Thursday, September 19, 2024
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सद्गुरु रमेशजी अवतरण दिवस

जगत कल्याण के लिए समर्पित सग्दुरु रमेश जी

बालपन से ही चिंतक

अपने नाम के अनुरूप गुणों से युक्त रमेश जी का जन्म सन् 1957 में बाराबंकी ज़िला के जैन परिवार में हुआ।

सामान्य बच्चों के समान ही उनका लालन-पालन हुआ, लेकिन रमेश जी का धार्मिक दृष्टिकोण बाली उम्र से ही भिन्न था।

उनके बचपन की एक घटना है।

एक बार परिवार के सभी लोग भगवान के दर्शन के लिए मंदिर के भीतर गए, लेकिन बालक रमेश मंदिर के बाहर ही खड़ा रहा।

उनसे परिजनों ने भीतर न आने का कारण पूछा तो उसने कहा,

कि यदि ईश्वर सिर्फ मंदिर के भीतर है, बाहर नहीं है तो वो ईश्वर हो ही नहीं सकता

और अगर वो बाहर-भीतर सब जगह है तो मुझे भीतर जाने की क्या आवश्यकता?

ऐसी व्यापक सोच और भावों के साथ जीवन व्यतीत करते हुए उन्होंने स्नातक की शिक्षा पूरी की।

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शिक्षा के बाद

शिक्षा के बाद उन्होंने उद्योग के क्षेत्र में प्रवेश किया।

कुछ वर्षों तक सफल उद्योगपति के रूप में ख्याति पाने के साथ-साथ धन-संपत्ति भी अर्जित की।

आज भी वे अपने परिवार में पुत्र, भाई, पति, पिता, दादा, नाना आदि अपनी भूमिकाएं सफलतापूर्वक निभा रहे हैं।

सबके बीच रहते हुए भी जल में कमल के समान निर्लिप्त जीवन जी रहे हैं।

छोटी उम्र में रमेश जी ने सांसारिक सफलता के शिखर को छू लिया।

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गुरू का सान्निध्य

अपने सांसारिक कर्त्तव्यों का पालन करते हुए रमेश जी ने अपने प्रथम गुरु श्री राजेंद्र ब्रह्मचारी जी के सान्निध्य में योग-साधना की।

उनकी जीवन-संगिनी कुसुम जी सदा उनके प्रति समर्पित रहीं।

रमेश जी के साथ-साथ उन्होंने भी कठिन यौगिक क्रियाओं की साधना की

प्राणायाम, धोति, नेति, कुंजल आदि अभ्यासों में निपुणता हासिल की।

दोनों को क्रियायोग, राजयोग और हठयोग आदि करते हुए अनेक दिव्य अनुभूतियां हुईं।

पूर्णानंद स्वामी जी से भेंट

इतना सब करने पर भी उन्हें आत्म तृप्ति नहीं हुई और मन में निरंतर जिज्ञासा बनी रहती थी।

ऐसे में एक दिन दैव योग से अपने पहले गुरु श्री राजेंद्र ब्रह्मचारी जी के माध्यम से रमेश जी की भेंट श्रीशैलम निवासी पूर्णानंद स्वामी जी से हुई।

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अलौकिक आभास

पूर्णानंद स्वामी जी के अलौकिक दर्शन करते ही रमेश जी को अलौकिक आभास हुआ

कि यही वे गुरु हैं जिनके सान्निध्य में उन्हें अपने आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है।

स्वामी जी की दृष्टि में इतना तेज था कि कुछ क्षणों के लिए रमेश जी को होश ही नहीं रहा कि वे कहां हैं।

दिव्य सान्निध्य में आत्मज्ञान की अनुभूति

अब तो स्वामी जी के दर्शन के लिए रमेश जी और कुसुम जी अक्सर श्रीशैलम (12 ज्योतिर्लिंगों में एक)  जाने लगे।

जब भी कोई बहाना मिलता, वे स्वामी जी से अपने घर पधारने की याचना करते।

स्वामी जी की कृपा होती तो कई दिनों तक उनका दिव्य सान्निध्य और आत्मज्ञान उन्हें प्राप्त होता।

धीरे-धीरे इन दोनों के भीतर आत्मज्ञान उतरता गया।

पूर्णानन्द स्वामी जी के प्रति दोनों का समर्पण सहज ही होता चला गया।

इन दोनों ने स्वामी जी और उनके भक्तों की सेवा का हर पल लाभ उठाया।

ऐसा करके दोनों अपने आपको धन्य मानते हैं।

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मुक्ति भाव का स्फुरण

आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुए रमेश जी के मन में यह भाव गहरा हो गया था कि उन्हें इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त कर लेनी है।

पूर्णानंद स्वामी जी की कृपा से दोनों को एक ही दिन आत्मबोध हुआ।

सद्गुरु पद आरोहण

स्वामी जी की अनुकंपा से वे एक सच्चे शिष्य के साथ-साथ सद्गुरु के पद को प्राप्त हुए।

और तब से लेकर आज तक अपने संपर्क में आने वाले हर व्यत्ति को आत्म-ज्ञान बांट रहे हैं।

लगभग दो दशकों से सग्दुरु रमेश जी और गुरु मां विविध रूपों में ज्ञान बांट रहे हैं।

ताकि परिवार और समाज में आपसी सद्भाव बढ़े।

सभी सुखमय जीवन का आनंद उठाते हुए अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित हो सकें।

व्हाट्सएप, फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर आदि माध्यमों से उनके ज्ञान से जुड़ा जा सकता है।

उनके व्हाट्सएप ग्रुप के निःशुल्क सदस्य बनकर उनसे सीधे जुड़ा जा सकता है।

और अपनी सभी सांसारिक और आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान सीधे उन्हीं से पाया जा सकता है।

साप्ताहिक सत्संग आयोजन

हर गुरुवार को हैदराबाद (तेलंगाना) में साप्ताहिक आध्यात्मिक सत्संग आयोजित होता है।

इसमें भाग लेकर भी व्यत्तिगत रूप से उनका मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है।

`हाउस ऑफ एनलाइटमेंट’

लोक-कल्याण की भावना से उन्होंने `हाउस ऑफ एनलाइटमेंट’ नामक आध्यात्मिक संस्था की स्थापना की है।

जिसके द्वारा विभिन्न कार्य किए जा रहे हैं।

मनुष्य मात्र की आध्यात्मिक उन्नति के उद्देश्य से सग्दुरु रमेश जी सदैव तत्पर रहते हैं।

भारत या विदेश के किसी भी शहर में आयोजित कार्यक्रमों में जाने के लिए तत्पर रहते हैं।

और अपनी उपस्थिति तथा ज्ञान द्वारा लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं।

उनकी अनूठी जीवन-यात्रा, आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति हेतु भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

उनके जीवन से प्रेरणा मिलती है कि यदि मनुष्य ठान ले और गुरु के बताए मार्ग पर सच्चाई, श्रद्धा और विश्वास से चले तो

इसी जन्म में मुक्ति का अहसास किया जा सकता है।

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