Sunday, December 7, 2025
Homeआर्थिकजानकारीस्वदेशी  युवा आदिवासी 

स्वदेशी  युवा आदिवासी 

स्वदेशी  युवा आदिवासी / SWADESHI YUVA ADIVASI
स्वदेशी  युवा आदिवासी / SWADESHI YUVA ADIVASI

आदिवासी समूह  हिन्दू सदू माज के अनेक महत्वपूर्ण पक्षों में समान है।भारत में बहुसंख्यक हिन्दू धदू र्म की संस्कृति इनमें परचीन काल से ही देखी दी सी दिखलाई देती हैं।आदिवासियों की संस्कृतियों में ऐतिहासिक जिज्ञासा का परयः अभाव रहता है आदिवासियों के सम्मान का दिन है विश्व आदिवासी दिवस।

महत्वपूर्ण दिन / IMPORTANT DAY:-

  • आदिवासियों के सम्मान का दिन है विश्व आदिवासी दिवस सामान्यतः किसी भौगोलिक क्षेत्र के वैसेवै से निवासी, जिनका उस भौगोलिक क्षेत्र से ज्ञात इतिहास में सर्वाधिक परचीन सम्बन्ध रहा हो, के लिए आदिवासी शब्द का प्रयोग होता है परंतु संसार के विभिन्न भा गों में जहाँ अलग-अलग धाराओं में अलग-अलग क्षेत्रों से आकर लोग बसे ! हों, उस विशिष्ट भाग के परचीनतम अथवा परचीन निवासियों के लिए भी आदिवासी शब्द का उपयोग किया जाता है।
  • पौराणिक ग्रंथों में प्रयुत्तयु दस्यु, युनिषाद आदि शब्द से मिलती- जुलजु ती नाम वाली वर्तमा र्त न भारत में रहने
  • वाले विभिन्न प्रजातियों के समूहों मू के वंशज भी भारत में आदिवासी माने जाते हैं!

आदिवासी के समानार्थी / SYNONYMS OF TRIBAL:-

  • शब्दों में ऐबोरिजिनल, इंडिजिनस, देशज, मूल मू निवासी, बनवासी, जनजाति, गिरिजन, बर्बर आर्ब दि प्रचलित हैं।
  • इनमें से हर एक शब्द के पीछे सामाजिक व राजनीतिक संदर्भ हैं। अधिकांश आदिवासी आज भी सभ्यत के परथमिक धरातल पर जीवन-यापन करते हैं।
  •  वे सामान्यतः क्षेत्रीय समूहों मू में रहते हैं और उनकी संस्कृति अनेक दृष्टियों से स्वयंपूर्णपू रह ती है।
  •   परंतु विभिन्न कारणों से आदिवासियों विशेषशे तः आदिम जनजाति के सदस्यों की जनसंख्या कम होती जा रही है, तथा इनमें कुपोषण, सिकल सेल अनिमिया आदि विभिन्न बीमारियों के कारण इनकी शारीरिक वृद्वृधि अन्य जाति समूहों  की अपेक्षा कम होने से सरकारें तक चिंतिचिंत हैं।
  • यही कारण है कि आदिवासियों की सुरसुक्षा और उनके अधिकारों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 9 अगस्त को विश्व के आदिवासी लोगों का अंतअं र्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है।
  • पर्यावरण संरक्षण और वैश्वि वै क महत्व के मुद्मुदों के प्रति आदिवासियों के योगदान और उनकी उपलब्धियों
  • को रेखांकित करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए विश्व आदिवासी दिवस का आयोजन
  • संसार के अधिकांश देशों मे किया जाता है।
  •  विश्व आदिवासी दिवस की घोषणा पहली बार संयुत्तयु राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर 1994 में की गई थी।

Read this also – “RRR’’ प्लास्टिक रीसाइकिल/ PLASTIC RECYCLED

कार्यक्रम का आयोजन / ORGANIZING EVENT:-

स्वदेशी  युवा आदिवासी / SWADESHI YUVA ADIVASI

  • 1982 में 9 अगस्त को मानव अधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण पर संयुत्तयु राष्ट्र कार्य र्की मूलमू निवासी आबादी पर पहली बैठक हुई थी!
  • बाद में संयुत्तयु राष्ट्र महासभा ने अपने 23 दिसंबर 1994 के प्रस्ताव 49/214 द्वारा यह निर्णय र्ण लिया I
  • कि विश्व के आदिवासी लोगों के अंतअं र्राष्ट्रीय दशक के दौरान अंतअं र्राष्ट्रीय आदिवासी लोगों का अंतअं र्राष्ट्रीय
  • दिवस प्रतिवर्ष 9 अगस्त को मनाया जाएगा।
  • इस दिन आदिवासियों से संबंधित संयुत्तयु राष्ट्र के संदेश को फैलाने के लिए विभिन्न देशों के लोगों को तत्संबंधी आयोजनों के अवलोकन में भाग लेने के लिए परेत्साहित किया जाता है।
  • इन गतिविधियों में आदिवासियों के रहन- सहन, कला संस्कृति, रीति- रिवाज, प्रथाओं को प्रदार्शित कर र्शि ने वाली शैक्षिशै क मंच और विद्यालयीन कक्षा की गतिविधियाँशामिल होती हैं।
  • विश्व आदिवासी दिवस भारत के आदिवासियों द्वारा भी धूम धू धाम से मनाया जाता है, जिसमें शहरों में मार्गों पर अपने हरबे हथियार के साथ रैली निकाली और मंच में आदिवासियों से संबंधित सांस्कृतिक  कार्यक्रर्य म आयोजित किए जाते हैं।

एकजुटता का परिचय / INTRODUCTION TO A DISCOUNT:-

  • भारत में आदिवासियों को हिन्दू धदू र्म के दो वर्गों में अधिसूचित किया गया है! अनुसून चित जनजाति और अनुसूनु चि त आदिम जनजाति।
  • भारत की जनगणना 1951 के अनुसा नु र आदिवासियों की संख्या 9,91,11,498 थी जो 2001 की जनगणना के अनुसा नु र 12,43,26,240 हो गई। यह देश की जनसंख्या का 8.2 प्रतिशत है।
  • भौगोलिक दृष्टि से आदिवासी भारत का विभाजन चार प्रमुख मु क्षेत्रों में किया जा सकता है – उत्तरपूर्व  य क्षेत्र, मध्य क्षेत्र, पश्चिमी क्षेत्र और दक्षिणी क्षेत्र।
  • उत्तर पूर्वी य क्षेत्र के अंत र्गत र्हिमालय अंचल  के अतिरित्त उपत्यका और ब्रह्मपुत्र की यमुना -शाखा के पूर्वी  भाग का पहाड़ी प्रदेश आता है।

Read this also – NEET-UG 2024 परिणाम

आदिवासी की विशेता / CHARACTERISTIC OF TRIBAL:-

  • इस भाग के आदिवासी समूहों  में गुरूंग, लिंबूलिं , बूलेपचा, आका, डाफला, अबोर, मिरी, मिशमी, सिंगसिं पी, मिकिर, राम, कवारी, गारो, खासी, नाग, कुकी, लुशा लु ई, चकमा आदि उल्लेखनीय हैं। मध्यक्षेत्र का विस्तार उत्तर-प्रदेश के मिर्जापुर  जिले के दक्षिणी ओर राजमहल पर्वतर्व माला के पश्चिमी भाग से लेकर दक्षिण की गोदावरी नदी तक है। संथाल, मुंडा मुं , महली, उरांव, हो, भूमिभू ज, खड़िया, बिरहोर, जुआंजु गआं , खोंड, सवरा, गोंड, भील, बैगा बै , कोरकू, कमार आदि इस भाग के प्रमुख आ मु दिवासी हैं।
  • पश्चिमी क्षेत्र में भील, मीणा, ठाकूर, कटकरी, टोकरे कोली, कोली महादेव, मन्नेवार, गोंड, कोलाम, हलबा, पावरा (महाराष्ट्र) आदि प्रमुख आ मु दिवासी जनजातियां निवास करते हैं।
  • पश्चिम राजस्थान से होकर दक्षिण में  तक का पश्चिमी प्रदेश इस क्षेत्र में आता है।
  •  गोदावरी के दक्षिण से कन्याकुमारी तक दक्षिणी क्षेत्र का विस्तार है।
  •  इस भाग में जो आदिवासी समूह रह मू ते हैं उनमें चेंचू, चूकोंडा, रेड्डी, राजगोंड, कोया, कोलाम, कोटा, कुरूंबा, बडागा, टोडा, काडर, मलायन, मुशुमु वनशु , उराली, कनिक्कर आदि उल्लेखनीय हैं।
  • आदिवासियों की संस्कृतियों में ऐतिहासिक जिज्ञासा का परयः अभाव रहता है जिसके कारण इनके पूर्वपूजों र्व
  • के यथार्थ इर्थ तिहास भी किंवदंतियों और पौराणिक कथाओं में घुल  मिल जाते हैं।
  • सीमित परिधि तथा  जनसंख्या के कारण इन संस्कृतियों के रूप में स्थिरता रहती है। किसी एक काल में होने वाले सांस्कृतिक परिवर्तन अप र्त ने प्रभाव एवं व्यापकता में अपेक्षाकृत सीमित होते हैं।
  • यही कारण है कि परंपरा केंद्रित आदिवासी संस्कृतियां अपने अनेक पक्षों में रूढ़िवाद।

अपनी पेहचान ना खोये / NEVER LET YOUR PERSONALITY LEAVE :-

  • भारत में बहुसंख्यक हिन्दू धदू र्म की संस्कृति इनमें परचीन काल से ही देखी दी सी दिखलाई देती हैं।
  • जाती है, और वे सनातन के वंशज कहलाते हैं।
  • आदिवासी लोग हिन्दू धदू र्म का पालन करते हैं, और सारे पर्व- र्व त्योहार मनाते हैं। ये रामनवमी में श्रीराम व हनुमान, नवरात्र में देवी पूजन , और आदिमहादेव शिवशंकर से संबंधित पर्व त्योहार बड़े ही भत्तिभाव से करते दृष्टिगोचर होते हैं।
  •  उनकी प्रथागत जनजातीय आस्था के अनुसा र  विवाह और उत्तराधिकार से जुड़ेजुड़े मामलों में सभी विशेषाशेधिको  बनाए रखने के लिए उनके जीवन का अपना तरीका है।
  •  भारत, उत्तर और दक्षिण अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, एशिया तथा अनेक द्वीपों और द्वीपसमूहों मू में आज भी आदिवासी संस्कृतियों के अनेक रूप देखे जा सकते हैं।
  • भारत में अनुसूनु चि त जनजाति अर्थात आदिवासी समूहों मू की संख्या 700 से अधिक है।
  •  परंतु  अप नी फुट डालो और राज करो नीति के तहत आदिवासियों को भारत के बहुसंख्यकों से अलग कर अपना हित साधने के उद्देश्य से ब्रिटिश शासकों के द्वारा भारत में 1871 से लेकर 1941 तक की जनगणनाओं में
  • आदिवासियों को भारत के बहुसंख्यक हिन्दू धदू र्म से विलग एक अलग धर्म में गिना गया, तथापि स्वतंत्र
  • कहे जाने वाले भारत में 1951 की जनगणना के बाद से आदिवासियों को हिन्दू धदू र्म में गिनना शुरू कर दिया गया है।
  •  इन पर मुसलमानों व अंग्रेजों ने सदैव ज़ुल्ज़ुम किये जब भारत मुसलमु मान और अंग्रेजों का गुलाम था।
  • फिर भी आदिवासी परचीन काल से लेकर स्वतंत्रता संगरम के काल तक राजनीतिक उठापटक के केंद्र विंदुविं दुमें रहे हैं।  देश के अनेक भागों में उनका राज्य रहा है।
  •  अनेकों ने भारतीय स्वाधीनता संगरम में अपने परणों कि बलि दी है।
  • उनके महान कार्यों के लिए कईयों को पद्म श्री के सम्मान से विभूषिभू त किया गया है।
  •  परचीनकाल में आदिवासियों ने भारतीय परंपरा के विकास में महत्वपूर्णपू र्ण योगदान किया थाऔर उनके रीति रिवाज और विश्वास आज भी हिन्दू सदू माज की सहभागिता में देखे जा सकते हैं।
  • परचीन काल से ही भारतीय समाज और संस्कृति के विकास की प्रमुख मु धारा में मिलकर कार्य करर्ते  हैं।

Read this also – पी.वी. सिंधु दूसरे राउंड में

भारत के आदिवासी / TRIBALS OF INDIA:-

स्वदेशी  युवा आदिवासी / SWADESHI YUVA ADIVASI

  • आदिवासी समूह  हिन्दू सदू माज के अनेक महत्वपूर्ण पक्षों में समान है। जो कुछ थोड़ा बहुत अंतर  था, वह दूरी दू भी समसामयिक आार्थिक श र्थि त्तियों तथा सामाजिक प्रभावों के कारण अब कम हो चुकी है।
  •  फिर भी आदिवासियों की सांस्कृतिक भिन्नता को बनाए रखने में कई प्रयत्नों का योग रहा है।
  •  भारत, भारतीय व भारतीयता के विरोधी तत्वों ने उनमें से अनेक समूहों मू पर बहुसंख्यक विरोधी पृथक जन पृ जातीय भावना  उत्पन्न कर दी है।
  •  और वे बहुसंख्यक विरोधी वयान देने, बहुसंख्यकों के देवी -देवताओं को अपमानित करने सदृश्य कार्यों को अंजाम देने लगे हैं।
  •  फिर भी सामाजिक-सांस्कृतिक धरातल पर उनका भारतीय संस्कृति के गठन में केंद्रीय महत्त्व है।
  •  आज भी परंपरा का प्रभाव उन पर नए आार्थिक  मूल्मूयों के प्रभाव की अपेक्षा अधिक है।
  •  धर्म के क्षेत्र में जीववाद, जीविवाद, पितृपूतृ जा पू आदि उन्हें हिन्दू धदू र्म के और समीप लाते हैं।
  •  विभिन्न पर्व- र्व त्योहारों, चार धामों की यात्रा आदि में उनकी सहभागिता भी आज के आदिवासियों के बहुसंख्यक हिन्दू संस्कृति के सनातन प्रभाव को ही दृष्टिगोचर कराता है।
  •  अपने पूर्वपूजों र्व की भांति आज भी उनके द्वारा हिन्दू-दूसंस्कृतियों का स्वीकरण आदिवासियों को भारत के बहुसंख्यकों कि सभ्यता- संसकिती के करीब ही लाता है।
  •  फिर भी राजनीतिक दांव- पेंच के शिकार आदिवासी आज विदेशी, विधर्मीतत्वों के  प्रभाव में पेंडुलम की भांति इधर- उधर घूमघू ने को विवश हैं।

 

यह लेख पसंद आए तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। अपने विचार और सुझाव कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।

 

सारिका असाटी

 

 

RELATED ARTICLES
- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments