
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से महालक्ष्मी व्रत का समापन हो रहा है। ऐसे में इस दिन विधि-विधान के साथ महालक्ष्मी व्रत का समापन करने से घर-परिवार पर माता लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है। धन-धान्य से घर का भंडार हमेशा भरा रहता है। हर साल महालक्ष्मी व्रत की शुरुआत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होती है, जो कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक रहती है।
महालक्ष्मी व्रत पूजा सामग्री /MAHALAKSHMI VRAT PUJA MATERIAL
पूजा के लिए दो सूप, 16 मिट्टी के दिए, प्रसाद के लिए सफेद बर्फी, फूल माला, तारों को अर्घ्य देने के लिए यथेष्ट पात्र, 16 गांठ वाला लाल धागा और 16 चीजें, हर चीज सोलह की गिनती में होनी चाहिए। जैसे 16 लौंग, 16 इलायची या 16 सुहाग के सामान आदि।
साथ ही फूल चढ़ाइए, लेकिन ध्यान रहे देवी मां को कभी भी हरसिंगार का फूल नहीं चढ़ाना चाहिए। महालक्ष्मी की पूजा में हरसिंगार का फूल निषिद्ध है।
- इसके बाद एक सूप में सोलह चीजें सोलह-सोलह की संख्या में रखकर उसे दूसरे सूप से ढंक दें और उसे माता के निमित्त दान करने का संकल्प करें।
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इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें. व्रत का संकल्प लेने के बाद किसी सावन के पवित्र मास के बाद भाद्रपद मास की शुक्ल अष्टमी से महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ होता है।
यह व्रत अनुष्ठान सोलह दिनों तक चलता है। इस वर्ष यह अनुष्ठान दिनांक सितम्बर 24, 2024 |
महालक्ष्मी व्रत कथा/ MAHALAKSHMI VRAT STORY
इस कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक गांव में एक निर्धन व्यक्ति अपने परिवार के साथ रहता था। वह भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था और उनकी नियमित आराधना करता था।
उसने अपने घर में दरिद्रता को दूर करने के लिए भगवान विष्णु की तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर श्री विष्णु ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने के लिए कहा। तब उस व्यक्ति ने वरदान के रूप में माँगा कि देवी लक्ष्मी उसके घर में निवास करें।
तब भगवान विष्णु ने उसकी मनोकामना के फलस्वरूप बताया कि यदि तुम लक्ष्मी को अपने घर में लाना चाहते हो तो तुम्हारे गांव के मंदिर में एक स्त्री प्रातः काल उपले थेपने आती है। वह स्त्री असल में माँ लक्ष्मी ही है।
जाकर उनसे आग्रह करो की वे तुम्हारे घर में निवास करें। जब देवी लक्ष्मी तुम्हारे घर में निवास करेंगी तब तुम्हारा घर सभी सुख-समृद्धि से संपन्न होगा।
इतना कहकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए। उस व्यक्ति ने अगले दिन ऐसा ही किया।
जब स्त्री रुपी लक्ष्मी मंदिर में उपले थेपने आई तब वह ने उनसे अपने घर पर निवास करने का आग्रह किया।
स्त्री के वेश में माता लक्ष्मी को यह बात समझते देर नहीं लगी की यह उपाय जरूर भगवान विष्णु ने दिया गया है।
उन्होंने व्यक्ति को कहा की यदि तुम चाहते हो की मैं तुम्हारे घर में निवास करुँ तो तुम्हें विधिपूर्वक महालक्ष्मी व्रत करना होगा।
16 दिनों तक व्रत करने और 16वें दिन रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी और मैं तुम्हारे घर में निवास अवश्य करूंगी।
उस व्यक्ति ने देवी लक्ष्मी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और उत्तर दिशा की ओर मुख करके देवी का आह्वान किया।
ततपश्चात देवी लक्ष्मी अपने वचनानुसार ब्राह्मण के घर में वास करने लगी और उसका घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। मान्यता है कि इसी समय से महालक्ष्मी व्रत की परंपरा शुरू हुई।
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महालक्ष्मी व्रत एवं पूजा विधि/ MAHALAKSHMI VRAT AND PUJA METHOD
इस व्रत को प्रारंभ करने के लिए भादो या भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को स्नान करके दो सकोरे (सूप) में ज्वारे (गेहूं) बोये जाते हैं।
प्रतिदिन 16 दिनों तक इन्हें जल से सींचा जाता है। ज्वारे बोने के दिन ही सफ़ेद कच्चे धागे से 16 तार का एक डोरा बनाएं। डोरे की लंबाई इतनी होती है कि इसे आसानी से गले में पहन सकें।
इस डोरे में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर 16 गठानें लगाएं तथा हल्दी से पीला करके पूजा के स्थान पर रख दें तथा प्रतिदिन 16 दूब और 16 गेहूं चढ़ाकर पूजा करें।
स्नान के बाद पूर्ण श्रृंगार करें। अखंड ज्योति का एक और दीपक अलग से जलाकर रखें।
मिट्टी का एक हाथी बनाएं या कुम्हार से बनवा लें जिस पर महालक्ष्मी जी की मूर्ति बैठी हो।
सायंकाल जिस स्थान पर पूजन करना हो, उसे गोबर से लीपकर पवित्र करें। रंगोली बनाकर बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर हाथी को रखें।
तांबे का एक कलश जल से भरकर पाट पर रखें तथा महालक्ष्मी की मूर्ति की स्थापना करें। इस मूर्ति के पास महालक्ष्मी श्री यंत्र रखें।
एक थाली में पूजन की सामग्री (रोली, गुलाल, अबीर, अक्षत, लाल धागा, मेहंदी, हल्दी, टीकी, लौंग, इलायची, खारक, बादाम, पान, गोल सुपारी, बिछिया, वस्त्र, फूल, दूब, अगरबत्ती, कपूर, इत्र, फल-फूल, पंचामृत, मावे का प्रसाद आदि रखें।
केल के पत्तों से झांकी बनाएं। संभव हो सके तो कमल के फूल भी चढ़ाएं।
पाट पर 16 तार वाला डोरा एवं ज्वारे रखें। विधिपूर्वक महालक्ष्मीजी का पूजा करें तथा कथा सुनें एवं आरती करें। इसके बाद डोरे को गले में पहनें अथवा भुजा से बांधें।
अंतिम अष्टमी के दिन प्रात:काल स्नान आदि से निवृत होकर महालक्ष्मी व्रत का विधिपूर्व उद्यापन करें।
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महालक्ष्मी व्रत 2024 उद्यापन विधि/MAHALAKSHMI VRAT UDHAPAN METHOD
पहले दिन हाथ में बांधे गए 16 गांठ वाले रक्षासूत्र को खोलकर नदी या सरोवर में विसर्जित कर दें।
पूजा मुहूर्त में महालक्ष्मी की प्रतिमा की स्थापना करें और उनकी अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल, फल, मिठाई, चन्दन, पत्र, माला, सफ़ेद कमल या कोई भी कमल का फूल और कमलगट्टा अर्पित कर पूजा करें।
फिर लक्ष्मी जी को सफेद बर्फी या किशमिश का भोग लगाएं।
महालक्ष्मी व्रत की कथा सुनें।
श्री लक्ष्मी महामंत्र: “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद… ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥” मंत्र के जाप के बाद महालक्ष्मी की आरती करें।
उसके बाद अपनी मनोकामना प्रकट करके प्रसाद परिजनों में वितरित कर दें।
अंत में विधिपूर्वक माता महालक्ष्मी की प्रतिमा का विसर्जन कर व्रत को पूर्ण करें।
महालक्ष्मी व्रत के समय, नमक वाला भोजन और मांसाहार खाने से बचना चाहिए।
आमतौर पर यह अनुष्ठान महाराष्ट्रियन परिवारों द्वारा किया जाता है, लेकिन महालक्ष्मी व्रत को पूरी श्रद्धा से संपन्न करने से देवी महालक्ष्मी अपने सभी भक्तों को सुख और संपत्ति का आशीर्वाद देती है तथा उस घर परिवार में हमेशा खुशहाली और शांति बनी रहती है।
मां लक्ष्मी के इन नामों का जाप करें/ MOTHER LAKSHMI’S NAMES FOR CHANTING
– ॐ आद्यलक्ष्म्यै नम:
– ॐ विद्यालक्ष्म्यै नम:
– ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नम:
– ॐ अमृतलक्ष्म्यै नम:
– ॐ कामलक्ष्म्यै नम:
– ॐ सत्यलक्ष्म्यै नम:
– ॐ भोगलक्ष्म्यै नम:
– ॐ योगलक्ष्म्यै नम:
हम आशा करते है, महालक्ष्मी व्रत 2024 आपके लिए शुभ हो।
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