Friday, September 12, 2025
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रामू और बैलों की कहानी

 

 

रामू ने अपने बैलों पर क्रूरता की, लेकिन बाद में उसे यह बात समझ में आ गई कि हमें किसी भी बेजुबान जानवर के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार नहीं करना चाहिए। आइए जानते हैं रामू और बैलों की कहानी।

  • रामू अपनी बैलगाड़ी बाज़ार की ओर ले जा रहा था।
  • ऊपर आसमान में एक हवाई जहाज़ चक्कर काट रहा था, मानो धीरे-धीरे चलती इस बेचारी बैलगाड़ी का मज़ाक उड़ा रहा हो।
  • “ओह, तुम दोनों बड़े ही सुस्त हो!”
  • रामू ने बैलों से कहा, “देखो उस हवाई जहाज़ को कितना फुरतीला है!
  • न उसे घास चाहिए न चारा। मैं तुम्हारी कितनी देखभाल करता हूँ।
  • खिलाता हूँ, नहलाता हूँ। फिर भी तुम तेज़ नही चलते।
  • और वह दोनों बैलों को बेरहमी से ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर दौड़ाने लगा।
  • बेचारे बैल! दूसरे ही दिन दोनों बीमार पड़ गए।
  • गाँव के वैद्य ने देखा और कहा कि ये दोनों थके हुए हैं और एक हफ्ते तक काम
  • नहीं कर सकेंगे।
  • रामू फूट-फूटकर रोने लगा।

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  • उसकी सारी सब्ज़ियाँ सड़ जाएंगी अगर वह रोज़ का रोज़ उन्हें बेच नहीं पाएगा।
  • अपने परिवार के लिए वह पैसे कहाँ से लायेगा ?
  • वैद्यराज ने रामू से कहा कि खुद ही बैलगाड़ी खींचकर बाज़ार से जाये और अपना सामान बेच आये।
  • रामू के पास और कोई चारा में नहीं था।
  • उसने सब्ज़ियों की गठरियाँ बैलगाड़ी में रखी और धीरे- बैलगाड़ी को खींचने लगा।
  • वाकई में, गाड़ी बहुत भारी थी। सड़क तक भी खींच नहीं सका।
  • उसने अपने दोस्त किशन को आवाज़ दी। मदद के लिए पुकारा।
  • मगर किशन ने कहा कि वह बहुत व्यस्त है।
  • अब रामू ने एक नौकर तय किया।

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  • दोनों ने मिलकर बैलगाड़ी को खींच तो लिया, मगर एकदम धीरे-धीरे।
  • रामू पसीने और धूल से लथपथ हो गया और बुरी तरह खीज उठा।
  • ऊपर आसमान में हवाई जहाज़ मज़े से चक्कर काट रहा था।
  • अब रामू सोचने लगा “इस हवाई जहाज़ का क्या फायदा? न ही सड़क पर चल सकता है और न ही मेरा सामान बाज़ार पहुँचा सकता है।”
  • अचानक उसे अपने दोनों बैलों की याद आई। किस बेरहमी और बेइंसाफी से उसने अपने वफादार और हृष्ट-पुष्ट बैलों से भार उठवाया था।
  •  “भगवान ने मुझे मेरे किए की सज़ा दी है,” वह रो पड़ा ।
  • बस, किसी तरह वह बाज़ार पहुँचा और सब्ज़ियाँ बेच डाली।
  • उसने नौकर को पैसे दिये और अपनी झोपड़ी लौटा।

  • वह गौशाला में जाने से घबरा रहा था, पता नहीं उसके बैल जिन्दा भी थे या नहीं?
  • चुपचाप एक कोने में जा बैठा, तभी देखा, उसकी बेटी लीला कुछ घास लिए जा रही थी। “तीला, घास कहाँ ले जा रही हो?”
  • “बैलों के लिए ”  लीला हँसी “और कौन है घास खाने वाला ?”
  • रामू खुशी से उछल पड़ा – “लाओ, अपने हाथ से खिलाऊंगा दोनों को।”
  • वह भागते हुए गौशाला पहुँचा। दोनों बैल खड़े थे। आज पहली बार उसे लगा कि दोनों कितने बलवान हैं, कितने सुन्दर हैं।
  • उसने दोनों को पुचकारा, सहलाया, बड़े प्यार से खिलाया।
  • इतने में वैद्यराज भी गुड़ और दवाइयाँ लेकर आ गए।
  • रामू ने चिन्ता से पूछा – “दोनों ठीक हो जाएँगे ना?”
  • वैद्य ने दवाई की गोलियाँ और गुड़ बैलों को खिला दिया।
  • फिर मुड़कर उससे कहा “रामू, ये वफादार जानवर हमारे अच्छे दोस्त हैं। इनके बिना हम जी नहीं सकते।

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  • अगर तुम क्रूर बनकर इनके साथ बुरा सलूक करोगे, तो अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारोगे। ”
  • रामू का सिर शर्म से झुक गया। कुछ ही दिनों में बैल स्वस्थ होकर गाड़ी खींचने लायक हो गये।
  • अब जैसे ही हवाई जहाज़ दिखा, रामू खुशी से गाने लगा
  • “चाहो तो चिढ़ा लो, मगर अब मैं चिढ़ने वाला नहीं हूँ।
  • नई तुम एक उड़ती हुई तितली हो, मगर मेरी बैलगाड़ी है एक मेहनती चींटी।”
  • उस दिन से रामू ने अपनी बैलगाड़ी पर कभी ज्यादा बोझ नहीं लादा और न ही अपने बैलों से ज्यादा काम करवाया।
  • उन्हें अच्छी तरह खिलाने-पिलाने लगा और उन्होंने भी अपने मालिक की खूब सेवा की।

सीख – किसी भी बेजुबान जानवर पर क्रूरता नहीं करनी करनी चाहिए। उसे भी अपनी तरह समझ कर मानवता से पेश आना चाहिए। प्राणी मात्र के प्रति करूणा भाव रखना चाहिए।

 

 

 

 

 

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