
रेगिस्तान की कठोर परिस्थितियों में जीवन की कला (The art of survival in the desert)
मध्य पूर्व के शुष्क और गर्म वातावरण में जब अधिकतर वनस्पतियाँ मुरझा जाती हैं, Tamarix aphylla—जिसे Athel Tamarisk भी कहा जाता है—जीवित रहने के लिए एक विलक्षण रासायनिक रणनीति का सहारा लेता है।
यह पौधा न केवल दूभर परिस्थितियों में अपनी जड़ें टिकाए रखता है, बल्कि अपनी पत्तियों से नमकीन स्राव छोड़कर वायुमंडल से पानी प्राप्त करने का आश्चर्यजनक तरीका अपनाता है।
कठिन जलवायु में रासायनिक जुगाड़ (Chemical adaptation in arid climates)
Proceedings of the National Academy of Sciences में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि यह रेगिस्तानी पेड़ अपने शरीर में लवण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए ग्रंथियों से नमकीन बूंदें उत्सर्जित करता है।
जब दिन में सूरज की गर्मी बढ़ती है, तो इन चमकदार बूंदों का पानी वाष्पित हो जाता है और पत्तियों पर सफेद लवणीय कणों की परत रह जाती है। तेज हवा चलने पर यह परत उड़ जाती है, जिससे पौधा अपने ऊपर से अतिरिक्त लवण को हटा लेता है।
यह पूरी प्रक्रिया पौधे को दोहरा लाभ देती है — एक ओर यह मिट्टी से सोखे गए अतिरिक्त लवण को निकाल देता है, वहीं दूसरी ओर, इन नमक कणों का प्रयोग रात के समय हवा से नमी सोखने में करता है।
नमी संग्रह का अनूठा तरीका (A unique method of moisture harvesting)
अबू धाबी स्थित New York University की वैज्ञानिक मरियेह अल-हंदावी ने इस प्रक्रिया को विस्तार से समझा। उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात के गर्म और आर्द्र रेगिस्तानों में पाया कि दिन में जमा हुए ये नमकीन कण रात के समय वायु से ओस सोख लेते हैं।
टीम के प्रयोगों ने दिखाया कि जो शाखाएँ इन नमक कणों से ढंकी थीं, वे अन्य शाखाओं की तुलना में दो गुना अधिक पानी एकत्र करती हैं।
यह प्रभाव इतना शक्तिशाली था कि 50% से कम आर्द्रता पर भी ओस का निर्माण संभव हुआ, जो सामान्य परिस्थितियों में लगभग असंभव है।
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लवणों का वैज्ञानिक रहस्य (The science behind the salts)
Athel Tamarisk की विशिष्टता उसके लवण मिश्रण में है। अध्ययन के अनुसार इस मिश्रण में प्रमुख रूप से सोडियम क्लोराइड, जिप्सम (कैल्शियम सल्फेट) और लिथियम सल्फेट शामिल हैं।
लिथियम सल्फेट की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि यह अन्य लवणों की तुलना में काफी कम आर्द्रता पर भी वायुमंडलीय नमी को सोख सकता है।
इसी कारण यह पौधा रात में नमी संग्रहीत कर दिन में अपनी जैविक क्रियाओं के लिए पानी का पुनः उपयोग कर पाता है। विज्ञान की दृष्टि से यह एक “प्राकृतिक डीह्यूमिडिफायर” जैसा कार्य करता है, जो रेगिस्तान में जीवन बनाए रखने के लिए अत्यंत उपयोगी साबित होता है।
अन्य पौधों के लिए संकेत (Clues for other desert plants)
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह खोज केवल Tamarix aphylla तक सीमित नहीं है। अन्य रेगिस्तानी पौधे भी संभवतः इसी तरह की नमी-संग्रह रणनीतियाँ विकसित कर चुके हैं।
हर पौधा अपनी संरचना और पर्यावरण के अनुरूप रासायनिक जुगाड़ अपनाता है ताकि वह न केवल जीवित रह सके, बल्कि बदलते जलवायु पैटर्न का सामना भी कर सके।
इस प्रकार के अध्ययन वैश्विक जल संकट से निपटने के लिए नए दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। यदि ऐसी रणनीतियों को तकनीकी रूप से अपनाया जाए, तो भविष्य में रेगिस्तानी क्षेत्रों में भी जल-संग्रह और कृषि के बेहतर समाधान विकसित किए जा सकते हैं।
भविष्य की संभावनाएँ (Future possibilities)
इस शोध से यह समझ मिलती है कि प्रकृति में जीवधारियों ने किस तरह कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए अद्भुत रणनीतियाँ विकसित की हैं।
यदि वैज्ञानिक इन जैविक प्रक्रियाओं को तकनीक के रूप में इस्तेमाल करें, तो यह सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में जल संरक्षण का क्रांतिकारी तरीका बन सकता है।
रेगिस्तानी पौधों की यह जैव-रासायनिक बुद्धिमत्ता मानव सभ्यता को टिकाऊ जल तकनीकों की दिशा में प्रेरित कर सकती है। यह अध्ययन न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पृथ्वी के सूखते संसाधनों के बीच एक नई उम्मीद भी जगाता है।
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