शारदीय नवरात्रि आने वाली है पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्रि हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरु होती है और दशमी तिथि को विसर्जन के साथ समाप्त होती है इस बार 3अक्टूबर यह नवरात्रि को शुरू होकर 12अक्टूबर को समाप्त होगी इस दौरान जगह-जगह पर मिट्टी से बनी मां दुर्गा के मूर्ति की स्थापना की जाती है।
मां दुर्गा की मूर्ति किस मिट्टी से बनाई जाती है?/ FROM WHICH SOIL IS MOTHER DURGA’S STATUE MADE?
उत्तर और पूर्वोत्तर भारत में नवरात्रि का पावन त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है यह पर्व मुख्यतः 9 दिनों तक चलता है इन 9 दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा विधि विधान से की जाती है इस दौरान मिट्टी से बनाई गई मूर्ति विभिन्न पंडालों में स्थापित की जाती है और उस पंडाल को खूब सजाया जाता है इन पंडालों में मां की स्थापना के पहले माता दुर्गा रानी की मूर्ति तैयार की जाती है इसके लिए मिट्टी कहां से लाई जाती है आप यह जानकर जरूर आश्चर्य में पड़ जायेंगे कि मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए वेश्यालय की मिट्टी का उपयोग किया जाता है हिंदू धर्म की मान्यता के मुताबिक गंगा की मिट्टी, गोमूत्र, गोबर और वेश्यालय की मिट्टी मिलाकर माता दुर्गा रानी की मूर्ति निर्मित की जाती है हिंदू धर्म की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है
मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए वेश्यालय की मिट्टी क्यों लाई जाती है?/WHY IS THE SOIL OF BROTHEL BROUGHT TO MAKE MOTHER DURGA’S STATUE?
- वेश्यालय की मिट्टी से देवी दुर्गा की मूर्तियां बनाने के पीछे कई मान्यताएं हैं कहा जाता है कि वेश्याओं ने देवी दुर्गा से प्रार्थना की थी कि मां की मूर्ति उनके वेश्यालय के आंगन से लाई गई मिट्टी से बनाई जाए तब माता रानी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और वरदान दिया कि जो भी वेश्यालय की मिट्टी से बनी मूर्ति स्थापित करेगा और उसकी नियमित पूजा करेगा, उसकी प्रतिज्ञा सफल होगी तभी से वेश्यालय के आंगन से लाई गई मिट्टी से मां दुर्गा की मूर्तियां बनाई जाने लगीं|
- वहीं कुछ मान्यताएं ये भी है किवेश्यालय की मिट्टी का उपयोग उन वेश्याओं को सम्मानित करने के लिए किया जाता है जिन्होंने लोगों की भावनाओं को वश में करके समाज को स्वच्छ रखा शक्तिदर्शन और शक्तिसंप्रदाय के आधार पर मां दुर्गा की पूजा की पद्धति बनाई गई इसलिए शक्तिसंप्रदाय द्वारा पहचानी गई नई कन्या के प्रतीक के रूप में उन 9 वर्गों की महिलाओं के दरवाजे की मिट्टी को मूर्ति बनाने के लिए लिया जाता है यहां सिर्फ वेश्या के दरवाजे की मिट्टी ही नहीं बल्कि अष्टकन्या के दरवाजे की मिट्टी भी उतनी ही जरूरी है इसके अलावा मूर्तियां बनाने में सात नदियों, 5 शक्तिपीठों का भी उपयोग किया जाता है |
बची हुई मिट्टी को दूसरी मूर्तियों से अलग रखा जाता है/ THE LEFT SOIL IS KEPT AFAR FROM OTHER STATUES
इसके बाद उस मिट्टी को बड़ी शुद्धता से रखा जाता है। बाद में उसमें ढेर सारी मिट्टी का घोल मिला दिया जाता है। फिर उससे मूर्ति तैयार की जाती है। बची हुई मिट्टी को गणेश, शंकर, विष्णु और किसी भी दूसरे भगवान की मूर्ति से अलग रखा जाता है।
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माता का वेश्या को वरदान/MOTHER’S BOON TO A PROSTITUTE
- इस प्रथा के पीछे कारण यह है कि जैसे ही कोई व्यक्ति वेश्यालय में जाता है तो वह अपनी पवित्रता दरवाजे पर ही छोड़ जाता है। ऐसा माना जाता है कि वेश्यालय के अंदर जाने से पहले व्यक्ति के अच्छे कर्म और पवित्रता बाहर ही छोड़ दी जाती है। वेश्यालय के आंगन की मिट्टी सबसे पवित्र होती है। इसीलिए इसका इस्तेमाल दुर्गा प्रतिमा बनाने में किया जाता है।
- इससे जुड़ी एक और कहानी यह है कि एक वेश्या मां दुर्गा की भक्त थी। सामाजिक अपमान से बचाने के लिए देवी दुर्गा ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनके आंगन की मिट्टी से बनी दुर्गा प्रतिमा पवित्र मानी जाएगी।
- तीसरी मान्यता यह है कि वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं को समाज से बहिष्कृत माना जाता है।उन्हें सम्मानजनक दर्जा दिलाने के लिए यह प्रथा शुरू की गई थी। यह सब इसलिए हुआ ताकि यह वर्ग समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सके।

माता दुर्गा की मूर्तियों से जुड़ी कथा/MOTHER DURGA’S STATUE RELATED STORY
कथा के मुताबिक, एक बार कुछ वेश्याएंगंगा स्नान के लिए जा रही थीं। तभी उन्होंने घाट पर एक कुष्ठ रोगी को बैठे देखा। कुष्ठ रोगी आते-जाते लोगों से गुहार लगा रहा था कि कोई उसे गंगा स्नान करवा दे, लेकिन लोग उस ओर देख भी नहीं रहे थे। ये सब देखकर वेश्याओं को उस पर दया आ गई और उन्होंने उस कुष्ठ रोगी को गंगा स्नान करवा दिया। वह कुष्ठ रोगी खुद शिवजी थे। अपने असली रूप में आकर उन्होंने वेश्याओं से वरदान मांगने को कहा। तब वेश्याओं ने कहा कि हमारे आंगन की मिट्टी के बिना दुर्गा मूर्तियों का निर्माण न हो सके। शिवजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया। तभी से ये परंपरा चली आ रही है।
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मंत्र:
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा – ये सभी देवी दुर्गा के विभिन्न रूप और नाम हैं, जो उनकी विविध शक्तियों और गुणों को दर्शाते हैं। माँ दुर्गा समस्त संसार की पालनकर्ता और रक्षक हैं। वे अपने भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों और कठिनाइयों से मुक्त करती हैं और उन्हें शक्ति, साहस और धैर्य प्रदान करती हैं। इस मंत्र द्वारा हम माँ दुर्गा की महिमा का गुणगान करते हुए उन्हें प्रणाम करते हैं और उनसे अपनी रक्षा और कल्याण की प्रार्थना करते हैं। माँ के इन नामों में जीवन को साकार करने वाली, रक्षा करने वाली और हमें मोक्ष प्रदान करने वाली शक्तियों का सार छिपा है।
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