जब अज्ञान रूपी अंधकार की रात्रि प्रबल हो जाती है, तब परमपिता परमात्मा शिव आते हैं। ब्रह्मकुमारी के अनुसार, परम आत्मा का ही नाम है शिव, जिसका संस्कृत अर्थ है `सदा कल्याणकारी’, अर्थात वो जो सभी का कल्याण करता है। शिवरात्रि व शिवजयन्ती भारत में द्वापर युग से मनाई जाती है। ईश्वर के इस धरा पर अवतरण के समय की याद में हम यह दिन मनाते हैं। शिव के अलावा और किसी को भी हम `परम-आत्मा’ नहीं कहते। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को देवता कहते है। बाकि सभी हैं मनुष्य। तो हम उसी निराकार परमपिता के अवतरण का यादगार दिवस मनाते है।
शिव के साथ रात शब्द इसलिए जुड़ा है, क्योंकि वो अज्ञान की अँधेरी रात में इस सृष्टि पर आते हैं। जब सारा संसार, मनुष्य मात्र अज्ञान रात्रि में, अर्थात माया के वश हो जाता है, जब सभी आत्माएं 5 विकारों के प्रभाव से पतित हो जाती हैं, जब पवित्रता और शान्ति का सत्य धर्म व स्वयं की आत्मिक सत्य पहचान हम भूल जाते हैं। सिर्फ ऐसे समय पर, हमें जगाने, समस्त मानवता के उत्थान व सम्पूर्ण विश्व में फिर से शान्ति, पवित्रता और प्रेम का सतधर्म स्थापित करने परमात्मा एक साधारण शरीर में प्रवेश करते हैं।
भगवत गीता का यह श्लोक इसे दर्शाता है –
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्- ॥4-7॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्- ।
धर्मसंस्था पनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥4-8॥
जब-जब धर्म की हानि होती है, सृष्टि पर पाप व अन्याय बढ़ता है, तब परम पिता इस धरा पर अवतरित होते हैं। शिव के साथ रात शब्द इसलिए जुड़ा है क्योंकि वो अज्ञान की अँधेरी रात में इस सृष्टि पर आते हैं। जब सारा संसार, मनुष्य मात्र अज्ञान रात्रि में, अर्थात माया के वश हो जाता है, जब सभी आत्माएं 5 विकारों के प्रभाव से पतित हो जाती हैं, जब पवित्रता और शान्ति का सत्य धर्म व स्वयं की आत्मिक सत्य पहचान हम भूल जाते हैं। सिर्फ ऐसे समय पर, हमें जगाने, समस्त मानवता के उत्थान व सम्पूर्ण विश्व में फिर से शान्ति, पवित्रता और प्रेम का सत-धर्म स्थापित करने परमात्मा एक साधारण शरीर में प्रवेश करते हैं।
महाशिवरात्रि के साथ जुड़े हुए आध्यात्मिक महत्व को समझने का ये सबसे अच्छा अवसर है। शिव-लिंग परमात्मा शिव के ज्योति रूप को दर्शाता है। परमात्मा का कोई मनुष्य रूप नहीं है और ना ही उसके पास कोई शारीरिक आकार है। भगवान शिव एक सूक्ष्म, पवित्र व स्वदीप्तिमान दिव्य ज्योति पुंज हैं। इस ज्योति को एक अंडाकार रूप से दर्शाया गया है। इसीलिए उन्हें ज्योर्तिलिंग के रूप में दिखाया गया है, अर्थात `ज्योति का प्रतीक’। वो सत्य है, कल्याणकारी है और सबसे सुंदर आत्मा है, तभी उन्हें सत्यम-शिवम्-सुंदरम् कहा जाता है। वो सत-चित-आनंद स्वरूप हैं।