संत रविदासजी ने हिंदू-मुस्लिम एकता व भाईचारे के लिए सतत संघर्ष किया। उन्होंने जात-पात के भेदभाव को मिटाने तथा देश की एकता, अखंडता एवं सांप्रदायिक सद्भाव के लिए अहम भूमिका अदा की। जन सामान्य को समझाया कि मानव मात्र की एक ही जाति है और सबका मालिक एक ही है।
समझाया कि ईश्वर एक है
- संत रविदासजी ने हिंदू-मुस्लिम एकता व भाईचारे के लिए सतत संघर्ष किया।
- वे राम-रहीम, कृष्ण-करीम, काशी-काबा, पुराण-कुरान, वेद-बाइबिल सभी को एक ही मानते थे।
- उन्होंने जात-पात के भेदभाव को मिटाने तथा देश की एकता, अखंडता, शांति, संगठन एवं सांप्रदायिक सद्भाव के लिए अहम भूमिका अदा की।
- जन सामान्य को समझाया कि मानव मात्र की एक ही जाति है और सबका मालिक एक ही है।
जयंती पर सीख
- इस वर्ष 24 फरवरी को संत रविदासजी की जयंती पूरे देश में संत की इस सीख के साथ मनाई जा रही है कि
- कुछ बुरे लोग गलत काम ही करेंगे, हमें यह तय करना चाहिए कि हम बुरे लोगों की वजह से अपनी अच्छाई नहीं छोड़ेंगे।
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प्रेरक जीवन
- संत रविदास अपने विचारों और अपने प्रेरक जीवन की वजह से आज भी याद किए जाते हैं।
- जो लोग उनके विचारों व उपदेशों को अपने जीवन में उतार लेते हैं, वह अनेकों परेशानियों से बच सकते हैं।
- उनके जीवन में सुख-शांति बनी रह सकती है।
संत रविदास का जन्म
- भारत में मध्यकाल के दौरान सामाजिक असमानता, आर्थिक दरिद्रता और राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति थी।
- समाज में व्याप्त कुरीतियों के बोलबाला था।
- ऐसे समय में संत शिरोमणि श्री रविदास जी महाराज जैसे महापुरुष का अवतरण हुआ।
- संवत 1433 की माघी पूर्णिमा को ज्ञान और वैराग्य की शाश्वत भूमि काशी में सुसंपन्न चर्मकार कुल में वे अवतरित हुए।
- जिस दिन संत रविदास जी का अवतरण हुआ उस दिन रविवार था, इस कारण उन्हें रविदास कहा गया।
जन्मस्थली वाराणसी
- संत रविदास की जन्म स्थली वाराणसी (काशी) उत्तरप्रदेश थी।
- उनके गुरु काशी के पंडित रामानंदजी एवं शिष्या चित्तौड़ की रानी झाली व कृष्ण भक्त मीराबाई थीं।
- रविदासजी भारत की 15 वीं शताब्दी के एक महान संत, दर्शनशास्त्री, कवि, समाजसुधारक और ईश्वर के सच्चे अनुयायी थे।
कर्मत्व की शिक्षा
- उन्होंने समस्त मानव समाज को मानवता और कर्मत्व की शिक्षा दी।
- उनकी वाणी बेहद सारगर्भित, अनूठी और प्रभावशाली थी।
- वे जीवन का मर्म जानते थे और इस मर्मज्ञान के माध्यम से ही उन्होंने समाज को जागृत करने एवं नई दिशा दिखाने का भरपूर प्रयास किया।
- समतामूलक समाज की रचना में वे विश्वास रखते थे और कहते थे कि जन्म के आधार पर कोई भी मनुष्य ऊंचा या नीचा नहीं होता है,
- मनुष्य का व्यवहार ही उसे ऊंचा या नीचा बनाता है।
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भेदभाव की घोर आलोचना की
- संत रविदास जी ने जन्म के आधार पर होने वाले भेदभाव की घोर आलोचना की।
- उन्होंने कहा कि मनुष्य ने जातियों के भीतर अनेक जातियां बना दी जिसका कोई आधार नहीं है।
- जब तक यह जाति का भेदभाव रहेगा तब तक मनुष्य एक दूसरे से नहीं जुड़ पाएंगे।
- वे एक ऐसे सुशासन की मंशा रखते थे जिसमें प्रत्येक मनुष्य को अन्न व न्याय उपलब्ध हो।
- कहते थे कि अमीर तथा गरीब में आर्थिक विषमता की खाई को समाप्त करके ऐसे राज्य की स्थापना करके ही मुझे खुशी मिलेगी।
दयालु प्रवृत्ति
- वे इतने दयालु प्रवृत्ति के थे कि जो भी उनके द्वार पर आता था, वे उससे बिना पैसे लिए ही अपने हाथों से बने जूते पहना देते थे।
- हर काम पूरी लगन और श्रद्धा से करते थे।
भाईचारे का संदेश
- संत ने अपने कर्म और वचनों से सभी को भक्ति, परोपकार और भाईचारे का संदेश दिया।
- उन्होंने मनुष्य को सुख और शांतिपूर्वक जिने के लिए दो ही स्थान बताए, एक स्वराज्य और दूसरा शमशान।
- अपनी आत्मा को उन्होंने कभी भी धन या प्रसिद्धि का दास नहीं बनने दिया।
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मन चंगा तो कठौती में गंगा
- पुरुषार्थ के स्थान पर कभी भी अकर्मण्यता को स्वीकार नहीं किया।
- मन की पवित्रता उनके लिए मानव जीवन का सच्चा जीवन लक्ष्य थी,
- इसलिए “मन चंगा तो कठौती में गंगा” जैसे सुविचार उन्होंने क्रियान्वित करके भी दिखाएं।
कर्मकांड को मानते थे निरर्थक
- अनेकों प्रसंग हैं जिसमें संत रविदास जी के चमत्कारों का वर्णन भी मिलता है।
- वे अंधविश्वास, आडंबर और कर्मकांड को निरर्थक मानते थे।
- उनकी भक्ति साधना में विनम्रता तथा प्रेम की प्रधानता थी। आचरण की पवित्रता पर उन्होंने विशेष बल दिया।
- संत रविदास गुरु महिमा और सत्संग के समर्थक थे।
- वे मानते थे कि सत्संगति के बिना भगवान से प्रेम नहीं हो सकता और भगवतप्रेम के बिना मुक्ति नहीं हो सकती।
- वे क्रोध, लोभ, माया, मोह एवं अहं को त्याज्य मानते थे।
संत शिरोमणि गुरु रैदास
- गुरु रविदास को गुरु रैदास के नाम से भी पुकारा गया एवं इन्हें संत शिरोमणि की उपाधि दी गई।
- उनके अधिकांश अनुयायी सिख धर्म का पालन करते थे और श्री गुरु ग्रंथ साहिब में आस्था रखते थे।
- रविदास जी का यह अनुयायी संप्रदाय मुख्य रूप से पंजाब के मालवा क्षेत्र में निवास करता है।
काव्य रचनाएँ
- रैदास ने अपनी काव्य रचनाओं में सरल, व्यावहारिक ब्रज भाषा का प्रयोग किया।
- इसमें राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी भाषा, एवं उर्दू तथा फ़ारसी शब्दों का भी मिश्रण रहा।
- उनके अनेकों दोहे तथा उक्तियाँ प्रचलित रहीं जो आज भी जीवंत मानी जाती हैं।
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सेवक और मालिक की तरह भक्ति
- रैदास की भक्ति सेवक और मालिक के समान है।
- जिस प्रकार सेवक अपने मालिक की भक्ति करता है और अपना पूरा जीवन उस मालिक की भक्ति में लगा देता है। उन्होंने ठीक वैसा ही जीवन जिया।
- वे भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे।
- उनकी भक्ति से हमें दूसरों की सहायता करने की सीख मिलती है जिससे आत्मज्ञान का मार्ग प्रशस्त होता है।
मानव प्रेम से ओत-प्रोत वाणी
- रैदास की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना एवं मानव प्रेम से ओतप्रोत थी
- इसलिए उनका श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था।
- उनके भजनों तथा उपदेशो से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी कि उनकी शंकाओं का संतोषजनक समाधान हो जाता था
- लोग स्वतः ही उनके अनुयायी बन जाते थे।
- उनकी इस पावन पुनीत जन्म जयंती के अवसर पर हम उन्हें शत-शत नमन करते है।
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