Saturday, December 6, 2025
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‘शहंशाह’ अमित शाह (Amit Shah)

 

'शहंशाह' अमित शाह (Amit Shah)
‘शहंशाह’ अमित शाह (Amit Shah)

देश को सामाजिक तौर पर दो ध्रुवों में बांटने वाली राजनीति के घोड़े पर सवार गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई में भाजपा न केवल सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, बल्कि कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा कर देने वाली पार्टी भी रही.

बेमिसाल चुनावी कामयाबी/Unparalled electoral success
साल 2014 में मोदी लहर के चलते केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनी तो उसी साल राजनाथ सिंह के स्थान पर अमित शाह ने भाजपा अध्यक्ष पद संभाला. साल 2014 में एनडीए की सरकार देश के 8 राज्यों में थी, लेकिन 2018 तक 21 राज्यों में. जी हां, आप शाह के असर को इस आंकड़े से साफ समझ सकते हैं. कश्मीर में क्षेत्रीय पार्टी के साथ हाथ मिलाकर सरकार बनाना रहा हो या एक एक कर उत्तर पूर्वी राज्यों में, शाह के नेतृत्व में भाजपा ने एक से एक झंडे गाड़े. मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र जैसे राज्य ज़रूर भाजपा के हाथ से फिसले, लेकिन मप्र में दोबारा सरकार बनाने के भरसक प्रयास भी  हुए. यही नहीं, 2019 का आम चुनाव भी शाह की रणनीति और योजनाओं के तहत ही लड़कर भाजपा मोदी लहर 2.0 को कामयाब बना सकी

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दुनिया की सबसे बड़ी सियासी पार्टी/ The world’s biggest political party
भाजपा अपने 18 करोड़ से ज़्यादा कोर मेंबरों की संख्या के साथ दावा करती है कि वो दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है ‘हर बूथ मज़बूत’ का मंत्र देने वाली   शाह को परिभाषित करती रही. भाजपा के देश में सबसे प्रभावी पार्टी बनने के पीछे सोशल मीडिया मैनेजमेंट का बड़ा रोल रहा है और यह भी शाह की स्ट्रैटजी का ​ही हिस्सा रहा
पार्टी का रवैया बदला/The party’s attitude changed
भाजपा के भीतर भी  शाह की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने पार्टी के कार्यकर्ताओं के काम करने के तौर तरीके पूरी तरह बदल डाले. ‘आक्रामकता’ के साथ दिए गए ‘टारगेट’ को पूरा करने की भावना शाह ने विकसित की. अनिर्बान गांगुली ने जो किताब शाह पर लिखी, उसमें बताया कि 2014 से 2019 के बीच शाह ने पार्टी के काम से 3,38,000 और चुनावी अभियानों के लिए 4,52,000 किलोमीटर की यात्राएं की. पूरे जोश और लगन से काम करने का अंदाज़ सिखाने के साथ ही शाह ने सात लाख पार्टी कार्यकर्ताओं की हर साल ट्रेनिंग करने का प्रोजेक्ट भी चलाया. गांव गांव और बूथ बूथ तक भाजपा को मज़बूती देने में शाह की योजनाओं को याद किया जाता है.
हर ज़िले में पार्टी दफ्तर/ There is a party office in every district
यह शाह का आइडिया था, जब 2015 में भाजपा की एक बैठक हुई थी. और गांगुली की किताब की मानें तो शाह ने जब भाजपा अध्यक्ष पद छोड़ा तो देश के 694 ज़िलों में से 635 में भाजपा का दफ्तर था
संसद में भी आक्रामकता/ Aggression in parliament too
शाह के स्वभाव में ही आक्रामक होना है. पार्टी और चुनाव के स्तर पर ही नहीं, वह संसद में भी इसी अंदाज़ में दिखाई देते रहे. आर्टिकल 370 खत्म करने का मुद्दा रहा या ट्रिपल तलाक का, सीएए से जुड़ी बहस रही या किसी अन्य कानून से जुड़ी चर्चा, संसद में शाह अक्सर आक्रामक दिखाई दिए. भाजपा के भीतर भी माना जाता है कि संसद में ‘विवादास्पद विधेयकों’ पर समर्थन जुटाने में भी शाह की यही ‘अग्रेसिव अप्रोच’ कारगर होती रही.

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शहंशाहसे पहले के शाह/ Shah before “Shahanshah”
आरएसएस के साथ स्टूडेंट जीवन से जुड़े शाह ने 1986 में भाजपा की सदस्यता ली थी. 1989 से छोटे से बड़े स्तर पर शाह ने करीब दो दर्जन चुनाव लड़े.  वो कभी नहीं हारे. 1991 में आडवाणी के लोकसभा कैंपेन में काम करने वाले शाह ने यतीन ओझा के कैंपेन में भी काम किया था. जब गुजरात में मोदी का युग शुरू हुआ था, तब 1997 में शाह की पोज़ीशन बड़ी नहीं थी, लेकिन मोदी ने ही उन्हें चुनाव लड़वाया और वहां से शाह की सफलता की यात्रा शुरू हुई तो अब तक जारी है।

दिलचस्प बात यह है कि मोदी को शतरंज का खेल पसंद है और शाह गुजरात की शतरंज एसोसिएशन के प्रमुख रह चुके है. भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले के साथ मिलकर एक बेहद आक्रामक अंदाज़ वाली पार्टी और राजनीति के प्रमुख चेहरे बन चुके हैं अमित शाह होने का अर्थ साफ करते हैं. अटल बिहारी वाजपेयी  और लालकृष्ण आडवाणी के युग को देश की राजनीति में भाजपा के उदय काल के तौर पर माना जाता है, तो नरेंद्र मोदी  और अमित शाह के समय को भाजपा के अभूतपूर्व विस्तार (BJP Expansion) के युग के तौर पर याद किया जाएगा. इस जोड़ी ने देश की मुख्यधारा की राजनीति (Mainstream Politics of India) का चेहरा बदलने का अनोखा इतिहास रचा।

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सारिका असाटी

 

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