मूर्तियां बना कर उसकी पूजा करती हैं। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत (बिना अन्न-जल के उपवास) रखती हैं, मेहंदी लगाती हैं और सोलह श्रंगार करती हैं। सुखी वैवाहिक जीवन और अपने पति के स्वास्थ्य की कामना करती हैं।
हिंदू धर्म के सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत करती हैं। इस दिन मिट्टी और बालू से भगवान शिव और मां पार्वती की हाथ से मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है। यह व्रत हर साल भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है। इस बार यह उपवाद 26 अगस्त को किया जाएगा। खास बात ये है कि इस साल इस व्रत पर हस्त नक्षत्र का भी योग बन रहा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने भी भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए इस व्रत को हस्त नक्षत्र में किया था। इसलिए जब भी ये व्रत हस्त नक्षत्र में होता है, तो इसे शुभ फलदायी माना जाता है। इस व्रत में शाम के समय शिव-पार्वती की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। आइए जानें इस दिन की जाने वाली पूजा की पूरी विधि
पूजा विधि
इस दिन शादीशुदा महिलाएं और कुंवारी कन्याएं अखंड सौभाग्य की कामना से व्रत करती हैं। इस दिन के पूजा की विधि का खास महत्व होता है। इस दिन की पूजा में महिलाओं द्वारा शिव-पार्वती की हाथ से बनाई मूर्ति की पूजा करने का विधान है। पूजा की शुरुआत में सबसे पहले विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता भगवान गणेश को स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है।
इस दिन पूजा के स्थान को अच्छी तरह साफ करने के बाद पूर्व दिशा में चौकी बिछाएं। इस पर लाल कपड़ा बिछाकर शिव-पार्वती और गौरी पुत्र गणेश की मूर्ति स्थापित करते हैं। इसके बाद मूर्तियों को गंगाजल से स्नान कराकर चौकी पर बिठाएं। फिर चौकी पर चावल का अष्टदल बना कर कलश स्थापित करें। कलश में सुपाड़ी, हल्दी डालकर उसके ऊपर आम के पत्ते लगाएं। इस कलश के मुंह पर कटोरी में चावल भर कर रखें। कलश पर स्वास्तिक चिह्न बनाएं और कटोरी में रखे चावल के ऊपर दीपक जलाकर रखें।
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गणपति को वस्त्र और दूर्वा अर्पित करें और माता पर्वती को 16 श्रृंगार और चुनरी चढ़ाएं। महादेव को बेलपत्र, धतूरा, फल और फूल अर्पित करें। भोग के लिए खीर या पूए बना सकती हैं। इसके बाद भीगे चने भी अर्पित कर सकती हैं। इसके बाद दीपक जलाएं और मां पर्वती की मूर्ति को पांच बार सिंदूर लगाएं। इसके बाद मां पार्वती से सुहाग लेने के लिए वही सिंदूर खुद को पांच बार लगाएं। इस के बाद तीज व्रत की कथा कहें और आरती कर प्रसाद वितरण करें।
इस दिन शिव-पार्वती को गुलाल, इत्र और गुलाब का फूल भी अर्पित किया जाता है। इसके अलावा भोलेनाथ के वाहन नंदी महाराज को शहद अर्पित करने का विधान है। कहीं-कहीं इस दिन मां पार्वती को सुहाग की पिटारी चढ़ाई जाती है, जिसमें साड़ी, पायल-बिछिया सहित सुहाग का सभी सामान होता है। आप चाहें तो ये पिटारी परिवार की विवाहित बुजुर्ग महिला को भेंट कर सकती हैं।
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