Saturday, September 13, 2025
Homeविशेषत्योहारमहाकाल की भस्म आरती

महाकाल की भस्म आरती

 

महाकाल की भस्म आरती
महाकाल की भस्म आरती

उज्जैन, मध्यप्रदेश में स्थित, भगवान महाकालेश्वर का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। यह शहर एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है जहाँ प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु बाबा महाकाल के दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। यहाँ रोजाना ब्रह्म मुहूर्त में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है, जिसे भस्म आरती के रूप में जाना जाता है।

क्या है महाकाल की भस्म आरती?

महाकाल की भस्म आरती, जिसे मंगला आरती भी कहा जाता है, एक पवित्र और दुर्लभ पूजा विधि है जिसमें भगवान महाकाल को गाय के गोबर से बनी शुद्ध भस्म से अभिषेक किया जाता है। इस आरती में बाबा को निराकार से साकार रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है।

आरती की विशेषताएं:

ताज़ी भस्म से भगवान का श्रृंगार किया जाता है।

यह आरती पांच वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ होती है।

यह मंत्र शरीर के पंचतत्वों का प्रतीक होते हैं: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश।

इस आरती से भक्तों को ऐसा अनुभव होता है जैसे वे जीवन के नश्वर स्वरूप को प्रत्यक्ष देख रहे हों।

महाकाल की भस्म को घर में क्यों रखते हैं?

भक्त भस्म आरती में चढ़ी हुई भस्म को अपने घर ले जाते हैं और पूजन स्थान में रखते हैं। इसके पीछे कई शास्त्रीय मान्यताएँ हैं:

गौमाता का गोबर अत्यंत पवित्र माना गया है, जिसमें माँ लक्ष्मी का वास होता है।

यह मान्यता है कि भस्म को घर में रखने से सुख-समृद्धि, धन और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।

घर में रखी गई भस्म से नकारात्मक शक्तियाँ दूर रहती हैं और घर में शांति बनी रहती है।

Read this also – हरियाली तीज व्रत के नियम/Hariyali Teej fasting rules

शिवजी और भस्म का संबंध

महाकाल की भस्म आरती

  1. भस्म: शिवजी का मुख्य वस्त्र

शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव का प्रमुख वस्त्र भस्म है। उनका पूरा शरीर इसी भस्म से ढंका रहता है। यह भस्म सृष्टि के नाशवान स्वरूप को दर्शाती है — एक दिन सब कुछ राख में बदल जाएगा।

  1. सती की चिता की भस्म

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब सती माता ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव के अपमान से आहत होकर आत्मदाह किया, तब उनके शरीर की भस्म को शिवजी ने अपने शरीर पर रमाया।

सती के निधन से शिवजी का दुःख इतना गहरा था कि वे उनके शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड में भटकते रहे।

सृष्टि संकट में पड़ गई, तब भगवान विष्णु ने सती के शरीर को भस्म में बदल दिया।

उस भस्म को भगवान शिव ने विरह की निशानी के रूप में धारण कर लिया।

शिव पूजा में भस्म का महत्व
  1. विनाश और उत्थान का प्रतीक

भस्म, जिसे राख कहा जाता है, जीवन के नश्वर स्वरूप को दर्शाती है। यह मृत्यु के बाद जीवन के सत्य को स्वीकार करने और आत्मा की मोक्ष यात्रा का संकेत है।

  1. पवित्रता और शुद्धि

भस्म को शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह भक्त के मन, शरीर और आत्मा को पवित्र करने की शक्ति रखती है।

  1. भक्ति और समर्पण

भस्म शिवभक्ति की परंपरा का अनिवार्य हिस्सा है। शिवभक्त इसे मस्तक, छाती, और भुजाओं पर लगाकर भगवान शिव के प्रति समर्पण प्रकट करते हैं।

  1. नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा

शास्त्रों में वर्णन है कि भस्म नकारात्मक शक्तियों को दूर रखने, मानसिक शांति और आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करने का काम करती है।

भस्म आरती देखने के नियम

महाकाल मंदिर में प्रतिदिन होने वाली भस्म आरती देखने के लिए कुछ नियम निर्धारित हैं:

केवल पुरुष श्रद्धालु ही धोती पहनकर आरती स्थल पर प्रवेश कर सकते हैं।

महिलाओं को आरती का दर्शन दूरी से करने के लिए व्यवस्था की जाती है।

आरती के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन आवश्यक होता है।

आरती का समय ब्रह्म मुहूर्त — प्रात: लगभग 3:30 से 5:30 बजे तक होता है।

महाकाल की भस्म आरती का आध्यात्मिक संदेश

महाकाल की भस्म आरती न केवल एक पूजा विधि है, बल्कि यह हमें जीवन की सच्चाई, आध्यात्मिकता, और शिवतत्व की गहराई को समझने का अवसर देती है। भस्म एक ऐसा प्रतीक है जो विनाश में भी चेतना और भक्ति में भी मुक्ति की राह दिखाता है।

 

यह लेख सामान्य जानकारी पर आधारित है लेख पसंद आये तो इसे ज़्यादा से ज्यादा शेयर करें। अपने विचार और सुझाव कमेंटबॉक्स में ज़रूर लिखे।

 

RELATED ARTICLES
- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments