Thursday, September 19, 2024
Google search engine
Homeप्रेरणाचिंतनमुक्ति में सहायक है परमात्मा पर विश्वास/ Faith is helpful in salvation

मुक्ति में सहायक है परमात्मा पर विश्वास/ Faith is helpful in salvation

मोक्ष या मुक्ति प्राप्ति की पहली शर्त है परमात्मा पर विश्वास

मोक्ष या मुक्ति प्राप्ति की पहली शर्त है- परमात्मा पर विश्वास।
अटल विश्वास निराकार को भी आकार में प्रकट कर सकता है।

 प्रेरक कथा

कथावाचक द्वारा कृष्ण का वर्णन

एक कथावाचक भगवान श्रीकृष्ण के रूप का भव्य-वर्णन करते हुए कह रहे थे कि श्रीकृष्ण का शरीर सोने के आभूषणों से लदा रहता है।
उनके मस्तक पर हीरों से जड़ित सोने का मुकुट, हाथों में मणि जड़ित सोने के मोटे कंगन होते हैं।
पैरों में सोने की पायल, कमर में सोने की करधनी आदि होते हैं।
पंडाल में बैठा एक चोर बड़े ध्यान से कथा सुन रहा था।

चोर हुआ आकर्षित

अचानक चोर के मन में ख्याल आया कि इतना जोख़िम उठाकर मैं छोटी-मोटी चोरियां करता हूं।
यदि कृष्ण को ही चुरा लूँ तो एक ही दिन में मालामाल हो जाऊँगा।
वह ध्यान से यह सोचकर कथा सुनने लगा कि आखिर कृष्ण कहां रहता है? कथावाचक ने पूरी कथा में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं किया।
कथा समाप्त हुई तो चोर दबे कदमों से कथावाचक का पीछा करने लगा।
इसका अहसास होते ही कथावाचक भयभीत हो गया।

कहाँ मिलेंगे कृष्ण

चोर ने कथावाचक से कहा, `घबराओ मत। मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए।
तुम मुझे उस कृष्ण का केवल पता बता दो,
जिसके बारे में तुम बता रहे थे कि वह सदा सोने और हीरों से जड़ित आभूषणों का श्रृंगार किए रहता है।’
कथावाचक उसकी बात सुनकर सन्न रह गया।
उसने भगवान श्रीकृष्ण की कई कथाएं की थीं, पर उसने न तो श्रीकृष्ण को कभी देखा था।
और न ही उसे मालूम था कि वह कहाँ मिलेंगे?
उसने भगवान कृष्ण और बलराम के रूप-रंग के बारे में जो पढ़ रखा था, वह चोर को बता दिया और वहां से जान बचाकर भागा।

चोर को मिल गए कृष्ण

चोर कथावाचक के बताए हुलिए को मन में रखकर कृष्ण की खोज में निकल पड़ा।
चलते-चलते जंगल में एक तालाब के पास उसे दो युवक दिखाई दिए, जो बिल्कुल वैसे ही थे, जैसा कथावाचक ने बताया था।
उनके सौंदर्य में इतना आकर्षण था कि वह चोरी करना भूलकर उनके तेज से उन्हीं की ओर खिंचा चला गया
और समीप पहुंचकर उनकी छवि निहारता रह गया।

कृष्ण की कृपा

श्रीकृष्ण उसे देखकर हँसे और बोले, `तू गहनों का चोर है और मैं चित्त-चोर हूं।’
उन्होंने अपने आभूषण उतारकर उसे पहना दिए । चोर आभूषण पाकर प्रसन्न हुआ और घर लौट गया।
अगले दिन कथावाचक के पास जाकर चोर ने श्रीकृष्ण के आभूषण उसे दिखाकर सारी घटना बताकर उसका धन्यवाद किया।
कथावाचक आभूषण देखऔर उसकी बातें सुनकर अवाक् रह गया।
उसे विश्वास नहीं हुआ कि चोर को भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन हुए हैं।
वह चोर से बोला, `मुझे भी कृष्ण के दर्शन करा दो।’
चोर उसे उस स्थान पर ले गया, जहाँ एक दिन पहले उसे भगवान श्रीकृष्ण की छवि निहारने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ था।
चोर ने इशारा करते हुए कहा, `देखो, वो बैठे हैं दोनों भाई।’

कथा वाचक को मिली विश्वास की सीख

कथावाचक को बहुत देर तक श्रीकृष्ण के दर्शन नहीं हुए
तो वह शिकायती लहजे में कहने लगा, `हे प्रभु! आपने एक चोर को दर्शन दे दिए, लेकिन मैं कई वर्षों से आपकी यश-गाथा गा रहा हूं, फिर भी मुझे आपके दर्शन नसीब नहीं हुए। कृपया मुझे भी दर्शन दें।’
 तब एक आवाज आई, `तुम कथाएँ पढ़ते और सुनाते हो, पर मुझमें तुम्हारा विश्वास नहीं है। इसीलिए तुम्हें दर्शन नहीं हो पाये।’
इस प्रसंग से स्पष्ट है कि भले ही हम शास्त्र पढ़ें या न पढ़ें, साधना करें या न करें, पर
अटूट विश्वास लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होता है।
अटूट विश्वास की जिस शक्ति के कारण चोर के सामने भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए।
भगवान ने वह शक्ति हर मनुष्य को दी है।
यह शक्ति जागृत हो जाए तो मनुष्य बिना किसी कारण और माध्यम के सदा आनंद में रह सकता है।
यही स्थिति मोक्ष है। सौ प्रतिशत विश्वास के साथ आगे बढ़ें, आपको अपनी आध्यात्मिक मंज़िल अवश्य मिलेगी।
यदि यह लेख आपको पसंद आता है तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। अपनी राय और सुझाव कमेंट बॉक्स पर जरूर लिखें।
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments