Friday, September 12, 2025
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रक्षा बंधन का महत्व/Importance of Raksha Bandhan

रक्षा बंधन का महत्व/Importance of Raksha Bandhan
रक्षा बंधन का महत्व/Importance of Raksha Bandhan

रक्षा बंधन या राखी भाई-बहनों के बीच अटूट प्यार को दर्शाने के लिए मनाया जाता है। यह त्यौहार प्रतिवर्ष श्रावण मास (सावन माह) की पूर्णिमा तिथि (पूर्णिमा दिवस) पर पड़ता है। इस दिन बहनें पूजा-अर्चना करके भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधती हैं और उनके स्वास्थ्य व जीवन में सफल होने की कामना करती हैं।

वहीं भाई अपनी बहनों की रक्षा करने, उन्हें प्यार करने और बिपरीत स्थिति में उनकी मदद करने के लिए हमेशा तैयारी रहने की वचन देते हैं।

क्या है रक्षा बंधन का इतिहास/What is the history of Raksha Bandhan?

रक्षा बंधन हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस त्यौहार से जुड़ी किंवदंतियों में से एक महाकाव्य महाभारत से उत्पन्न होती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान कृष्ण की उंगली सुदर्शन चक्र से गलती से कट गई थी। यह देखकर द्रौपदी ने खून रोकने के लिए अपनी साड़ी से कपड़े का एक टुकड़ा फाड़कर चोट पर बांध दिया।

भगवान कृष्ण उनके हाव-भाव से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने हमेशा उनकी रक्षा करने का वादा किया। उन्होंने यह वादा तब पूरा किया जब द्रौपदी को हस्तिनापुर के शाही दरबार में सार्वजनिक अपमान का सामना करना पड़ा।

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रक्षा बंधन का महत्व/Importance of Raksha Bandhan

रक्षा बंधन का महत्व/Importance of Raksha Bandhan

रक्षा बंधन का त्यौहार भाई-बहन के प्यार व भाइयों द्वारा बहनों की रक्षा के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन बहनें, भाइयों को राखी बांधती हैं और उन्हें मिठाइयां खिलाती हैं। वहीं, भाई इस दिन बहनों की रक्षा का बचन देते हैं।रक्षा बंधन हम सभी भारतवासियों के लिए एक पावन पर्व है।

इस दिन हर बहन अपने भाई को राखी बांधती है, इस शुभ आशा के साथ कि उसका भाई जीवनभर उसकी और उसके पवित्रता की रक्षा करेगा। यह बंधन एक ऐसा पवित्र बंधन है, जिसमें एक बार बंध जाने से उस रिश्ते का सम्मान बहुत बढ़ जाता है, फिर उस रिश्ते में कभी विकारी दृष्टि-वृत्ति उत्पन्न नहीं हो सकती।

परंतु आज कलियुग के इस समय पर कुछ आत्माएं इस पवित्र बंधन का भी मान नहीं रखते। आज के समय पर हर मनुष्यात्मा के अंदर यह जो पांच विकार हैं, यह अपने चरम सीमा पर पहुंच चुके हैं, जो कभी-कभी तो भाई-बहन के पवित्र संबंध को भी कलंकित कर देते हैं। आज के समय पर पवित्र डोर राखी का महत्व व अर्थ दोनों ही बदल गए हैं। बस साल में एक बार आने वाली रस्म बनकर रह गई है यह ‘राखी उत्सव।’

कलियुग की इस भयावह स्थिति को देख स्वयं परमपिता परमात्मा अवतरित होकर हमें इस पवित्र बंधन-राखी का वास्तविक रहस्य बताते हैं। वो हमें अपना असली परिचय देते हैं कि वास्तव में हम शरीर नहीं, अपितु इस शरीर को चलाने वाली एक आत्मा हैं।

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आत्मा अजर-अमर-अविनाशी है जो ना मरती है, ना जलती है जबकि यह शरीर विनाशी है, जो कि एक समय आने पर समाप्त हो जाता है। इसके पश्चात् आत्मा अपने लिए दूसरा शरीर धारण करती है, जिसको हम पुनर्जन्म कहते हैं। इसका मतलब शरीर बदलता है परन्तु आत्मा वो ही रहती है!

हम सभी जीवात्माओं के एक ही परमपिता परमात्मा हैं। बस अंतर इतना है कि हम आत्माओं को अपना-अपना शरीर है किंतु परमात्मा का अपना शरीर नहीं है। उनको हम सब गॉड, ईश्वर, खुदा, रब या अल्लाह कहकर पुकारते हैं। शरीर के पिता सबके अलग-अलग हैं, इसलिए हम सब एक-दूसरे को अलग समझते हैं।

लेकिन हम सब आत्मा हैं और हम आत्माओं का एक ही पिता परमात्मा होने के कारण हमारा आपसी संबंध बहुत गहरा-भाईचारे का संबंध है। वो खुदा खुद इस समय आकर हम सबको बताते हैं कि तुम सब आत्माएं आपस में भाई-भाई हो! भले शरीर के संबंध से बहुत सारे संबंध हो सकते हैं, परन्तु आत्मा के नाते हमारा आपस में एक ही भाईचारे का संबंध है, क्योंकि हम सब आत्माएं एक पिता परमात्मा के बच्चे आत्माएं हैं।

कलियुग के इस अंतिम समय पर, परमात्मा स्वयं आकर हम सबको अपना असली परिचय दे, हम सबकी आपस में एक पवित्र संबंध की स्थापना कर रहे हैं।

वे हम सबको सच्ची राखी का अर्थ बता रहे हैं कि जिस दिन हम सब आत्माएं आपस में भाईचारे का संबंध जोड़ेंगे, एक-दूसरे को आत्मिक दृष्टि से देखेंगे, हम एक पिता के बच्चे हैं- इस संबंध की स्मृति से आपस में प्यार और सम्मान की लेन-देन करेंगे, उसी दिन हम सब वास्तव में सच्चा-सच्चा रक्षा बंधन उत्सव का पालन कर पाएंगे। 

रक्षा बंधन का अर्थ ही है, ‘एक-दूसरे की पवित्रता व सम्मान की रक्षा करना’, जो कि केवल तब होगा, जब हम सब आत्मिक संबंध जोड़ेंगे। राखी बंधन अर्थात् आपस में एक पवित्र प्रेम के बंधन में बंधना, जो हम सबके आत्मिक पिता ‘परमात्मा’ की बताई हुई शिक्षाओं पर चलकर ही संभव है!

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– सारिका असाटी

 

 

 

 

 

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