स्वर्ग सुख से बड़ा है वफादार का साथ
स्वर्ग की यात्रा के दौरान युधिष्ठिर के साथ उनका कुत्ता भी था।
इन्द्र ने उसे छोड़ने कहा तो युधिष्ठिर ने कहा कि मैं अपने इस वफादार साथी को इस परम सुख की प्राप्ति के लिए नहीं छोड़ सकता।
यह जानवर मूक है, मगर इससे अधिक वफादार और कोई नहीं है।
- महाराज युधिष्ठिर प्रसिद्ध पाण्डव राजा थे जिन्होंने हस्तिनापुर पर राज किया।
- वे और उनके चार भाई भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव – पाँच पाण्डव कहलाए।
- इन भाइयों और उनके द्वारा लड़े गए युद्ध की कथाएँ हम महाभारत में पढ़ते हैं।
- इसी महाकाव्य में हम कृष्ण और उनके भाई बलराम के बारे में भी पढ़ते हैं जिन्होंने पाण्डवों का साथ हमेशा निभाया।
- वक्त बीत जाने पर भगवान कृष्ण और बलराम ने इस सँसार का त्याग किया और स्वर्ग पहुँचे।
- अपने प्रियजनों के स्वर्गवास की खबर सुनकर पाण्डव व्यथित हो उठे।
- उन्होंने भी इस संसार से संन्यास लिया और हिमालय के मेरु पर्वत की ओर प्रस्थान किया।
- जैसे-जैसे उनकी यात्रा आगे बढ़ती गई, महाराज युधिष्ठिर का कुत्ता भी उनके पीछे-पीछे चलता रहा।
- इस लम्बी कठिन यात्रा में युधिष्ठिर को छोड़कर बाकी सारे भाई एक-एक करके मृत्यु को प्राप्त हुए।
- मगर वफादार कुत्ता जीवित रहा और दुखी महाराज का इकलौता साथी रह गया।
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- जैसा हम जानते हैं, महाराज युधिष्ठिर एक अत्यन्त ही गुणी, सत्यवादी, न्यायप्रिय और दयालु राजा थे।
- अब वे उस लोक की ओर अग्रसर हो रहे थे जहाँ पर सभी सदाचारी मनुष्य मृत्यु के पश्चात् पहुँचते हैं।
- इस स्वर्गलोक के स्वामी इन्द्र थे।
- उन्हें पता चल चुका था कि युधिष्ठिर उन्हीं के पास आ रहे थे।
- अतः शीघ्रता से अपने दिव्य वाहन पर सवार होकर वे महाराज युधिष्ठिर के पास पहुँचे और कहने लगे-
- हे गुणसंपन्न राजन्, आप मेरे पवित्र लोक में आने के सुपात्र हैं।
- आपने हमेशा एक पवित्र जीवन जीया है और सभी जीवों से प्रेम करते रहे हैं।
- अतः आइए, अब स्वर्ग में प्रवेश कीजिए।
- युधिष्ठिर दिव्य वाहन में प्रवेश करने लगे कि इन्द्र ने कुत्ते के आने पर आपत्ति की।
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- उन्होंने कहा हे राजन्! देवलोक में कुत्तों का प्रवेश वर्जित है।
- क्या आप नहीं जानते कि कुत्ता एक हीन प्राणी है?
- आप ऐसे हीन प्राणी का साथ कैसे कर सकते हैं?
- इस कुत्ते को छोड़ दीजिए तथा इस पवित्र वाहन में प्रवेश कीजिए।
- देवलोक में प्रवेश करने की महाराज की तीव्र इच्छा तो थी।
- परन्तु अपने वफादार कुत्ते को कैसे छोड़ दें?
- उन्होंने कहा “हे देवाधिदेव इन्द्र! स्वर्ग में प्रवेश करना मेरी सबसे बड़ी आकांक्षा है।
- परन्तु मैं अपने इस वफादार साथी को इस परम सुख की प्राप्ति के लिए भी नहीं छोड़ सकता।
- आप तो इसे हीन प्राणी कह रहे हैं, मगर मेरी सोच अलग है।
- यह जानवर मूक है, मगर इससे अधिक वफादार और कोई नहीं है।
- महाराज ने आगे कहा, क्या कुत्ता अपने मालिक और उसके परिवार को प्यार नहीं करता?
- क्या यह पूरी वफादारी से अपने मालिक की रखवाली नहीं करता है?
- क्या आपने कभी सुना है कि किसी कुत्ते ने अपने मालिक से अहसान फरामोशी की है?
- ईश्वर ने कुत्ते को दो महान गुण दिए हैं। प्यार और वफादारी।
- अब महाराज एकदम भावुक होकर बोले, “यह कुत्ता हर पल मेरे साथ वफादारी और प्यार से रहा है।
- अतः स्वर्ग की बड़ी से बड़ी खुशियों के लिए भी इसे छोड़ना घोर कृतघ्नता होगी।
- अतः हे इन्द्रा मुझे इस कुत्ते के साथ स्वर्ग ले चलें, अन्यथा मुझे यहीं छोड़ दें। “
- जैसे ही महाराज ने ये साहसी और सत्य वचन कहे, कुत्ता वहाँ में अदृश्य हो गया।
- और उसके स्थान पर न्याय के देवता, साक्षात् धर्मराज प्रकट हो गए।
- धर्मराज ने ये वचन कहे – “हे सत्यवादी राजा, में न्याय का देवता हूँ।
- मैं इतने दिनों से आपको देखता आ रहा हूँ।
- आपके अंतर्मन में इन्सानों और पशुओं के प्रति प्रेम और दया है।
- अब आप अपना पुरस्कार ग्रहण कीजिए।
- जाइए और स्वर्ग के सुखों और आनन्द का लोग कीजिए।
- इस तरह महाराज युधिष्ठिर इंद्र के दिव्य वाहन में प्रवेश करके वहाँ पहुँचते हैं
- जहाँ सभी सदाचारी लोग अपने जीवन के अंत में जाते हैं।