Thursday, September 19, 2024
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विष्णुजी ने खोली नारदजी की आँखें

नारद के श्राप से विष्णु जी ने लिया राम का अवतार

पुराणों में एक कहानी दर्ज है जिसके अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने देवर्षि नारद का अभिमान दूर किया था। उन्होंने विश्वमोहिनी रूप धर नारद मुनि की आँखें खोली थीं। लेकिन तब तक भगवान को श्राप दे चुके थे।

  • एक बार देवर्षि नारद भ्रमण करते हुए हिमालय पहुँचे।
  • वहाँ उन्होंने एक साफ-सुथरी अच्छी-सी गुफा देखी।
  • देखा, पड़ोस में ही कल-कल करती गंगाजी बह रही हैं।
  • उनका मन हुआ कि यहाँ कुछ समय रुककर तप करना चाहिए।
  • प्रसन्नचित्त नारदजी वहीं जम गये।
  • उनकी तपस्या देखकर देवराज इन्द्र घबराये।
  • कहीं ऐसा न हो कि देवर्षि स्वर्ग के सिंहासन को हथिया लें।
  • उन्होंने जाकर कामदेव से प्रार्थना की-
  •  “प्रिय सखा। जाकर किसी प्रकार देवर्षि नारद की तपस्या भंग कर दो।”

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  • कामदेव अपने साथ रम्भा आदि अप्सराओं को लेकर नारदजी के निकट जा पहुँचा।
  • कोटि उपाय किये, पर नारदजी की तपस्या टस से मस न हुई।
  • हारकर वह नारदजी के चरणों में जा गिरा।
  • अपनी करतूत पर क्षमा माँगी।
  • देवर्षि नारद ने उसे क्षमा कर दिया।
  • उसने जाकर इन्द्र से देवर्षि की बड़ी सराहना की।
  • इन्द्र को लगा कि नाहक वे घबरा गए थे।
  • अब इधर नारद जी को घमण्ड हो गया कि उन्होंने कामदेव को जीत लिया।
  • उन्होंने शिवजी के पास जाकर अपनी जय-गाथा सुनायी।
  • शिवजी नारद की जय गाथा सुनकर प्रसन्न हुए।
  • उन्होंने नारद को सलाह दी कि जिस तरह उन्होंने अपनी जय-गाथा उन्हें सुनाई, कभी विष्णुजी को न सुनाना।
  • देवर्षि नारद ने उनकी नेक सलाह अनसुनी कर दी।
  • वे ब्रह्मलोक गये और वहाँ ब्रह्माजी को अपनी जय-गाथा सुनायी।
  • ब्रह्माजी मन-ही-मन मुस्कराये।
  • उन्होंने नारदजी की कथा एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल दी।
  • नारद अब बैकुण्ठ जा पहुँचे और विष्णुजी को भी अपनी जय गाथा सुनायी।
  • विष्णुजी ने सोचा- भक्त को अभिमान हो गया है। इसका इलाज हो जाना चहिए।

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  • नारदजी फिर विष्णुजी से विदा होकर आगे चले।
  • विष्णुजी ने एक माया रची।
  • रास्ते में बैकुण्ठ से भी सुन्दर एक नगर बन गया।
  • उसका राजा शीलनिधि था।
  • शीलनिधि की एक कन्या श्री विश्वमोहनी।
  • वह अत्यन्त रूपवती थी। उसका स्वयंवर हो रहा था।
  • राजा ने नारदजी का स्वागत किया।
  • उस कन्या ने चरण छुए। अब क्या था।

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  • नारदजी ने सोचा कि किसी तरह यह कन्या उन्हीं के गले में जयमाला डाले तो कितना अच्छा हो। और वे वहाँ से चलते बने।
  • उन्होंने विष्णु भगवान् का स्मरण किया तो भगवान् प्रकट हो गए।
  • नारदजी ने प्रार्थना की कि हे भगवन्। मुझे अपना हरि रूप दे दो ताकि यह राजकुमारी मेरा ही वरण करे।
  • “मैं तुम्हें हरि रूप अवश्य दूंगा। ताकि तुम्हारा कल्याण हो।”
  • भगवान ने कहा, हरि का अर्थ बंदर भी होता है, इतना कहते ही नारद का मुंह बंदर जैसा हो गया।
  • वे स्वयंवर में उचक-उचककर बार-बार राजकुमारी के सामने जाने लगे।े
  • परन्तु बंदर को कोई वरमाला क्यों पहनायेगा!
  • वहाँ शिवजी के दो गण थे, जो नारदजी को देखकर खूब हँस रहे थे।
  • इतने में भगवान् विष्णु स्वयंवर में उपस्थित हो गये।

  • विश्वमोहिनी ने उनके गले में जयमाला पहना दी।
  • अब तो नारदजी क्रोध में आगबबूला हो गये।
  • पोखर के जल में अपना मुंह देखा तो उनके तन-बदन में आग लग गयी।
  • वे वहाँ से चल दिये तो देखते क्या हैं कि दूसरी ओर से मुस्कराते हुए भगवान् विष्णु चले आ रहे हैं।
  • उनके साथ लक्ष्मी और विश्वमोहिनी दोनों हैं।
  • क्रोधित देवर्षि नारद ने उन्हे शाप दिया।

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  •  “तुमने मुझे वानर रूप प्रदान किया। इन्हीं वानरों से तुम्हें सहायता लेनी पड़ेगी।
  • जैसे मैं नारी के वियोग में पागल बना घूमता हूँ, वैसे ही तुम नारी-वियोग में रोओगे। तड़पोगे ।”
  • तभी वे दोनों शिव के गण भी वहाँ आ निकले।
  • नारदजी ने उन्हें राक्षस हो जाने का शाप दे डाला, पर यह क्या..
  • सब कुछ भगवान् की माया से बना था और नारदजी ने देखा कि सब कुछ देखते-देखते लुप्त हो गया।
  • विश्वमोहिनी आदि सभी विलीन हो गये।
  • अब तो नारदजी बहुत पछताये और भगवान् विष्णु से बारम्बार माफी माँगी।
  • पौराणिक कथाएँ हैं कि कालांतर में शिव के दोनों गण रावण और कुम्भकर्ण हुए।
  • राम के अवतार के रूप में विष्णु को पत्नी का वियोग सहना पड़ा।
  • वानरों की सहायता से ही राम सीताजी को फिर पाने में सफल हुए।
  • यह सब कुछ देवर्षि नारद के शाप का फल था।

 

 

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