शक्ति से होता है सृष्टि का संचालन
देवी आराधना का पर्व नवरात्रि इस बार पूरे नौ दिनों तक मनाया जाएगा। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू हो रहे इस पर्व में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस दिन से नव संवत्सर की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्रि आत्मशुद्धि और मुक्ति प्रदान करती है। प्रकृति को मातृशक्ति माना जाता है इसलिए इस दौरान देवी की पूजा की जाती है। इस नवरात्रि के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्रि तत्व वाले हैं इसलिए इनके संयोग में गर्मी की शुरूआत होती है।
नववर्ष का आरंभ
चैत्र नवरात्रि से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। इसी दिन से अन्न, धन, व्यापार और सुख-शांति का आकलन किया जाता है। नवरात्रि में देवी और नवग्रहों की पूजा का कारण यह भी है कि ग्रहों की स्थिति पूरे वर्ष अनुकूल रहे और जीवन में खुशहाली बनी रहे।
पृथ्वी पर होती हैं माँ शक्ति
आदिशक्ति जिन्होंने इस पूरी सृष्टि को अपनी माया से ढका हुआ है जिनकी शक्ति से हो रहा है जो भोग और मोक्ष देने वाली देवी हैं, वह नवरात्रि के दौरान पृथ्वी पर होती हैं। इसलिए इनकी पूजा और आराधना से इच्छित फल की प्राप्ति अन्य दिनों की अपेक्षा जल्दी होती है।
आदिशक्ति का प्राकटय
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थीं और देवी के कहने पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण का काम शुरू किया था। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरू होता है। चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवां अवतार जो भगवान राम का है वह भी चैत्र नवरात्रि में हुआ था।
नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि का महत्व सिर्फ धर्म, अध्यात्म और ज्योतिष की दृष्टिसे ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी माना जाता है। ऋतु बदलने के वे रोग जिन्हें आसुरी शक्ति कहते हैं उनका अंत करने के लिए हवन, पूजन किया जाता है, जिसमें कई तरह की जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने न सिर्फ धार्मिक दृष्टि को ध्यान में रख कर नवरात्रि में व्रत और हवन पूजन करने के लिए कहा है, बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार भी है। नवरात्रि के दौरान व्रत और हवन पूजन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी होते हैं। इस समय मौसम में बदलाव होने से शारीरिक और मानसिक बल की कमी आती है। शरीर और मन को पुष्ट और स्वस्थ बनाकर नए मौसम के लिए तैयार करने के लिए व्रत किया जाता है।
सिद्धि का प्रतीक तत्व रात्रि
नवरात्रि दो शब्दों से मिलकर बनी है नव और रात्रि यानी कि 9 रातें। रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन काल में शक्ति और शिव की उपासना के लिए ऋषि मुनियों ने दिन की अपेक्षा रात्रि को ज्यादा महत्व दिया है। पुराणों के अनुसार रात्रि में कई तरह के अवरोध खत्म हो जाते हैं। रात्रि का समय शांत रहता है। इसमें ईश्वर से संपर्क साधना दिन की बजाय ज्यादा प्रभावशाली है। इन 9 रातों में देवी के 9 स्वरूप की आराधना से साधक अलग-अलग प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करता है।