
प्रस्तावना | Introduction
रामायण के कथा में भगवान राम की वीरता, धर्म, और कर्तव्य का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। उनके द्वारा असुरों के आतंक से मुक्ति दिलाने की घटनाएँ न केवल रोमांचक हैं, बल्कि जीवन के अनेक महत्वपूर्ण पाठ भी देती हैं। एक ऐसा ही प्रमुख प्रसंग महर्षि विश्वामित्रा के साथ जुड़ा है, जब उन्होंने भगवान राम और लक्ष्मण को असुरों के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए भेजा। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि किस प्रकार राम और लक्ष्मण ने असुरों मारीच और सुबाहु को समाप्त किया, और ऋषि-मुनियों को उनके आतंक से मुक्त किया।
राजा दशरथ और महर्षि विश्वामित्रा की मुलाकात | The Meeting Between King Dasharath and Maharishi Vishwamitra
एक दिन राजा दशरथ अपने महल में मुनि वशिष्ठ और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ बैठे थे और अपने पुत्रों के विवाह के विषय में विचार कर रहे थे। तभी द्वारपाल ने राजा दशरथ को सूचित किया कि महर्षि विश्वामित्रा महल में आए हैं। महर्षि का स्वागत करने के लिए राजा दशरथ अपने पुरोहित मुनि वशिष्ठ के साथ महल के द्वार पर पहुंचे। उन्होंने महर्षि के चरणों में श्रद्धा से प्रणाम किया और उनका आदर-सत्कार किया।
महर्षि विश्वामित्रा ने राजा से कहा, “हे राजन, मुझे कुछ कठिनाइयाँ आ रही हैं, और मुझे आपके बड़े पुत्र राम और लक्ष्मण की आवश्यकता है। यह असुर मारीच और सुबाहु बार-बार मेरे यज्ञ में विघ्न डालते हैं। इन असुरों को केवल राम और लक्ष्मण ही मार सकते हैं।”
राजा दशरथ ने पहले तो सोचने में समय लिया, क्योंकि वे अपने पुत्र राम को इतने समय के लिए खोना नहीं चाहते थे। लेकिन मुनि वशिष्ठ ने उन्हें भगवान राम के अवतार रूप के बारे में बताया, जिससे राजा का मोह दूर हो गया। उन्होंने राम और लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्रा के साथ भेजने का निर्णय लिया।
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राम और लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्रा के साथ भेजना | Ram and Lakshman Sent with Maharishi Vishwamitra
राजा दशरथ के आदेश के बाद, भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्रा के साथ यात्रा पर निकल पड़े। मार्ग में महर्षि ने राम को बला और अतिबला नामक दो विशेष दिव्य वस्तुएं दीं, जो राम को न तो भूख और प्यास का अहसास कराती थीं, न ही कोई थकान होती थी।
महर्षि विश्वामित्रा के मार्गदर्शन में, राम और लक्ष्मण ने नगर को पार किया और गंगा पार कर ताड़का वन पहुँचे। यहाँ पर महर्षि ने राम को ताड़का नामक राक्षसी के बारे में बताया, जो इस क्षेत्र में निवास करती थी और लोगों को बहुत परेशान करती थी।
ताड़का का वध और राम का पराक्रम | The Killing of Tadaka and Ram’s Valor
महर्षि विश्वामित्रा ने राम से कहा, “राम, यह ताड़का राक्षसी यहां के निवासियों को कष्ट देती है। तुम इसे मार डालो ताकि यहाँ शांति स्थापित हो सके।”
राम ने अपने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर घोर टंकार किया। यह आवाज सुनकर ताड़का क्रोध में आकर राम की ओर दौड़ पड़ी। राम ने एक बाण छोड़ा, जो ताड़का को लगा और वह चिल्लाती हुई यमलोक पहुंच गई। ताड़का को शाप के कारण पिशाचता प्राप्त हुई थी, लेकिन राम के द्वारा उसे मुक्ति मिली और वह स्वर्गलोक चली गई।
महर्षि विश्वामित्रा ने राम की बहादुरी देखकर उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें कई मंत्र और दिव्य अस्त्र प्रदान किए।
मारीच और सुबाहु का वध | Killing of Maricha and Subahu
राम और लक्ष्मण, महर्षि विश्वामित्रा के साथ सिद्धाश्रम पहुंचे, जहाँ मुनिवर यज्ञ की तैयारी में व्यस्त थे। तभी मारीच और सुबाहु, दो असुर, यज्ञ में विघ्न डालने के लिए आ पहुंचे। वे रक्त और अस्थियों की बारिश करते हुए यज्ञ में विघ्न डालने लगे।
राम ने एक ही बाण से मारीच को आकाश में उछालते हुए उसे सौ योजन दूर समुद्र में फेंक दिया। इसके बाद, राम ने एक और अग्निबाण छोड़ा, जिससे सुबाहु जलकर भस्म हो गया। लक्ष्मण ने भी अन्य निशाचरों को समाप्त किया और सभी को काल के घाट उतार दिया।
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ऋषि-मुनियों को असुरों से मुक्ति | Sages Freed from the Terror of Demons
राम और लक्ष्मण ने ताड़का वन और उसके आस-पास के क्षेत्र को राक्षसों से मुक्त कर दिया, जिससे वहां के ऋषि-मुनियों को शांति और सुरक्षा प्राप्त हुई। महर्षि विश्वामित्रा ने राम और लक्ष्मण की बहादुरी को सराहा और उन्हें आशीर्वाद दिया।
इस प्रकार, भगवान राम और लक्ष्मण ने अपनी शक्ति और कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हुए असुरों का वध किया और ऋषि-मुनियों को उनके आतंक से मुक्त किया। यह घटना भगवान राम के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में से एक थी, जिसमें उन्होंने अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करते हुए असुरों से संसार को मुक्ति दिलाई।
निष्कर्ष | Conclusion
राम और लक्ष्मण का यह अद्वितीय कार्य न केवल उनके साहस और पराक्रम को दर्शाता है, बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि वे भगवान के अवतार थे। महर्षि विश्वामित्रा के साथ उनकी यात्रा ने असुरों के आतंक से ऋषि-मुनियों को मुक्ति दिलाई और एक बार फिर यह साबित किया कि भगवान राम सदैव धर्म की रक्षा के लिए अवतरित होते हैं।
रामायण की यह कथा हमें यह सिखाती है कि धर्म, कर्तव्य और निष्ठा के मार्ग पर चलकर कोई भी असंभव कार्य संभव हो सकता है। भगवान राम और लक्ष्मण का यह कृत्य आज भी हमें प्रेरित करता है और हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कर्तव्यों को निभाने में कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।
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