तन का मन से गहरा संबंध है। स्वस्थ शरीर को अनुभूत करने के लिए मन का स्वस्थ होना अति आवश्यक है। यह हमारा मन ही है जो शरीर को स्वस्थ या बीमार बनाता है।
सुख अथवा दुख के महसूस होने में भी हमारे मन की बहुत बड़ी भूमिका होती है। मन में उत्पन्न इच्छाओं और आकांक्षाओं द्वारा ही हमारे शरीर को खुशी और आनंद देने वाली स्थितियों का निर्माण होता है। मन की शत्ति के बिना शरीर को स्वस्थ नहीं बनाया जा सकता। कहते हैं ना मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। जब हमारा मन चाहेगा, तभी हम नीरोग तथा स्वस्थ रह सकेंगे। हमारी सोच तथा हमारा चिंतन हमारे शरीर तथा हमारे क्रिया-कलापों पर गहरा प्रभाव डालते हैं।
मन द्वारा उत्पन्न स्थितियों, सोच तथा विश्वास का हमारे शरीर और स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है। रोगमुक्त होने के लिए या स्वस्थ महसूस करने के लिए सिर्फ दवाओं पर ही विश्वास पर्याप्त नहीं है बल्कि यह विश्वास अधिक जरूरी है कि अब हम रोगमुक्त हैं, स्वस्थ हैं। हमारे मन में स्वस्थ होने का जो विश्वास पैदा होता है, वह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत मायने रखता है।
हम अपने मन में पैठे अनेक विश्वासों के कारण ही दुखी या सुखी हैं अथवा रुग्ण या स्वस्थ हैं। हमारे स्वस्थ होने में या रोगी होने में या रोग की दशा में शीघ्र रोगमुक्त होने में हमारा विश्वास बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
दरअसल, शरीर नहीं वरन हमारा मन बीमार होता है अतः शरीर को नहीं, मन को ग़लत विचार, नकारात्मक विचार, कमज़ोर या रुग्ण विचार के संक्रमण से बचाना रोग से बचने या स्वस्थ रहने या होने का पहला क़दम है।