भगवान गणेश की पूजा भारत के अलावा विदेशों में भी होती है। तिब्बत, चीन बर्मा, जापान, जावा, अफगानिस्तान, ईरान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, थाईलैंड, लाओस तथा बाली इत्यादि तमाम देशों में भी विभिन्न रूपों में पूजे जाते हैं। यही नहीं, इन देशों में गणेशजी की प्रतिमाएं भी चप्पे-चप्पे पर देखने को मिल जाएंगी। श्रीगणेश चतुर्थी : गणेश पूजा विदेशों में (हिन्दी में)
गणेशजी के विभिन्न रूप विभिन्न देशों में (हिन्दी में)
किसी भी शुभ कार्य से पूर्व गणपति का पूजन भारतीय परम्परा की विशिष्टता है। गणपति को विघ्नेश, एकदन्त, गणपति, गजानन, गणनायक, गणाधिपति, गणध्यक्ष तथा लम्बोदर इत्यादि अनेकानेक नामों से पूजा जाता है। लोक चेतना में गणेशजी का स्वरूप समाया हुआ है। प्रत्येक मांगलिक कार्य तथा विधि-विधान उन्हीं के पावन स्मरण, आह्वान तथा पूजा-अर्चना से शुरू होता है।
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विभिन्न देशों में गणेशजी के स्वरूप
- ऋद्धि-सिद्धि के देव गणेशजी न केवल भारत में पूजे जाते हैं।
- अपितु तिब्बत, चीन बर्मा, जापन, जावा तथा बाली इत्यादि तमाम विदेशों में भी विभिन्न रूपों में पूजे जाते हैं।
- कंबोडिया, वियतनाम, चाइना, मंगोलिया, जापान, इंडोनेशिया, ब्रुनेई, बुल्गारिया, मेक्सिको और अन्य लेटिन अमेरिकी देशों में भी श्रीगणेश की मूर्तियां मिल चुकी हैं।
- अलग-अलग देशों में गणेश जी की पूजा अलग-अलग नामों से की जाती है।
- इन्हें जापान में कांगितेन और थाईलैंड में फिकानेत कहा जाता है।
- वहीं, श्रीलंका में पिल्लयार कहा जाता है।
- सफलता समृद्धि की सहचरी है, इसी कारण बिना किसी व्यवधान के कार्य संपन्न कराने हेतु गणेशजी पूजे जाते हैं।
- लाभ व लक्ष्य के स्वामी श्री गणेशजी सर्व पूजनीय हैं।
- भारतीय पुराणों में, गणेश जी की अनेकों कथाएं समाहित हैं।
- श्रीगणेश-पुराण की महिमा सीमाओं की संकीर्णता से परे है।
- पश्चिमी देशों की प्राचीन संस्कृतियों में भी गणेश की अवधारणा विद्यमान है।
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रोमन देवता जेनस
- पश्चिम में रोमन देवता `जेनस’ को गणपति के समकक्ष माना गया है।
- ऐसा माना जाता है कि जब भी इतालवी व रोमन पूजा अर्चना करते थे तो वे अपने इष्ट `जेनस’ का नाम लेते थे।
- 18 वीं शताब्दी के संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान हुए हैं विलियम जोन्स।
- इन्होंने जेनस व गणपति की पारस्परिक तुलना प्रस्तुत की थी।
- बताया था कि गणेश में जो विशेषताएं पाई गयी हैं वे सभी जेनस में भी हैं।
- रोमन व संस्कृत शब्दों के उच्चारण में भी इतनी समानता है कि दोनों देवों में अन्तर नहीं किया जा सकता।
- भारत से बाहर विदेशों में बसने वाले भारतीयों ने भारतीय संस्कृति की जड़ों को काफी गहराई तक फैलाने का प्रयास किया।
- और इन पर भारतीय देवताओं की पूजा उपासना का स्पष्ट प्रभाव था जो आज भी है।
- विदेशों में प्रकाशित पुस्तक `गणेश-ए-मोनोग्राफ ऑफ द एलीफेन्ट फेल्ड गॉड’ में कुछ तथ्य उजागर किये गये हैं।
- उससे इस बात का स्पष्ट प्रमाण मिलता है कि विश्व के कई देशों में गणेश प्रतिमाएं बहुत पहले से पहुंच चुकी हैं।
- विदेशियों में भी गणेश के प्रति श्रद्धा और अटूट विश्वास रहा है।
- विदेशों में पाई जाने वाली गणेशजी की प्रतिमाओं में इनके विभिन्न स्वरूप अलग-अलग देखे गये हैं।
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जावा में गणेश
- जावा में गणेश की मूर्तियों में वे पालथी मार कर बैठे दिखाये गये हैं। दोनों पैर जमीन पर टिके हुए हैं व उनके तलुए आपस में मिले हुए हैं।
- भारत में गणेश जी की मूर्तियों में उनकी सूंड प्रायः बीच में दाहिनी या बाईं और और मुड़ी हुई है
- किन्तु विदेशों में वह सीधी और सिरे से मुड़ी हुई है।
जापान और चीन में गणेश
- जापान और चीन में गणेश को `कांतिगेन’ नाम से पुकारा जाता है।
- यहां पर बनी गणेशजी की मूर्तियों मे दो या चार हाथ दिखाये गये हैं।
- सन् 804 में जापान का कोबोदाइशि धर्म की खोज करने हेतु चीन गया था।
- उसे वहां वज्रबोधि और अमोधवज्र नामक भारतीय आचार्य विद्वानों द्वारा लिखित मूल ग्रन्थों का चीनी अनुवाद करने का मौका मिला।
- तब चीन की मंत्र विद्या प्रणाली में गणेश जी की महिमा को भी वर्णित किया गया।
- दरअसल, सन् 720 में चीन के कुआंग-फूं मंदिर में भारतीय मूल के एक ब्राह्मण को पुजारी नियुक्त किया गया था।
- इस पुजारी ने वहां पहले एक चीनी धर्म परायण व्यक्ति हुई-कुओ को दीक्षा दी।
- फिर उसने जापान से आए कोषोदाइशि को दीक्षा दी जिसने वहां के विभिन्न मठों से संस्कृत की पांडुलिपियाँ एकत्र कीं।
- सन् 806 में जब वह जापान लौटा तो वज्र धातु के महत्वपूर्ण सूत्रों के साथ गणेश जी के चित्र भी साथ ले गया।
- जिसे सुख-समृद्धि पर परब्रह्म की शक्ति के रूप मे माना गया।
- जापान के कोयसान सन्तसुजी विहार में गणेश की चार चित्रावलियां रखी गयी हैं, जिनमें युग्म गणेश, षड़भुज गणेश, चतुर्भुज गणेश तथा सुवर्ण गणेश प्रमुख हैं।
- चीन के तुन-हू-आग में एक पहाड़ी पर ये मूर्तियाँ सन् 644 में स्थापित की गयी थीं।
- गणेश की मूर्ति के नीचे चीनी भाषा में लिखा हुआ है कि ये हाथियों के अमानुष राजा है।
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तिब्बत में गणेश पूजन
- गणेश पूजन की परम्परा तिब्बत के मठों में काफी पुराने समय से चली आ रही है।
- यहां गणपति अधीक्षक के रूप में पूजे जाते हैं।
- नौवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में ही तिब्बत के अनेक स्थानों में गणेश पूजा का प्रचलन शुरू हो गया था।
- भारतीय बौद्ध भिक्षुओं ने भी ग्यारहवीं सदी में तिब्बतियन बौद्ध धर्म में गणेश जी को प्रचारित किया।
- इन्हें ही तिब्बत में गणेश पंथ को शुरू करने वाला माना जाता है।
- गयाधरा कश्मीर से थे जिन्होंने तिब्बत में गणेश पथ को प्रचारित किया।
इंडोनेशिया में गणेश पूजा
- माना जाता है कि इंडोनेशियन द्वीप पर भारतीय धर्म का प्रभाव पहली शताब्दी से है।
- यहां के भारतीयों के लिए भगवान गणेश की मूर्तियां ख़ासतौर पर भारत से मंगाई जाती हैं। इस देश के 20 हज़ार के नोट पर भी गणेश जी की तस्वीर है।
- श्री गणेश को यहाँ ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
कंबोडिया में गणेश
- अंगकोरवाट (कम्बोडिया की प्राचीन राजधानी) में जो मूर्तियों का ख़जाना मिला है, उसमें भी गणेश के विभिन्न रंग-रूप पाये गये हैं।
- वैसे यहां कोसे की मूर्तियां का प्रचलन है।
- स्याम देश में बसे भारतीयों ने वैदिक धर्म को कई सौ वर्ष पूर्व ही प्रचारित कर दिया था।
- इसी कारणवश यहां पनपी धार्मिक आस्था के फलस्वरूप यहां निर्मित की गयी गणेश की मूर्तियां `आयूथियन’ शैली में दिखाई देती हैं।
- स्याम देश में वैदिक धर्म `राजधर्म’ के रूप में प्रसिद्ध था।
- जिसके कारण यहां आज भी धार्मिक अनुष्ठान वैदिक रीति से ही सम्पन्न होते हैं।
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श्रीलंका में गणेश पूजन
- तमिल बहुल क्षेत्रों में काले पत्थर से निर्मित भगवान पिल्लयार (गणेश) की पूजा की जाती है।
- श्रीलंका में गणेश के 14 प्राचीन मंदिर स्थित हैं।
- कोलंबो के पास केलान्या गंगा नदी के तट पर स्थित केलान्या में कई प्रसिद्ध बौद्ध मंदिरों में भगवान गणेश की मूर्तियां स्थापित हैं।
श्रीगणेश अमरीका में
- अमरीका में तो लंबोदर गणेश की प्रतिमाएं बनायी जाती हैं।
- वैसे अमरीका की खोज करने वाले कोलम्बस से पूर्व ही वहां सूर्य, चन्द्र तथा गणेश की मूर्तियां पहुंच गयी थीं।
- विश्व के कई देश ऐसे भी हैं जहां खुदाई के दौरान भारतीय देवताओं की मूर्तियां मिली हैं।
- यहाँ विशेष बात यह है कि इनमें गणेश जी हर जगह विद्यमान थे।
- ये मूर्तियां हजारों वर्ष पूर्व की होने का अनुमान लगाया गया है।
थाईलैंड में गणेश पूजन
- यहाँ गणपति ‘फ्ररा फिकानेत’ के रूप में प्रचलित हैं।
- गणेशजी को यहाँ सभी बाधाओं को हरने वाले और सफलता के देवता माना जाता है।
- नए व्यवसाय और शादी के मौके पर उनकी पूजा मुख्य रूप से की जाती है।
- गणेश चतुर्थी के साथ ही वहां गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
गणेशजी नेपाल में
- नेपाल में गणेश मंदिर की स्थापना सबसे पहले सम्राट अशोक की पुत्री चारू मित्रा ने की थी।
- वहां के लोग भगवान गणेश को सिद्धिदाता और संकटमोचन के रूप में मानते हैं।
- संकट से बचने के लिए वहां गणेश जी की पूजा की जाती है।
- कुल मिलाकर विध्नहरण विनायक जहां समूचे विश्व में पूजे जा रहे हैं,
- वहीं भारत में भी विभिन्न प्रान्तों में 10वीं शताब्दी की प्राचीन मूर्तियों में भी गणेश जी के अनेकानेक रूप मिले हैं।
- जिन्हें प्रदेशों की स्थानीय बोली में विभिन्न नामों से पुकारा जाता है।
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प्रस्तुत लेख मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है। assanhain इसकी तथ्यात्मक पुष्टि नहीं करता है।
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