Thursday, September 19, 2024
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भगवान श्रीगणेश हैं प्रथम पूज्य

भारतीय संस्कृति में, हिन्दू धर्म में भगवान श्रीगणेश का स्थान सर्वोपरि है।

पुराणों के अनुसार गणेश जी, शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं।

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था।

सभी देवताओं में भगवान श्री गणेश प्रथम पूज्य हैं। श्री गणेश जी विघ्न विनाशक हैं।

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी है भगवान गणेशजी का जन्मदिन

भारतीय संस्कृति में, हिन्दू धर्म में भगवान श्रीगणेश का स्थान सर्वोपरि है।

पुराणों के अनुसार गणेश जी, शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं।

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था।

उनका वाहन मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है।

सभी देवताओं में इनकी पूजा-अर्चना सर्वप्रथम की जाती है।

श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं।

मंगलदायक भगवान श्री गणेश

  • भगवान गणेश का स्वरूप अत्यन्त ही मनोहर एवं मंगलदायक है।
  • वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं।
  • अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं।
  • वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं।
  • रक्तचन्दन धारी भगवान श्रीगणेश को रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं।
  • अपने उपासकों पर शीघ्र प्रसन्न होकर श्री गणेश उनकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।

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पुराणों में गणेश भगवान Ganesh Bhagwan in Puran in Hindi

  • ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है और जो भी संसार के साधन हैं,  उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं।
  • हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं।
  • गणेश जी का नाम हिन्दू शास्त्रों के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है इसलिए इन्हें आदिपूज्य भी कहते हैं।
  • गणेश की उपासना करने वाला सम्प्रदाय गाणपतेय कहलाता है।

भगवान गणेश संबंधी पौराणिक कथाएं Pauranik stories about Ganesh Ji in Hindi

कथा – 1

  • पुराणों में गणेश के संबंध में अनेक आख्यान वर्णित हैं।
  • एक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव के शिष्य शनि देव कैलाश पर्वत पर आए।
  • उस समय शिव ध्यान में थे तो शनिदेव सीधे पार्वती के दर्शन के लिए पहुंच गए।
  • तब पार्वती बालक गणेश के साथ बैठी थीं।
  • बालक गणेश का मुख सुंदर और हर तरह के कष्ट को भुला देने वाला था।
  • शनिदेव आंखें नीची किए पार्वती से बात करने लगे।
  • पार्वती ने देखा कि शनिदेव किसी को देख नहीं रहे हैं।
  • वे लगातार अपनी निगाहें नीची किए हुए हैं।
  • पार्वती ने शनि देव से पूछा कि वे किसी को देख क्यों नहीं रहे हैं?
  • क्या उनको कोई दृष्टिदोष हो गया है?
  • शनिदेव ने कारण बताते हुए कहा कि उन्हें उनकी पत्नी ने शाप दिया है कि वो जिसे देखेंगे उसका विनाश हो जाएगा।
  • पार्वती ने पूछा कि उनकी पत्नी ने ऐसा शाप क्यों दिया है तो शनिदेव कहने लगे कि मैं लगातार भगवान शिव के ध्यान में रहता हूं।
  • एक बार में ध्यान में था और मेरी पत्नी ऋतुकाल से निवृत्त होकर मेरे समीप आई,
  • लेकिन ध्यान में होने के कारण मैंने उसकी ओर देखा नहीं।
  • उसने इसे अपना अपमान समझा और मुझे शाप दे दिया कि मैं जिसकी ओर देखूंगा, उसका विनाश हो जाएगा।
  • ये बात सुन कर पार्वती ने कहा कि आप मेरे पुत्र गणेश की ओर देखिए, उसके मुख का तेज समस्त कष्टों को हरने वाला है।
  • शनिदेव गणेश पर दृष्टि डालना नहीं चाहते थे लेकिन वे माता पार्वती के आदेश की अवहेलना भी नहीं कर सकते थे।
  • सो उन्होंने तिरछी निगाह थे गणेश की ओर धीरे से देखा।
  • शनि देव की दृष्टि पड़ते ही बालक गणेश का सिर धड़ से कटकर नीचे गिर गया।
  • तभी भगवान विष्णु एक गजबालक का सिर लेकर पहुंचे और गणेश के सिर पर उसे स्थापित कर दिया।
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कथा – 2

  • दूसरी कथा के अनुसार जब पार्वती शिव के साथ उत्सव क्रीड़ा कर रहीं थीं, तब उन पर थोड़ा मैल लग गया।
  • उन्होंने अपने शरीर से उस मैल को निकाल दिया और उससे एक बालक बना दिया और उसका नाम रखा गणेश।
  • माता पार्वती ने गणेश से आदेश दिया कि वे स्नान कर रहीं हैं, बिना उनकी अनुमति किसी को भी घर के अंदर ना आने दें।
  • इधर शिवजी लौटे तो उन्होंने देखा कि द्वार पर एक एक बालक खड़ा है।
  • जब वे अन्दर जाने लगे तो उस बालक नें उन्हें रोक लिया और नहीं जाने दिया।
  • यह देख शिवजी क्रोधित हुए और अपने सवारी बैल नंदी को उस बालक से युद्ध करने को कहा।
  • पर युद्ध में उस छोटे बालक ने नंदी को हरा दिया।
  • यह देख कर भगवान शिव जी नें क्रोधित हो कर उस बालक गणेश के सर को काट दिया।
  • माता पार्वती इस पर बहुत दुखी हुईं और विलाप करने लगीं।
  • शिवजी को जब पता चला कि वह उनका स्वयं का पुत्र था तो उन्हें भी अपनी गलती का एहसास हुआ।
  • उन्होंने पार्वती को बहुत समझाने का कोशिश की पर वे नहीं मानीं और अपने पुत्र को लेकर दुखी रहने लगीं।
  • अंत में माता पार्वती ने शिवजी को अपनी शक्ति से गणेश को दोबारा जीवित करने के लिए कहा।
  • शिवजी बोले – हे पार्वती, मैं किसी भी अन्य जीवित प्राणी के सिर को जोड़ कर ही पुत्र को जीवित तो कर सकता हूँ।
  • माता पार्वती ने कहा,  मुझे अपना पुत्र किसी भी हाल में जीवित चाहिए।
  • यह सुनते ही शिवजी ने नंदी को आदेश दिया, जाओ नंदी इस संसार में जिस किसी भी जीवित प्राणी का सिर तुम्हें मिले काट लाना।
  • नंदी सिर खोज में निकला तो सबसे पहले उसे एक हाथी दिखा तो वो उसका सिर काट लाया।
  • भगवान शिव ने उस सिर को पुत्र के शरीर से जोड़ कर उसे जीवन दान दे दिया।
  • पुत्र का नाम उन्होंने गणपति रखा।
  • बाकि सभी देवताओं नें उन्हें वरदान दिया की इस दुनिया में जो भी कुछ नया कार्य करेगा पहले श्री गणेश को याद करेगा।

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एकदंत होने की कथा –  Story about Ekdant Ganesh ji

कथा – 1

  • ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु के अवतार परशुराम शिव के शिष्य थे।
  • जिस फरसे से उन्होंने 17 बार क्षत्रियों को धरती से समाप्त किया था, वो अमोघ फरसा शिव ने ही उन्हें प्रदान किया था।
  • 17 बार क्षत्रियों को हराने के बाद ब्राह्मण परशुराम शिव और पार्वती के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर गए।
  • उस समय भगवान शिव शयन कर रहे थे और पहरे पर स्वयं गणेश थे।
  • गणेश ने परशुराम को रोक लिया। परशुरामजी को क्रोध बहुत जल्दी आता था।
  • वे रोके जाने पर गणेश से नाराज हो गए तो गणेश जी भी आक्रोशित हो गए।
  • परशुराम ब्राह्मण थे, सो गणेश उन पर प्रहार नहीं करना चाहते थे।
  • उन्होंने परशुराम को अपनी सूंड से पकड़ लिया और चारों दिशाओं में गोल-गोल घूमा दिया।
  • घूमते-घूमते ही गणेश ने परशुराम जी को अपने कृष्ण रूप के दर्शन भी करवा दिए।
  • कुछ पल घुमाने के बाद गणेश ने उन्हें छोड़ दिया।
  • अपमानित परशुराम ने अपने फरसे से गणेश पर वार किया।
  • फरसा शिव का दिया हुआ था सो गणेश उसके वार को विफल जाने नहीं देना चाहते थे,
  • उस वार को उन्होंने अपने एक दांत पर झेल लिया।
  • फरसा लगते ही दांत टूटकर गिर गया।
  • इस बीच कोलाहल सुन कर शिव भी शयन से बाहर आ गए और उन्होंने दोनों को शांत करवाया।
  • तब से गणेश को एक ही दांत रह गया और वे एकदंत कहलाने लगे।

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कथा – 2

  • दूसरी कथा है कि जब महर्षि वेदव्यास महाभारत लिखने के लिए बैठे, तो उन्हें एक लेखक की जरूरत थी।
  • ऐसे लेखक की जो उनके मुख से निकले हुए महाभारत की कहानी को लिखे।
  • इस कार्य के लिए उन्होंने श्री गणेश जी को चुना।
  • गणेश जी भी इस बात के लिए मान गए।
  • पर उनकी एक शर्त थी कि पूरा महाभारत लेखन एक पल भी रुके बिना पूरा करना होगा।
  • गणेश जी बोले, अगर आप एक बार भी रुकेंगे तो मैं लिखना बंद कर दूंगा।
  • महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी की इस शर्त को मान लिया।
  • लेकिन वेदव्यास ने भी एक शर्त रखी और कहा, गणेश आप जो भी लिखोगे समझ कर ही लिखोगे।
  • गणेश जी भी उनकी शर्त मान गए।
  • दोनों महाभारत के महाकाव्य को लिखने के लिए बैठ गए।
  • वेदव्यास जी महाकाव्य को अपने मुंह से बोलने लगे और गणेश जी समझ-समझ कर जल्दी-जल्दी लिखने लगे।
  • कुछ देर लिखने के बाद अचानक से गणेश जी की कलम टूट गई।
  • कलम महर्षि के बोलने की तेजी को संभाल ना सका।
  • गणेश जी समझ गए कि उन्हें थोड़ा अभिमान हो गया था इसलिए वे महर्षि की शक्ति और ज्ञान समझ नहीं पाए।
  • उसके बाद उन्होंने धीरे से अपने एक दांत को तोड़ दिया और स्याही में डूबा कर दोबारा महाभारत की कथा लिखने लगे।
  • तब से वे भगवान श्रीगणेश एकदंत हैं।

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पुराणों में गणेश वर्णन – Bhagwan Ganesh Story in Hindi

  • लिंग पुराण के अनुसार एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना की।
  • शिव से उन्होंने सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिये वर माँगा। आशुतोष शिव ने ‘तथास्तु’ कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया।
  • समय आने पर गणेश जी का प्राकट्य हुआ।
  • उनका मुख हाथी के समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था।
  • देवताओं ने सुमन-वृष्टि करते हुए गजानन के चरणों में बार-बार प्रणाम किया।
  • भगवान शिव ने गणेश जी को दैत्यों के कार्यों में विघ्न उपस्थित करके देवताओं और ब्राह्मणों का उपकार करने का आदेश दिया।
  • ब्रह्म वैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण तथा शिव पुराण में भी गणेश जी के अवतार की भिन्न-भिन्न कथाएँ मिलती हैं।

भगवान गणेश का परिवार Family of bagwan Shri Ganesh

  • प्रजापति विश्वकर्मा की सिद्धि-बुद्धि नामक दो कन्याएँ गणेश जी की पत्नियाँ हैं।
  • सिद्धि से क्षेम और बुद्धि से लाभ नाम के शोभा सम्पन्न दो पुत्र हुए।
  • शास्त्रों और पुराणों में सिंह, मयूर और मूषक को गणेश जी का वाहन बताया गया है।
  • भगवान गणपति के प्राकट्य, उनकी लीलाओं तथा उनके मनोरम विग्रह के विभिन्न रूपों का वर्णन पुराणों और शास्त्रों में प्राप्त होता है।
  • कल्पभेद से उनके अनेक अवतार हुए हैं। उनके सभी चरित्र अनन्त हैं।
  • पद्म पुराण के अनुसार एक बार श्री पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से एक पुरुषाकृति बनायी, जिसका मुख हाथी के समान था।
  • फिर उस आकृति को उन्होंने गंगा में डाल दिया।
  • गंगाजी में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गयी। पार्वती जी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा।
  • देव समुदाय ने उन्हें गांगेय कहकर सम्मान दिया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया।

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बारह नाम – 12 Name of Lord Ganesha in Hindi

  • गणेशजी के अनेक नाम हैं, लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं
  • सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट,
  • विघ्न-विनाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन।

उपरोक्त द्वादश नाम नारद पुराण में पहली बार गणेश के द्वादश नामवलि में आए हैं। विद्यारम्भ तथा विवाहारंभ पूजन में इन नामो से गणपति के आराधना का विधान है।

गणेश पूजा की शास्त्रीय विधि – Ganesh Bhagwan ki Puja in Hindi

  • भगवान गणेश की शास्त्रीय पूजा विधि में क्रमों की संख्या 16 है।
  • आह्वान, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमनीय, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंधपुष्प, पुष्पमाला, धूप-दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, आरती-प्रदक्षिणा और पुष्पांजलि आदि।
  • भगवान गणेश की पूजा का उल्लेख ऋग्वेद के गणेश अथर्व सूत्र में है।
  • इसमें बताया गया है कि रक्त पुष्पै सुपूजितम अर्थात लाल फूल से विनायक की पूजा का विशेष महत्त्व है।
  • स्नानादि करके सामग्री के साथ अपने घर के मंदिर में बैठें।
  • पवित्रीकरण मन्त्र पढ़कर घी का दीप जलाएं और दीपस्थ देवतायै नम: कहकर उन्हें अग्निकोण में स्थापित कर दें।
  • इसके बाद गणेशजी की पूजा करें।
  • अगर कोई मन्त्र न आता हो, तो ‘गं गणपतये नम:’ मन्त्र को पढ़ते हुए पूजन में लाई गई सामग्री गणपति पर चढाएं।
  • यहीं से आपकी पूजा स्वीकार होगी और आपको शुभ-लाभ की अनुभूति मिलेगी।
  • गणेश जी की आरती और पूजा किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले की जाती है और प्रार्थना करते हैं कि कार्य निर्विघ्न पूरा हो।

 

 

यह लेख सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित है। assanhain इसकी तथ्यात्मक पुष्टि नहीं करता है।

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