प्रेम क्या है? इसके लिए सबकी अपनी-अपनी परिभाषा है। अपने-अपने अनुभव और अपना-अपना प्रेम। सब एक-दूसरे से भिन्न, पर फिर भी अंतस की गहराई में एक ही अहसास… कि जिससे प्रेम है, वह खुश रहे।
जहाँ प्रेम होता है, वहाँ ईर्ष्या नहीं होती।
पर, पीड़ा और प्रेम का चोली-दामन का साथ होता है।
एक ऐसी पीड़ा, जो प्रेम में जीने का सुख देती है, सुकून देती है।
आँसू प्रेम का श्रृंगार है। आँखों की कोरों पर चांदी की झोल की तरह सजे मोती जब कंपकंपा कर कपोलों को भिगोते हैं,
तो वो क्षण, प्रेम का चरम होता है।
अमृता प्रीतम ने सही कहा कि `मुहब्बत तो हारने का नाम है।’
सही तो है, प्रेम या मुहब्बत तब अपनी खूबसूरती के शीर्ष पर पहुँच जाती है जब वह अधूरी होती है।
प्रेम का अधूरापन उसे अमर कर देता है।
वो तड़प, वो मीठी-सी कसक पूरी शख्सियत को संवेदनशील बना उसमें ज़िंदगी के रंग भर देती है।
अमृता प्रीतम ने लिखा है कि
`अगर कभी हम मिले तो उस वक़्त भी
मेरी ठहरी हुई इन आँखों में, मुस्कुरा रही होगी तुम्हारी मुहब्बत
तुम्हें जीतने के लिए
मैंने कोई बाजी नहीं खेली थी
अपने आप ही रख दी थी
सारी की सारी नज़मे तुम्हारे सामने
मुहब्बत तो हारने का नाम है।’